36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आतंक निरोधक बिल का विरोध प्रतिपक्ष के लिए प्रति-उत्पादक

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक लोकसभा में प्रतिपक्ष ने ‘विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक, 2019’ का भी विरोध कर दिया. इस देश में देसी-विदेशी आतंकियों की बढ़ती गतिविधियों के बीच लोकसभा ने कल उस बिल को पास कर दिया. पर, इस विधेयक का विरोध प्रतिपक्ष के लिए प्रति-उत्पादक साबित हो सकता है. प्रतिपक्ष लगातार सत्ताधारी […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
लोकसभा में प्रतिपक्ष ने ‘विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण संशोधन विधेयक, 2019’ का भी विरोध कर दिया. इस देश में देसी-विदेशी आतंकियों की बढ़ती गतिविधियों के बीच लोकसभा ने कल उस बिल को पास कर दिया. पर, इस विधेयक का विरोध प्रतिपक्ष के लिए प्रति-उत्पादक साबित हो सकता है. प्रतिपक्ष लगातार सत्ताधारी राजग से पराजित होता जा रहा है. हार के कारण भी स्पष्ट हैं. एके एंटोनी की रपट उसकी गवाही दे रही है. फिर भी लगता है कि प्रतिपक्ष ने उससे कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की है. वह अपनी पुरानी लाइन पर ही है.
प्रतिपक्ष की असली चिंता अपने ‘वोट बैंक’ को लेकर है. 2014 के लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद कांग्रेस की हार के कारणों की जांच हुई थी. जांचकर्ता एके एंटोनी ने जो रपट हाइकमान को दी थी, उससे भी कुछ सीखने को कांग्रेस अब भी तैयार नहीं है. दरअसल, देश की सुरक्षा से संबंधित किसी भी सरकारी उपाय के विरोध से अधिकतर जनता यह अर्थ लगाती है कि विरोध करने वाले जाने-अनजाने अतिवादियों को मदद पहुंचाना चाहते हैं. भाजपा की चुनावी जीत का यह बहुत बड़ा कारण बनता रहा है.
यदि आतंकी विरोधी विधेयक में कोई कमी है, तो उसकी समीक्षा करने का भार अदालत को बाद में सौंप दिया जाना चाहिए. जब सरकार दावा कर रही है कि नये कानून में जांच एजेंसियों को आतंकियों से चार कदम आगे रखने का प्रयास है, तो ऐसे मामले में व्यापक देशहित में सरकार का साथ दिया जाना चाहिए. यदि साथ नहीं तो चुप तो रह ही सकते थे.
पर, यदि प्रतिपक्ष पुलवामा और बालाकोट की घटना से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है, तो उसे उसका राजनीतिक परिणाम एक बार और भुगतने के लिए तैयार रहना होगा. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल में यह स्वीकारा है कि पुलवामा का संगठन जैश-ए-मोहम्मद पाक में मौजूद है.
दूसरी ओर पुलवामा हमले के तत्काल बाद भारत के अधिकतर प्रतिपक्षी दलों ने क्या कहा था? यह भी याद कर लीजिए कि प्रतिपक्ष ने बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक पर क्या-क्या कहा था. उसका चुनावी खामियाजा भी प्रतिपक्ष गत लोकसभा चुनाव में भुगत चुका है. फिर भी वही रवैया! अरे भई, प्रतिपक्ष वालों, कुछ ऐसा कीजिए जिससे देश में आपका पक्ष भी मजबूत हो. लोकतंत्र की मजबूती व जीवंतता के लिए प्रतिपक्ष की मजबूती भी जरूरी है.
जमीन का आॅनलाइन विवरण : बिहार में रैयती जमीन का ब्योरा आॅनलाइन हो रहा है. कहीं-कहीं यह काम पूरा भी हो चुका है. पर, आॅनलाइन करने के क्रम में भारी गड़बड़ियों की भी खबरें आ रही हैं. पिछले दिनों पटना जिले के फुलवारीशरीफ अंचल में इस गड़बड़ी के खिलाफ जन प्रदर्शन भी हुआ था. राज्य के सुदूर अंचलों से भी ऐसी ही गड़बड़ियों की खबरें मिल रही हैं.
उदाहरणार्थ, दशकों से जो भूस्वामी 10 बीघे जमीन का मालिक रहा है, पहले उसकी उतने ही की रसीद भी कटती थी. वह अब कागज पर सिर्फ सात बीघे का ही मालिक है. ऐसे में राज्य सरकार को राजस्व भी कम ही मिल रहा है. हालांकि, दस बीघे वह अब भी जोत रहा है. ऐसा भी उदाहरण मिला है कि जो 20 बीघे का मालिक रहा है, उसकी रसीद अब सिर्फ दो बीघे की ही कट पा रही है. इस गलती को जल्द सुधारने की जरूरत है.
इस गलती को सुधरवाने के क्रम में भी भूस्वामियों का सरकारी कर्मियों द्वारा भारी आर्थिक शोषण भी संभव है. इस मामले में राज्य सरकार सुधारात्मक उपाय शीघ्र करे. साथ ही शासन भूस्वामी से शपथ पत्र के साथ उस जमीन का विवरण मांग सकता है जिस जमीन की रसीद उसे पहले दशकों तक मिलती रही थी. भूस्वामी अपने सारे प्लाॅटों का विवरण शपथ पत्र में दे सकता है, ऐसी व्यवस्था की जा सकती है. याद रहे कि गलत शपथ पत्र देने पर छह माह तक की सजा का प्रावधान है. इसलिए कोई गलत शपथ पत्र क्यों देगा?
अपराध के पीछे दिमागी गड़बड़ी! : 1990 में अमेरिका में 25 सजायाफ्ता अपराधियों के दिमाग का इमेजिन तकनीकी से अध्ययन किया गया था. अधिकतर अपराधियों के दिमाग के अगले हिस्से में विकार पाया गया. अपराधियों के दिमाग के उस हिस्से की कुछ गतिविधियां एक जैसी पायी गयीं. इस शोध नतीजे का लाभ भारत भी उठा सकता है.
हत्या के मामलों में विचाराधीन कैदियों के दिमाग का अध्ययन किया जा सकता है. इमेजिन तकनीकी से अध्ययन के नतीजों की मान्यता अदालतों से भी मिले, इसके लिए कानून बनाया जा सकता है. यदि ऐसे दिमागी दोष वाले आरोपितों के लिए अलग से कुछ सुधारात्मक या दंडात्मक उपाय हों, तो जघन्य अपराध की घटनाओं में कमी आ सकती है.
नेहरू ने भेजी थी शिव की प्रतिमा : प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एलिजाबेथ-प्रिंस फिलिप की शादी के अवसर पर उपहार स्वरूप भगवान शिव की चांदी की मूर्ति भेजी थी. इसके साथ ही प्रधानमंत्री की ओर से भेजे गये उपहारों में ‘डिस्कवरी आॅफ इंडिया’ और नेकलेस भी शामिल थे.
उधर, महात्मा गांधी ने अपने हाथ से काटी गयी सूत से बुना टेबल क्लाॅथ भिजवाया था. गांधी ने कहा था कि मेरे पास इसके अलावा देने के लिए कुछ नहीं है. माउंटबेटन की सलाह पर महात्मा गांधी ने यह उपहार भेजा था. पता नहीं कि सेक्युलर जवाहर ने किसकी सलाह पर शिव की मूर्ति भेजी थी? क्या आज का कोई प्रधानमंत्री ऐसी हिम्मत कर सकेगा? आज के अल्ट्रा सेक्युलरिस्ट उन्हें ‘जीने’ देंगे? याद रहे कि वह शादी 20 नवंबर, 1947 को हुई थी.
और अंत में : बिहार सरकार ने गुम हुए तालाबों की तलाश शुरू कर दी है. कई मिल रहे हैं. कई अब भी लापता हैं. लक्ष्य है कि जितने तालाब मिलेंगे, उनकी सरकार सफाई करायेगी. यह अच्छी बात है. पर, इस संबंध में एक सुझाव है. जिन तालाबों की उड़ाही हो जाएं, उसके पास एक मजबूत बोर्ड लगाया जाना चाहिए. उस पर यह खुदा होना चाहिए कि इसकी सफाई किस अफसर की देखरेख में किस एजेंसी ने करवायी. उस पर कितने पैसे लगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें