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पटना : ब्रांडेड के फेर में अटकी ‘अमृत’

अनुपम कुमार बमुश्किल 10 फीसदी मरीज ही ले पा रहे लाभ पटना : केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के द्वारा शुरू की गयी अमृत योजना के अंतर्गत 18 नवंबर 2016 को प्रदेश के सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल आइजीआइएमएस में सस्ती दवाओं की दुकान खुली. अस्पताल प्रशासन ने योजना के प्रावधानों के अनुरूप एजेंसी को ओपीडी के गेट पर […]

अनुपम कुमार
बमुश्किल 10 फीसदी मरीज ही ले पा रहे लाभ
पटना : केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के द्वारा शुरू की गयी अमृत योजना के अंतर्गत 18 नवंबर 2016 को प्रदेश के सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल आइजीआइएमएस में सस्ती दवाओं की दुकान खुली. अस्पताल प्रशासन ने योजना के प्रावधानों के अनुरूप एजेंसी को ओपीडी के गेट पर 22 फीट लंबी और 18 फीट चौड़ी जगह उपलब्ध करवायी.
योजना के प्रावधानों के अनुरूप दवा दुकान चलाने वाली एजेंसी अलग अलग दवाओं की एमआरपी पर 30 से 70 फीसदी तक छूूट देती है. लेकिन बमुश्किल 10 फीसदी मरीज ही इन सस्ती दवाओं का लाभ ले पा रहे हैं. वजह ब्रांड नेम है. जिन ब्रांड की दवाएं लिखी जाती हैं, उनमें से ज्यादातर यहां उपलब्ध नहीं हैं. बांड बदलने से दवाओं का नाम बदल जाता है. कंपोजिशन समान रहने के बावजूद बदले नाम की दवा मरीज लेने में झिझकता है और कभी ले भी गया तो अगले दिन उसे वापस कर देता है.
1655 दवाओं का दावा, पर लिखे ब्रांड नहीं मिलते
अमृत योजना के अंतर्गत आइजीआइएमएस में चलने वाली दवा दुकान के कर्मियों ने 1655 तरह की दवाएं उपलब्ध होने का दावा किया, जिसमें 1255 दवाएं और 400 सर्जिकल आइटम हैं.
लेकिन इसके बावजूद जिन ब्रांड की दवाओं को संस्थान के डॉक्टरों द्वारा लिखा जाता है, उसमें ज्यादातर का यहां उपलब्ध नहीं होना हैरत में डालता है. दवा दुकान चलाने वाली एजेंसी या तो इसके प्रति संवेदनशील नहीं है या फिर संस्थान के डॉक्टर जानबूझकर ऐसी दवाएं लिखते हैं जो कुछ खास दुकानों पर ही उपलब्ध होती हैं. संस्थान प्रशासन का इस मामले में सख्त कदम नहीं उठाना भी सवाल खड़े करता है.
स्टॉक की कमी से मरीज नहीं जाते
अमृत योजना के अंतर्गत खोली गयी दुकान में दवाओं के स्टॉक की कमी रहती है. इसकी वजह से मरीज को ज्यादातर दवाएं वहां नहीं मिल पाती है. जब भी उसे इसके बारे में कहा गया है तो वह ब्रांड डिफरेंस या अन्य बात कह कर टालने का प्रयास करता है. इसकी स्थापना मूलत: सर्जिकल आइटम, इप्लांट उपकरण, स्टेंट आदि की सस्ती उपलब्धता के लिए की गयी थी, लेकिन वह भी उसके पास पूरी तरह नहीं मिलता है.
—डॉ. मनीष मंडल, चिकित्सा अधीक्षक, आइजीआइएमएस

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