सुरेंद्र किशोर
राजनीतिकविश्लेषक
केंद्र सरकार ने यह उम्मीद जगायी है कि अब ‘असली गंगाजल’ जल्द ही पटना के किनारे बह रही नदी में भी उपलब्ध होगा. पटना के किनारे जो नदी बहती है, उसे अब भी हम भले गंगा नदी ही कहते हैं, पर उसमें जो पानी बहता है, उसमें असली गंगा जल नहीं होता. असली गंगाजल वह है जो गोमुख से निकलता है और अपने में औषधीय गुण समेटे हुए आगे बढ़ता है. पर पटना पहुंचने से काफी पहले उसे बीच में ही रोक लिया जाता है.
गंगा में जो जल हम यहां पाते हैं, वह वर्षा, सहयोगी नदियों और नालों का मिलाजुला पानी है जो पीने योग्य कौन कहे, छूने -नहाने लायक भी नहीं है. अब एक नयी खबर आयी है. बिहार और पटना के लिए इससे बेहतर खबर हो ही नहीं सकती. अब यहां भी असली ‘गंगाजल’ गंगा नदी में सालों भर मिल सकेगा. केंद्र सरकार ने हर मौसम में गंगा नदी में असली गंगाजल का एक निश्चित प्रवाह बनाये रखने से संबंधित अधिसूचना जारी कर दी है. खबर के अनुसार हरिद्वार स्थित बैराज से हर साल अक्तूबर से मई तक 36 क्यूबिक मीटर पानी प्रति सेकेंड छोड़ना होगा. पर सवाल है कि मात्र इतने पानी से पूरी गंगा नदी में अविरलता व निर्मलता बनी रह सकेगी? यह तो बाद में पता चलेगा. इस बारे में विशेषज्ञ बतायेंगे. पर, चलिए शुरुआत अच्छी है.
उम्मीद है कि औषधीय गुणों वाला पानी पटना भी अब लगातार पहुंचेगा. ऐसा नहीं होना चाहिए कि 2019 के चुनाव के बाद एक बार फिर रुक जाये. वर्षों से यह मांग होती रही है कि गंगा में अविरलता के बिना निर्मलता नहीं आयेगी. आजादी के समय तक गोमुख से गंगा सागर तक गंगाजल अपने औषधीय गुणों के साथ बहता रहता था.
अंग्रेजों ने भी हमारी गंगा को बर्बाद नहीं किया था. अकबर बादशाह तो रोज ही गंगाजल पीता था. पर, आजाद भारत के हमारे नीति निर्धारकों ने गंगाजल को बीच में ही रोक लिया. गंगा को प्रदूषित कर दिया या हो जाने दिया. उसे हाईड्रो प्रोजेक्ट, बराज व नहरों के जरिये बर्बाद किया गया. इनका विकल्प खोजा जा सकता था.
किसी अन्य देश में औषधीय गुण लिए जल वाली कोई इतनी बड़ी, लंबी और पवित्र नदी होती तो उस देश के हुक्मरान उसे संभाल कर रखते. बेहतर तो यह होगा कि अविरल गंगा की राह में जितनी भी बाधाएं हैं, उन्हें अब भी दूर कर दिया जाये. साथ ही उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड को उससे जो क्षति हो, उसकी पूर्ति देश के अन्य हिस्सों के लोग करें.
अविरलता भी पूरी होनी चाहिए, अधूरी नहीं. 14 जून 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत वाराणसी में की थी. तब से हजारों करोड़ रुपये उस पर खर्च हो गये. पर गंगा और अधिक प्रदूषित होती चली गयी. क्योंकि उसे अविरल बनाने पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया. हाल में कई शहरों में जो वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की जो बड़ी शुरुआत हुई है, उससे थोड़ा फर्क पड़ेगा. पर पूरा फर्क तो अविरल बनाने से ही पड़ेगा.
सुरक्षा गार्डों पर खर्च करें दुकानदार : पटना के डीएम ने आदेश दिया है कि दुकान के सामने रोड पर कोई पार्किंग नहीं होगी. पार्किंग तो पार्किंग के लिए निर्धारित स्थलों पर ही होनी चाहिए. पटना के डीएम का यह आदेश कानूनन भी है और मौजूं भी. ऐसे आदेश को तो राज्य के सभी नगरों में लागू किया जाना चाहिए. पर, सवाल है कि इसे लागू करने की ताकत दुकानदारों के पास है? कितने वाहन चालक इसे मानेंगे?
यदि नहीं मानेंगे तो हर मार्केट के दुकानदार अपने बाजार के लिए निजी सुरक्षा गार्ड भाड़े पर रख लें. यदि आपने बिना पार्किंग की व्यवस्था वाली दुकानों को भाड़े पर ले लिया है तो उसके दंड के रूप में सुरक्षा गार्डों पर आपको खर्च तो करना ही चाहिए. दरअसल, शहर में पार्किंग का उचित प्रबंध हो जाये तो कई दुकानदारों की आय भी बढ़ जायेगी. पार्किंग के अभाव में कई खरीदार पटना के कुछ खास इलाकों में स्थित बाजारों में चाह कर भी नहीं जा पाते.
पारदर्शी हेलमेट क्यों नहीं! : अक्सर यह बात सामने आती है कि हत्यारे ने हेलमेट पहन रखा था, इसलिए सीसीटीवी कैमरे में उसका चेहरा नहीं आ सका. विज्ञान काफी प्रगति कर चुका है. कारों में बुलेट प्रूफ पारदर्शी शीशे लगाये जाते हैं. फिर हेलमेट में ऐसा शीशा क्यों नहीं लगाया जा सकता है जो टूटने वाला नहीं हो. यानी जो किसी दुर्घटना की स्थिति में भी न टूट सके. हां, थोड़ा महंगा जरूर पड़ेगा, पर आजकल मोटर साइकिलें भी तो बहुत महंगी आ रही हैं. लोगबाग उसे भी खरीद ही रहे हैं.
जब हत्यारों व लुटेरों से आम लोगों को बचाना हो तो उसके लिए कुछ विशेष उपाय तो करने ही होंगे. इसलिए सरकारों को चाहिए कि वे हेलमेट निर्माताओं से कहे कि वे नहीं टूटने वाले शीशे वाले हेलमेट बनाएं. धीरे-धीरे ऐसे हेलमेट को प्रचलन से बाहर किया जाये जिसे पहनने पर चेहरा छिप जाता है.
घोटालों पर एक और पुस्तक : बिहार के ताजा घोटालों पर सुशील कुमार मोदी की पुस्तक आयी है. इससे पहले नब्बे के दशक में तब के घोटालों पर सरयू राय की एक पुस्तिका आयी थी. उस पुस्तिका में जिन घोटालों के सप्रमाण विवरण दिये गये थे, उनमें से अधिकतर मामलों में सजाएं हुई हैं.
हो रही हैं. अब देखना है कि मोदी जी की पुस्तक में वर्णित घोटालों से संबंधित मुकदमों का क्या हश्र होता है. चिंता की बात यह है कि सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि अपना यह देश घोटाले के एक दौर से निकल कर दूसरे दौर में प्रवेश कर जाता है. घोटालेबाजों को जेल के बाहर व भीतर बहुत कष्ट भी होते हैं. फिर भी घोटाले नहीं रुकते. तरह-तरह के घोटालों के लिए इस देश के अधिकतर दलों को समय-समय पर कमोवेश परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार बताया जाता है. सब जानते हैं कि कफन में जेब नहीं होती, फिर भी घोटाले होते ही जाते हैं. पता नहीं, यह सब कब रुकेगा और कौन रोकेगा?
भूली-बिसरी याद : 11 अक्तूबर जेपी का जन्मदिन है तो 12 अक्तूबर लोहिया की पुण्यतिथि. ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि ये दिग्गज नेता द्वय एक-दूसरे के बारे में क्या सोचते थे. उनकी चिट्ठियों से तो एक झलक मिलती ही है.
30 मार्च 1954 को डाॅ राम मनोहर लोहिया ने जय प्रकाश नारायण को लिखा कि ‘देश से तुम्हारा ममता का संबंध है. देश और पार्टी को हिलाने का समय आ गया है. जैसा तुम हिला सकते हो, वैसा और कोई नहीं हिला सकता. मुझसे वह काम नहीं हो सकता.’ डाॅ लोहिया ने लिखा कि अब तो देवघर में भी पंडों के यहां मेरे वंश का खाता बंद हो चुका है. मथुरा में पहले ही हो चुका है. मेरा रास्ता और कुछ है. कुछ-कुछ तुम्हारा भी वही हाल है, पर तुम्हारी बीवी, भाई-भतीजे हैं.
तुम्हीं देश के नेता हो सकते हो. मेरी अंतरात्मा कहती है कि तुम्हें पार्टी संभालनी चाहिए.’ उसके जवाब में जय प्रकाश नारायण ने लिखा, ‘तुम्हारे स्वास्थ्य के बारे में बेनीपुरी जी से हाल मिला था. चिंता हुई थी और है. उसके संभाल के लिए यत्न करना चाहिए. मेरे जो इस समय विचार हैं, उसे जानते हुए यह प्रस्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिए. देश को हिला सकने की शक्ति मुझमें न कभी थी, न आज है. न उस प्रकार हिलाने का मेरे लिए बहुत महत्व है. और मैं खुद जो हिल चुका हूं.’
और अंत में : ‘मी टू’ यानी ‘मैं भी अभियान’ के तहत लगाये जा रहे आरोपों को यदि गंभीरता से लिया जाये और सबूत मिलने पर दोषियों को सजा भी मिलने लगे, तो राजनीतिक क्षेत्र में आधी आबादी की संख्या बढ़ जायेगी. इससे देश व समाज को अन्य तरह के भी फायदे होंगे.