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बिहार बजट विशलेषण : बजट में समग्र विकास दृष्टि ढूंढ़ने की चुनौतियां

प्रो डीएम दिवाकर अर्थशास्त्र विभाग, अनुग्रह नारायण सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान, पटना वार्षिक बजट किसी भी सरकार के विकास के नीतियों की दिशा बताती है. भारत सरकार के रवैया से अलग बिहार सरकार ने स्थापित परंपरा का निर्वाह करते हुए 11 फरवरी को बिहार आर्थिक समीक्षा 2018-19 भी पेश किया है, जिससे राज्य के अर्थ […]

प्रो डीएम दिवाकर
अर्थशास्त्र विभाग, अनुग्रह नारायण सिन्हा
समाज अध्ययन संस्थान, पटना
वार्षिक बजट किसी भी सरकार के विकास के नीतियों की दिशा बताती है. भारत सरकार के रवैया से अलग बिहार सरकार ने स्थापित परंपरा का निर्वाह करते हुए 11 फरवरी को बिहार आर्थिक समीक्षा 2018-19 भी पेश किया है, जिससे राज्य के अर्थ व्यवस्था की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सके. बिहार की आर्थिक समीक्षा बताती है कि राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 2016-17 में 9.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 11.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है. वर्ष 2011-12 से 2016-17 के बीच राज्य का सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत है, जो 2011-12 से 2015-16 के बीच की बढ़ोतरी 7.6 से कम है.
अगर वार्षिक दर में वृद्धि है तो औसत दर में कमी कैसे दिखाया गया है? ये आंकड़े असंगत प्रतीत होते हैं. दोनों आंकड़े सही नहीं हो सकते हैं. खेती और संबद्ध की स्थिति 10.1 से घटकर 1.4 का अनुमान है, जहां 2011-12 से 2016-17 के बीच में वृद्धि दर मात्र 0.1 प्रतिशत है. यह हालात तब है जब कहने को कृषि कैबिनेट, कृषि रोडमैप और अनेक योजनाएं चल रही हैं. लगभग 96 फीसदी सीमांत और लघु किसान हैं जिनका खेती ही जीविका का मुख्य साधन है.
सरकार खुद मान रही है कि डीजल अनुदान में बढ़ोतरी करनी पड़ी है. बजट में टिकाऊ खेती के लिये प्रभावी भूमि एवं जल प्रबंधन पर जो तवज्जो चाहिए वह नहीं मिलता दिख रहा है. उद्योग के क्षेत्र में विकास दर में गिरावट 7.6 से घटकर 2.7 हो गया है, लेकिन वित्तमंत्री सुशील कुमार मोदी बिहार आर्थिक समीक्षा के आधिकारिक आंकड़े के बजाय रोजगार के लिए क्रिशिल के रिपोर्ट का हवाला दे रहे हैं.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना में 2013-14 में 1.30 करोड़ जाॅब कार्ड निर्गत किये गये जिसमें केवल 15.1 फीसदी को कुछ दिन काम मिले. केवल 6 फीसदी को 100 दिन काम मिले. यह प्रतिशत घटकर 2016-17 में मात्र 0.6 हो गया और 2017-18 में 0.7 ही रहा. यह हाल रोजगार गारंटी कानून के अनुपालन का है.
बजट में रोजगार विस्तार की कोई स्पष्ट योजना नहीं दिखती है. सामाजिक विकास के क्षेत्र में योजना के आकार में बढ़ोतरी के साथ खर्च में वृद्धि हुई है, किंतु अनुपात घटता गया है.
उदाहरण के लिए शिक्षा के ही सार्वजनिक खर्च को लिया जा सकता है. 2013-14 में कुल खर्च का 18.7 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया गया, जो 2014-15 में 17.5, 2015-16 में 17.1, 2016-17 में 16.0 और 2017-18 में 16.5 रहा है. वर्ष 2018-19 में फिर से बढ़ाकर 2013-14 अनुपात के बराबर किया गया, किंतु 2019-20 में यह अनुपात घटकर लगभग 17.4 हो गया है.
जबकि सातवां वेतन आयोग की सिफारिश को भी लागू करना है. यानी नयी नियुक्तियां होने की संभावना कम दिखती हैं. स्कूल-काॅलेज और विश्वविद्यालय शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. शिक्षा व्यवस्था बेपटरी है. स्वास्थ्य की भी हालात अच्छी नहीं है. मेडिकल काॅलेज खोलने की घोषणा सुकून देने वाली है. आशा है सार्वजनिक क्षेत्र में ही खुलेगी अन्यथा उसका भी कोई खास लाभ नहीं होगा.
कुल मिलाकर छिटपुट घोषणाओं का बजट
वित्त मंत्री ने कहा कि हम सरप्लस राज्य हैं जिसके कारण केंद्र से विशेष सहायता में लाखों करोड़, जो अन्य राज्यों को मिलते हैं वे हमें नहीं मिलते. कितना हास्यास्पद है कि निर्धनतम राज्य के पास राजस्व बचत बजट, बेरोजगारी और गरीबी की पराकाष्ठा है. हमारी सरकार को वित्तीय प्रबंधन की खुशी है!
हम खर्च नहीं कर सकते, योजना नहीं बना सकते हैं, राजस्व व्यय नहीं बढ़ा सकते हैं. कुल मिलाकर खेती, सिंचाई, उद्योग, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की चुनौतियों के साथ गरीबी से लड़ने का संतोषजनक समग्र योजना के बजाय छिटपुट घोषणाओं का बजट इसे कह सकते हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
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