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योग्य शिक्षकों की देशव्यापी कमी की समस्या की लगातार अनदेखी
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक शिक्षक दिवस एक पावन अवसर है. इस मौके पर शिक्षा के गिरते स्तर पर गंभीर चर्चा की उम्मीद की जाती है. इस समस्या को लेकर देश के शिक्षाविद, नेता और शिक्षक प्रतिनिधि कोई गंभीर विचार-विमर्श करेंगे, ऐसी उम्मीद स्वाभाविक है. पर अपवादों को छोड़ कर ऐसा इस बार भी नहीं हो […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
शिक्षक दिवस एक पावन अवसर है. इस मौके पर शिक्षा के गिरते स्तर पर गंभीर चर्चा की उम्मीद की जाती है. इस समस्या को लेकर देश के शिक्षाविद, नेता और शिक्षक प्रतिनिधि कोई गंभीर विचार-विमर्श करेंगे, ऐसी उम्मीद स्वाभाविक है.
पर अपवादों को छोड़ कर ऐसा इस बार भी नहीं हो सका. इस देश-प्रदेश में अब भी योग्य शिक्षक हैं. पर उनकी तेजी से कमी होती जा रही है. क्योंकि, शालाओं में ही शिक्षण-परीक्षण की हालत दयनीय है. पर्याप्त संख्या में अच्छे शिक्षक निकलेंगे कहां? देश में छात्रों के अनुपात में भी शिक्षकों की भी भारी कमी है.
‘शिक्षक दिवस’ पर शिक्षकों की महत्ता व उनकी कुछ मूलभूत समस्याओं के साथ-साथ यह कमी भी याद आ जाती है. इस कमी के लिए सिर्फ शिक्षक जिम्मेदार नहीं है. अधिक जिम्मेदार तो दूसरे संबंधित लोग हैं. जहां परीक्षाओं में कदाचार की छूट हो और प्राप्तांकों के आधार पर शिक्षकों की बहाली हो जाये, वहां शिक्षकों में गुणवत्ता कहां से आयेगी? यदि शिक्षकों की बहाली के लिए आयोजित परीक्षा भी कदाचार से मुक्त न हो, तो फिर वहां क्या होगा? हालांकि, इस देश में तो लगभग हर तरह की परीक्षा में कदाचार की खबरें आती रहती हैं.
यहां तक कि मेडिकल-इंजीनियरिंग परीक्षाओं में भी. पर शिक्षक भर्ती परीक्षा में कदाचार अधिक मारक है. शिक्षकों पर तो हर क्षेत्र के लिए योग्य छात्र तैयार करने की जिम्मेदारी है. वहीं कमी रह जायेगी तो उसका कुप्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ेगा. कदाचार को कैसे लोहे के हाथों से रोका जाये, इस पर देश में गंभीर चर्चा की जरूरत है. पर चर्चा नहीं होती. शिक्षक दिवस को ऐसी चर्चा का अवसर बनाया जा सकता है.
यदि कदाचार नहीं रोका जायेगा तो पर्याप्त संख्या में योग्य शिक्षक कैसे व कहां से पैदा होंगे? अब भी योग्य शिक्षक उपलब्ध हैं, पैदा भी हो रहे हैं. पर साथ-साथ ऐसे शिक्षक भी स्कूलों में पहुंच जा रहे हैं जिन्हें जनवरी-फरवरी जैसे अंग्रेजी शब्दों की स्पेलिंग तक नहीं आती. हाल में बिहार सरकार के धावा दलों ने भी पाया कि राज्य के स्कूलों में अनेक शिक्षक अयोग्य हैं. ऐसे में अगली पीढ़ियों को भी बर्बाद होने से आखिर कौन बचायेगा? हां, शिक्षक दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह जरूर कहा है कि हमारे यहां अयोग्य उम्मीदवार शिक्षक नहीं बनेंगे. अपने राज्य के शिक्षकों से उन्होंने अपील की है कि आप जिस विद्यालय में पढ़ाते हैं, उन्हीं विद्यालयों में अपने बाल-बच्चों को भी पढ़ाएं. यानी मुख्यमंत्री ने सबसे बड़ी समस्या की ओर लोगों का ध्यान खींचा है.
अब लोगों को चाहिए कि वे योगी सरकार पर दबाव डाल कर सरकारी स्कूलों की आधारभूत संरचना की कमियों को दूर करवाएं, ताकि शिक्षक अपने बाल-बच्चों को अपने ही स्कूल में पढ़ाने के बारे में सोचें.
सत्यपाल मलिक का सत्य : 3 मई 2018 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पटना के एक सार्वजनिक समारोह में कहा था कि ‘बिहार में शायद ही कोई नेता होगा जिनका बीएड काॅलेज नहीं है. मैंने कार्रवाई की तो सब मेरे खिलाफ हो गये. पर मैं किसी से डरने वाला नहीं हूं. मेरे साथ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का मैंडेट है.’
बीएड काॅलजों में शैक्षणिक सुधार के काम में मलिक साहब लगे ही हुए थे कि उनका तबादला हो गया. अफवाह उड़ी कि शिक्षा माफिया ने उन्हें कश्मीर भिजवा दिया, जबकि यह बात गलत थी. उनकी योग्यता-क्षमता के उपयोग के लिए उन्हें एक कठिन प्रदेश में भेजा गया है. नये राज्यपाल लालजी टंडन ने बिहार के लोगों को यह आश्वासन दिया है कि मैं उस काम को आगे बढ़ाउंगा जिसे मेरे पूर्ववर्ती ने शुरू किया था.
नहीं बदलतीं कुछ चीजें : इंदिरा गांधी ने कहा था कि यदि मेरी हत्या भी हो जायेगी तो प्रतिपक्ष कहेगा कि उसके लिए भी मैं ही जिम्मेदार हूं. आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश से संबंधित खबर बाहर आ रही है तो प्रतिपक्ष के एक हिस्से का उस खबर पर कैसा रवैया है? वह तो सब देख ही रहे हैं. दरअसल इस देश में कुछ चीजें बदल ही नहीं रही हैं. बल्कि दिन प्रतिदिन उनके वीभत्स रूप ही सामने आ रहे हैं.
लूट के अनुपात में रिश्वत : निगरानी दस्ते ने मनरेगा के प्रोग्राम अफसर राजीव रंजन को 2 लाख 57 हजार रुपये रिश्वत लेते गिरफ्तार किया. घूस की रकम से किसी स्कीम में लूट के अनुपात की एक झलक मिलती है. मनरेगा को इस मामले में संबंधित अफसरों व अन्य लोगों ने अपने कारनामों से बदनाम कर रखा है. वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा का बजट 55 हजार करोड़ रुपये रखा है.
काश! इतनी बड़ी राशि सरजमीन तक पहुंच पाती. हालांकि, अब इस देश में सौ पैसे में से 85 पैसे नहीं लूटे जाते, पर लूट तो है ही. भारी भ्रष्टाचार के कारण मनरेगा कार्यक्रम में आंशिक सफलता ही मिल पा रही है. क्यों न देश भर के मजदूरोें के बैंक खातों में मनरेगा के पैसे सीधे स्थानांतरित कर दिये जाएं? क्या व्यावहारिक दृष्टि से यह संभव है? इसकी पड़ताल होनी चाहिए.
अन्यथा मनरेगा के बढ़ते बजट से भी इसका लाभ सरजमीन पर कम ही हो पायेगा. हां, बैक खातों के जरिये भुगतान की व्यवस्था करने पर भी कुछ बैंककर्मी व स्थानीय दलाल जरूर लाभान्वित हो रहे हैं. फिर भी 85 प्रतिशत की लूट तो नहीं ही हो रही है. मनरेगा कार्यक्रम से गरीबों को अभी जितना लाभ मिल रहा है, उसकी अपेक्षा अधिक उपलब्धि बैंकों के जरिये भुगतान के बाद होगी।
भूली-बिसरी याद : सीपीआई के दिवंगत विधायक राजकुमार पूर्वे ने लिखा है कि कांग्रेसी नेताओं के आपसी मतभेदों का लाभ उठाकर हमने उच्चस्तरीय सरकारी भ्रष्टाचारों का मामला सदन में उठाया जिसका राजनीतिक लाभ हमें मिला. पूर्वे जी ने अपनी जीवनी ‘स्मृति शेष’ में लिखा है कि सत्येंद्र नारायण सिंह के खिलाफ गुप्त दस्तावेज मुझे महेश प्रसाद सिन्हा देते थे.
एक बार तो केबी सहाय के खिलाफ केस करने के लिए विनोदानंद झा ने मुझे सामग्री मुहैया करायी थी. झा जी तो मुकदमे के खर्चे के नाम पर पैसे भी दे रहे थे, पर मैंने नहीं लिया. सीपीआई के जुझारू नेता राजकुमार पूर्वे 1962, 1967, 1969, 1977 और 1980 में बिहार विधानसभा के सदस्य थे. वे 1972 से 1977 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे. विनोदानंद झा बनाम केबी सहाय प्रकरण की चर्चा करते हुए पूर्वे ने सनसनीखेज बात लिखी है. पूर्वे के अनुसार, ‘विनोदानंद झा ने कहा कि केबी सहाय मुख्यमंत्री पद के हमारे बहुत बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं.
उन पर हाईकोर्ट में मुकदमा दायर करो.’ यह बात उन्होंने गुप्त कागज देते हुए मुझसे कही. मैं अत्यंत खुश हुआ. कागजात लेकर मैं अपनी पार्टी के जाने-माने वकील के माध्यम से केबी सहाय के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया. बीच में विनोदा बाबू ने केस के खर्च के लिए पांच सौ रुपये मेरे फ्लैट में आकर दिये.
पर मैंने पैसे लौटा दिये. मैंने उन्हें कह दिया कि मात्र 20 या 25 रुपये लगेंगे टिकट और टाइपिंग में. इतना तो मैं खर्च कर ही सकता हूं. मैं तो यह मुकदमा करने ही वाला था. याद रहे कि कांग्रेस की कामराज योजना के तहत विनोदानंद झा मुख्यमंत्री पद से हटे और केबी सहाय मुख्यमंत्री बने थे. पूर्वे ने लिखा कि मैं बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेजों की प्रतियों के साथ तथ्यों को सदन में उठाता था. सत्येंद्र नारायण सिन्हा के खिलाफ इन दस्तावेजों की प्रतियां मुझे महेश प्रसाद सिन्हा से मिलती थी. याद रहे कि उन दिनों सत्येंद्र बाबू और महेश बाबू बिहार सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री थे.
और अंत में : महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘रोगों का वास्तविक कारण दुर्भावना या अज्ञानता के कारण प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करना है. यदि हमने समय रहते इन नियमों का पालन करना सीख लिया तो हम नीरोग बन सकते हैं.’ बापू ने एक अन्य जगह कहा कि ‘बीमारियां हमारे पापों का परिणाम हैं.’
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