36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

छठ : कठिन तपस्या का उत्सव है यह पर्व, आस्था में दिखता है सुख, समृद्धि और सामाजिक सद्भाव का संगम

आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना पटना : सुर्योपासना के साथ जिस पर्व में सामाजिक सद्भाव, आपसी भाईचारा और के साथ सुख, शांति और समृद्धि का अनोखा मिलन होता है, वह है लोक आस्था का महापर्व छठ. छठ की छटा इतनी निराली है, जहां भी बिखरती है, वहां एक पवित्र भक्तिमय वातावरण का अपने-आप निर्माण हो […]


आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना

पटना : सुर्योपासना के साथ जिस पर्व में सामाजिक सद्भाव, आपसी भाईचारा और के साथ सुख, शांति और समृद्धि का अनोखा मिलन होता है, वह है लोक आस्था का महापर्व छठ. छठ की छटा इतनी निराली है, जहां भी बिखरती है, वहां एक पवित्र भक्तिमय वातावरण का अपने-आप निर्माण हो जाता है. सामाजिक समानता और सद्भाव के इस पौराणिक और पारंपरिक पर्व में लोग एक दूसरे के कब सहयोगी बन जाते हैं, कोई नहीं जानता. किसी की खेती, सब्जी, उसकी संपत्ति इस पर्व के दौरान उसकी नहीं रह जाती. लोग हृदय से छठ व्रतियों को दान देते हैं. किसान सब्जी, गन्ना और फल मुहैया कराते हैं. बाजार में वस्तु क्रय के दौरान मोल-भाव कम हो जाता है. दुकानदार, व्रती जितना देते हैं, उससे ही संतुष्ट हो जाते हैं. हिंदू हो या मुस्लिम एक साथ सब मिलकर व्रतियों के लिए घाट और रास्ते की सफाई करते हैं. पूरी फिजा छठ गीतों से ऐसी सरोबार होती है, जैसे प्रकृति के कानों में भी छठ गीतों का रस घुल गया हो. वर्षों बाद कोई दूर सा रहने वाला अपनी मां से लिपटकर रोता है. छठ में रिश्तों की मिठास सूर्य की किरणों की तरह दमक उठती है. घरों में रिश्तों की रोशनी ऐसी जगमगाती है कि अगले कई सालों तक उसकी गर्मी संबंधों को तरोताजा रखती है. छठ व्रत चार दिनों का होता है, यह चार दिन छठ व्रतियों के लिए कठिन तपस्या के होते हैं.

इस महान पर्व को पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है. स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं. कई दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग, जिनकी इच्छा छठी माई ने पूरी कर दी है, वह भी इस छठ को मनाते हैं. पटना अदालतगंज की रहने वाली जुलेखा खातून छठ के दौरान व्रतियों के लिए मिट्टी का चूल्हा बनाती हैं. 46 वर्षीय जुलेखा 16 सालों से मिट्टी के चूल्हे बना रही हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें बच्चा नहीं था. एक बुजुर्ग मुस्लिम महिला, जो छठ व्रत रखती हैं, उन्होंने जुलेखा से कहा कि वह छठ का व्रत करें. उसके बाद जुलेखा ने छठ किया और उसके अगले साल, उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. तब से जुलेखा छठ करती हैं. छठ व्रत एक कठिन तपस्या की तरह है. यह व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है, कुछ पुरुष भी इस व्रत रखते हैं. व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है. चार दिनों के इस व्रत में व्रति को लगातार उपवास करना होता है. भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है. पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रति फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रातकाटती हैं. इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नये कपड़े पहनते हैं. जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गयी होती है. व्रती को ऐसे कपड़े पहनना अनिवार्य होता है. महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं.

नहाय-खाय से शुरू होने वाला यह पर्व खरना के दिन सेंधा नमक, घी में बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी के होने वाले पारन के साथ पूर्ण रूपेण शुरू हो जाता है. वैसे तो यह भैयादूज के दो दिन बाद से ही शुरू हो जाता है. तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है. खरना के दिन व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरांत प्रसाद ग्रहण करते हैं. तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं. अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं. व्रत के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारम्भ हो गयी, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है. इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है. निरुक्त के रचयिता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है. पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था. सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी गयी.

छठ व्रत की चर्चा रामायण और महाभारत काल के दौरान भी मिलती है. रामायण काल के अनुसार देखें, तो लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की. महाभारत काल की बात करें, तो सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की. कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे. सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे. आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है. कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है. छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है. भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बरतन, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है.

यह भी पढ़ें-
छठ पर्व : सहरसा-आनंद विहार के बीच चलेगी पूजा स्पेशल ट्रेन

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें