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विश्व टीबी दिवस आज : गलत डोज लेने से 16% मरीजों का लिवर हुआ खराब, इन जांचों से पकड़ में आयेगा टीबी

प्रदेश के अधिकांश अस्पतालों में कयास पर ही डॉक्टर बता दे रहे टीबी और दे रहे हैं दवा पटना : पटना सहित पूरे बिहार में टीबी के मरीजों को अंदाज पर ही डॉक्टर दवा दे रहे हैं. नतीजा उन दवाओं के सेवन से मरीजों की सेहत पर भारी असर पड़ रहा है. पूरे बिहार में […]

प्रदेश के अधिकांश अस्पतालों में कयास पर ही डॉक्टर बता दे रहे टीबी और दे रहे हैं दवा
पटना : पटना सहित पूरे बिहार में टीबी के मरीजों को अंदाज पर ही डॉक्टर दवा दे रहे हैं. नतीजा उन दवाओं के सेवन से मरीजों की सेहत पर भारी असर पड़ रहा है. पूरे बिहार में करीब 16 और पटना में करीब दो प्रतिशत ऐसे मरीज हैं जिनका लिवर टीबी की गलत दवाओं की वजह से खराब हो रहा है.
यह खुलासा स्टेट टीबी कार्यालय की ओर से जारी रिपोर्ट में भी हो चुका है. कुछ अस्पतालों में तो ऐसे भी केस आ चुके हैं जहां गर्भधारण कर चुकी महिलाओं को भी इलाज के दौरान टीबी की खुराक दी जाती है. इससे महिलाएं दूसरी बीमारी की चपेट में आ जाती हैं. डॉक्टरों ने आधुनिक तकनीक को शामिल करने पर बल दिया है.
कई अस्पतालों में बिना जांच के दी जा रही दवा, मरीज हो रहे परेशान
शहर के सरकारी अस्पताल हों या फिर प्राइवेट दोनों ही जगह टीबी का इलाज जांच पर कम, जबकि कयासों के आधार पर अधिक हो रहा है. खांसी, बलगम एवं मनटॉक्स की रिपोर्ट के आधार पर ही टीबी की दवाएं देनी शुरू कर दी जा रही हैं. महिलाओं के साथ तो स्थिति और भी खराब है. अगर कोई महिला गर्भधारण करने में अक्षम है, तो उसे भी डॉक्टर टीबी की दवा चला देते हैं. वहीं दूसरी ओर गर्भवती को चेस्ट पेन या फिर खांसी हो जाती है, तो कुछ अस्पतालों में डॉक्टर सीधे टीबी की दवा दे देते हैं.
इन जांचों से जल्दी पकड़ में आयेगा टीबी
इंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड, डबल बैलून इंडोस्कोपी, एमआरआई और सीटी स्कैन प्रदेश के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है. इसे बढ़ाने की जरूरत है. इन जांचों की मदद से टीबी रोग आसानी से पहचान में आ सकता है. डॉक्टरों की ओर से खांसी, कफ एवं मानटॉक्स रिपोर्ट के आधार पर टीबी की दवाएं शुरू कर दी जाती हैं.
टीबी की दवा का नौ महीने का कोर्स होता है. ऐसे में बीमारी नहीं होने पर भी लंबी अवधि तक दवा के सेवन से मरीज के लिवर पर काफी खराब असर पड़ता है और अधिकतर मामलों में ट्रांसप्लांट कराने तक की नौबत आ जाती है.
टीबी है तो घबराएं नहीं
पीएमसीएच के चेस्ट एवं टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ सुभाष चंद्र झा ने बताया कि देश में अधिकतर बीमारियां का इलाज संभव हो गया है. टीबी आदि कोई भी बीमारी हो, अगर मरीज समय पर डॉक्टर के पास इलाज कराने आ जाये, तो उसे बचाया जा सकता है. ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं है. डॉ सुभाष ने बताया कि टीबी की पहचान एवं जांच बहुत आसान है, लेकिन इसकी गलत दवा सेहत पर विपरीत असर डालती है.
महज कयासों पर टीबी की खुराक देने से लिवर फेल होने के मामले बढ़े हैं. इंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड व डबल बैलून इंडोस्कोपी जैसी तकनीक से पेट में पानी एवं गांठ का टिशू लेकर आसानी से इस बीमारी के बारे में पता लगाया जा सकता है. इससे टीबी मरीजों की होने वाली मौत को भी आसानी से रोका जा सकता है. साथ ही गलत दवाओं का सेवन भी मरीज नहीं कर पायेंगे.

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