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छठ पर्व के लिए शुद्ध गंगाजल पहुंचाने का शासन करे उपाय

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक प्रयाग कुम्भ को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने चमड़े के कारखानों को तीन महीने के लिए बंद कर देने का आदेश दे दिया है. यदि कुम्भ के लिए ऐसा हो सकता है तो छठ पर्व के लिए क्यों नहीं? जबकि, गंगा किनारे के छठवर्तियों की कुल आबादी कुम्भ में जुटने […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
प्रयाग कुम्भ को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने चमड़े के कारखानों को तीन महीने के लिए बंद कर देने का आदेश दे दिया है. यदि कुम्भ के लिए ऐसा हो सकता है तो छठ पर्व के लिए क्यों नहीं? जबकि, गंगा किनारे के छठवर्तियों की कुल आबादी कुम्भ में जुटने वालों से कम नहीं है.
छठवर्ती कई राज्यों में फैले हैं. साधु-संतों ने सरकार को धमकी दी है कि यदि प्रयाग में शुद्ध गंगाजल की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं की गयी तो वे कुम्भ के शाही स्नान का बहिष्कार कर देंगे. उनकी मांग जायज है. गंगा के किनारे चमड़े के कारखानों की स्थापना की अनुमति देकर सरकार ने गंगा के साथ जो अन्याय किया है, उसकी क्षति-पूर्ति आखिर कौन करेगा? सरकार ही तो करेगी. वह कर भी रही है.
याद रहे कि तीन महीने तक चमड़ा कारखाने को बंद रखने से चमड़ा उद्योग को 12 सौ करोड़ रुपये का नुकसान होगा. फिर भी योगी सरकार ने गत सितंबर में ही यह आदेश जारी कर दिया कि इस साल 15 दिसंबर से अगले साल 15 मार्च तक 264 कारखाने बंद रहेंगे. ये कारखाने कानपुर और उन्नाव जिलों में गंगा किनारे स्थित हैं.
छठ पर्व में गंगाजल का महत्व : छठ पर्व के अवसर पर बिहार, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लोग गंगा के किनारे सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस अवसर पर गंगा स्नान भी होता है. साथ ही प्रसाद बनाने में भी गंगाजल का इस्तेमाल होता है. अभी बिहार में जो गंगाजल है, उसमें गंगा का जल कितना है और कितना नदी-नाले का जल है, यह कहना मुश्किल है. उसे छूने से भी बीमारियों का खतरा है.
चाहे गंगाजल कितना भी गंदा हो जाये, नदी के पास के लोग छठ पर्व के अवसर पर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने गंगा किनारे जायेंगे ही ? ऐसे में सरकाराें का यह कर्तव्य है कि वे दूषित गंगाजल से लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करे. इस महीने के मध्य में छठ पर्व है. क्या चमड़ा उद्योग की बंदी की अवधि बढ़ायी नहीं जा सकती है? या फिर कम से कम छठ के ठेकुआ बनाने के लिए शुद्ध गंगाजल की आपूर्ति उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नहीं की जा सकती?
वायु प्रदूषण से कौन दिलायेगा मुक्ति : सड़कों पर अतिक्रमण और वायु में प्रदूषण! अब यही इस देश के अधिकतर नगरों-महानगरों की पहचान है.
हर साल जाड़े में यह समस्या बढ़ जाती है. पर जाड़ा समाप्त होने के बाद सरकारें व संबंधित गैर सरकारी एजेंसियां सो जाती हैं. जिस तरह सड़कों पर से अतिक्रमण हटाने का काम सालों भर चलता रहता है, उसी तरह वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सालों भर प्रयास की जरूरत है.
पर हमारे देश की सरकारें इतनी नरम हैं कि वायु प्रदूषण के कारकों के खिलाफ सख्त व असरदार कार्रवाई ही नहीं कर पाती. नतीजतन आम लोग भारी परेशानी में पड़ते रहते हैं. अदालतें बार-बार निदेश देती हैं, पर शासन के लोग सुस्त रहते हैं. दरअसल, सरकार चलाने वाले लोग तो एसी गाड़ियों में चलते हैं. इसलिए वे क्या जानें सड़कों का असली हाल क्या है! यह अब खुला तथ्य है कि भारी वायु प्रदूषण अनेक लोगों की जानें ले रहा है. यह धीमा जहर है.
शासक गण कम से कम उनकी जान बचाने के लिए तो कुछ कड़ाई करें! देश की कई अदालतों ने कई बार सरकारों से कहा कि 15 साल से अधिक के वाहनों को सड़कों से हटा दिया जाये. पटना जैसे नगर में तो पुराने आॅटो, ट्रक, बस अधिक खतरनाक बन चुके हैं. किसी सरकार के लिए लोगों की जान से अधिक कोई दूसरी चीज महत्वपूर्ण नहीं होनी चाहिए. वायु प्रदूषण के कारकों के खिलाफ कठोर से हिचकने वाली सरकारें अपने मूल काम से विमुख हो रही हैं.
जब लोगों के लिए सांस लेना दुश्वार हो जाये तो भी प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं होगी?
प्राथमिक शालाओं में गढ़ी जाती हैं कई पीढ़ियां एक मशहूर कहावत है कि ‘किसी भी राष्ट्र की नियति प्राथमिक शालाओं की कक्षाओं में गढ़ी जाती है.’ अंग्रेजों के शासनकाल में इस देश में स्कूलों व काॅलेजों में क्रमशः हेड मास्टर और प्राचार्य बनाने के लिए लगभग सामान्य योग्यता की जरूरत होती थी. उदाहरण के लिए आरएफ कूपर 1915 से 1920 तक जीबीबी काॅलेज के प्राचार्य थे.
वही कूपर साहब 1924 से 1926 तक रांची जिला स्कूल के हेड मास्टर रहे. कुछ दिनों तक वे पटना काॅलेजिएट स्कूल के हेड मास्टर भी थे. ऐसे 13 काॅलेज प्राचार्यों की सूची मेरे पास है जो स्कूलों के हेड मास्टर भी रहे. आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक भी बिहार की स्कूली शिक्षा ठीकठाक रही. इससे पता चलता है कि स्कूली शिक्षा को अंग्रेज कितना अधिक महत्व देते थे.
पर इस देश और प्रदेश में आज क्या हो रहा है? आज बिहार में एक अलग तरह की होड़ मची है. कुछ संबंधित लोग एक तरफ शिक्षा को सुधार कर उसे फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं तो कुछ अन्य प्रभावशाली लोग उस कोशिश को विफल करने पर अामादा हैं. देखना है कि इस ‘युद्ध’ में अंततः कौन जीतता है.
भूली-बिसरी याद : सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के नयी दिल्ली स्थित सरकारी आवास के पास आईबी के चार व्यक्तियों को जासूसी के आरोप में गत माह गिरफ्तार किया गया था. हालांकि, गृह मंत्रालय ने बाद में कहा कि वे जनपथ जैसे महत्वपूर्ण इलाके में सामान्य सरकारी सुरक्षा ड्यूटी पर थे. वे किसी अफसर की जासूसी नहीं कर रहे थे.
इस घटना के बाद जनपथ पर ही 1991 में हुई एक घटना की याद आ गयी. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जनपथ स्थित 10 नंबर की कोठी में रहते थे. उनके आवास के सामने 2 मार्च 1991 को हरियाणा खुफिया पुलिस के दो जवान प्रेम सिंह और राज सिंह को पकड़ लिया गया. तब हरियाणा में गैर कांग्रेसी सरकार थी. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है.
इस घटना से गुस्साए कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया और लोकसभा के चुनाव हो गये. पर हकीकत यह थी कि राजीव गांधी की जासूसी नहीं हो रही थी. दरअसल, हरियाणा के उन नेताओं पर नजर रखी जा रही थी जो राजीव गांधी से मिलने आते थे. दरअसल देवी लाल के दोनों पुत्रों ओम प्रकाश चौटाला और रणजीत सिंह के बीच राजनीतिक रस्साकसी चल रही थी.
हरियाणा पुलिस को रणजीत सिंह और देवीलाल की पार्टी के दूसरे असंतुष्टों पर नजर रखनी थी. याद रहे कि तब देवीलाल चंद्रशेखर के साथ थे. कांग्रेेस चंद्रशेखर सरकार से कुछ अन्य कारणों से असंतृष्ट थी, इस बीच हरियाणा पुलिस जासूसी का बहाना राजीव गांधी को मिल गया. उन्होंने चंद्रशेखर सरकार को मिल रहे कांग्रेस के समर्थन को वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर चुनाव कराने की राष्ट्रपति से सिफारिश कर दी.
और अंत में : मालेगांव विस्फोट कांड में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने इसी मंगलवार को ले. कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित सात आरोपितों पर आतंकी साजिश व हत्या के आरोप तय कर दिये. उधर, हाशिमपुरा नरसंहार मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को निचली अदालत का निर्णय पलटते हुए 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई.
अब दूसरे पक्ष को भी चाहिए कि वह याकूब मेमन जैसे आतंकियों के लिए आधी रात में सुप्रीम कोर्ट की बैठक नहीं करवाएं. जाति-धर्म पर विचार किये बिना जिसका जितना कसूर हो, उसे उतनी सजा मिलती रहेगी तो इस देश में जातीय-सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखने में सुविधा होगी.

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