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सांप-बिच्छू के बीच अंधेरे में गुजर रही रात
पटना : लबालब पानी ,भादों की काली रात का सन्नाटा और तभी छपाक की आवाज, सुबह होने का इंतजार कर रहे बाढ़ पीड़ित डर से सिहर उठते हैं. ऐसे में जानवरों की डरावनी आवाज और खौफ पैदा कर देती है. एेसे में बिजली के अभाव में पसरा अंधेरा और खौफनाक लगता है. यह हाल है […]
पटना : लबालब पानी ,भादों की काली रात का सन्नाटा और तभी छपाक की आवाज, सुबह होने का इंतजार कर रहे बाढ़ पीड़ित डर से सिहर उठते हैं. ऐसे में जानवरों की डरावनी आवाज और खौफ पैदा कर देती है. एेसे में बिजली के अभाव में पसरा अंधेरा और खौफनाक लगता है. यह हाल है बाढ़ प्रभावित गांवों का. इन गांवों की जिंदगी बे पटरी हो गयी है.
बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित 17 जिलों की लाखों लोगों की जिंदगी बिजली के बिना तबाह हो गयी है. बिजली के बिना उनकी रात गुजर रही है. रात के सन्नाटे में जानवरों को डरावनी आवाज व सांप- बिच्छू के खौफ के साये में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोग जी रहे हैं. उन्हें हर पल लगता है कि मौत उनके करीब है. वे सुबह होने का इंतजार करते हैं. बिजली कंपनी के दावे के इतर करीब हजार गांव अंधेंरे में डूबा हुआ है. सुरक्षा के लिए इन गांवों में बिजली आपूर्ति बंद है. बिजली कंपनी के अधिकारी सही स्थिति बताने के लिए फोन भी नहीं उठा रहे हैं.
सूबे के 17 जिलों की 1688 गांव बाढ़ से प्रभावित है. एक करोड़ से अधिक की आबादी बाढ़ से प्रभावित है. बताया जा रहा है कि सुरक्षा के लिहाज से बाढ़ से घिरी करीब एक हजार गांवों में बिजली रोक दी गयी है. हालांकि बिजली कंपनी इस पर कुछ नहीं कह रही है. बिजली आपूर्ति बंद होने से ग्रामीणों की जिंदगी बड़ा ही दुश्वार हो गया है.
मोबाइल चार्जिंग से लेकर सारा काम प्रभावित हो गया है. दिन तो किसी तरह गुजर जा रहा है लेकिन रात काटना बड़ी मुश्किल हो रहा है. शाम होते ही जब अंधेरा छाने लगता है तो लोगों की जिंदगी अटक जाती है. लोग सुबह होने का इंतजार करते हैं. इस बीच पता नहीं लोग कितनी बार उपर वाले को याद करते हैं. बिजली कंपनी को लोग बताते हैं कि बिजली का कोई संकट नहीं है. जहां पानी बढ़ता है वहां सुरक्षा के लिहाज से आपूर्ति रोकी जाती है. स्थिति सामान्य होने के बाद आपूर्ति शुरु कर दी जाती है. यह सामान्य प्रक्रिया है.
सहरसा
बीते कई दिनों से नेपाल के पहाड़ी इलाकों में हो रही बारिश से कोसी के इलाकों में एक बार फिर जलस्तर बढ़ोतरी से सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी में स्थिति बिगड़ने का खतरा मंडराने लगा है.
हालांकि नवहट्टा, सोनवर्षा व सौरबाजार में पानी घटने के बावजूद हालात विकट हैं. इधर बाढ़ को लेकर सरकार सहित स्थानीय प्रशासन सजग तो काफी दिख रहा है. पूरे दिन इसको लेकर गहमा गहमी भी देखी जा रही है. लेकिन ये इंतजाम रात के अंधेरे में गुम हो जाते हैं. प्रशासन द्वारा चलाये राहत शिविर में आ रही समस्याओं से बाढ़ पीड़ितों की शिकायतें भी सामने आ रही है. प्रभात खबर की टीम ने जब शनिवार रात सलखुआ प्रखंड के बहुरवा राहत केंद्र का जायजा लिया तो केंद्र पर सुरक्षा का इंतजाम शून्य था. साथ ही एक भी प्रशासनिक अधिकारी नहीं दिखा, जो काफी आश्चर्यजनक था. इसके अलावा तटबंध पर भी रात गुजार रहे बाढ़ पीड़ितों के लिए न तो कोई सुरक्षा का इंतजाम दिखा और न ही रौशनी की व्यवस्था.
प्रभात खबर की टीम ने सलखुआ अंतर्गत बाढ़ राहत शिविर का जायजा लिया. देर रात्रि प्रभात खबर की टीम मध्य विद्यालय बहुरवा पहुंची. रात में बाढ़पीड़ित सोने की तैयारी में जुटे थे.
85 वर्षीय बदनिया दासी और अस्सी वर्षीय दुलार देवी पर पड़ी. रात के साढ़े ग्यारह से ज्यादा हो रहे थे और दोनों बाढ़ पीड़ित जगी थी. जब बाढ़ से जुड़ी बातें शुरू कि तो बदनिया दासी लड़खड़ाती जुबान से कहती है कि रक्षा बंधन के दू दिन बाद पानी घुस गैयले, चार दिन सांप-कीड़ा के बीच पानी में दिन-रात रहलिये…दू दिन पहले यहां अइलिए.
मधेपुरा
हर तरफ हहराती घहराती पानी की आवाज सन्नाटे को चीड़ रही थी. नीरव अंधेरी काली रात में अपने बाल बच्चे व पशुधन के साथ रूखा सूखा, बचाखुचा अनाज की रक्षा के लिए लोग जगे हुये थे. यह कहानी आलमनगर प्रखंड के गंगापुर पंचायत के वार्ड नंबर छह की ही नहीं. अपितु पूरे बाढ ग्रस्त इलाके की तसवीर बयां कर रही है. रात के 11 बज चुके हैं.
लोग घरों में पानी आ जाने के बाद मचान या चौकी पर लेटकर भादो के दिन गिन रहे हैं. उनकी बातचीत में रह-रह कर कोसी के विकराल रूप की चर्चा है. कुछ बाढपीड़ित सड़कों पर पॉलिथिन डाल कर तथा जिन्हें पॉलिथिन नसीब नहीं, वे खुले आसमान में सड़कों पर सोये थे. 11 बजकर 10 मिनट में जब प्रभात खबर की टीम गंगापुर पंचायत के वार्ड नंबर छह में पहुंचा तो गहरा अंधेरा छाया हुआ था. सड़कों पर बह रहे पानी की आवाज सन्नाटे को चीर रही थी.
पूर्णिया
पूर्णिया. डगरूआ प्रखंड के लसनपुर में हर तरफ अंधेरा छाया हुआ है. रात के नौ बज रहे हैं, लेकिन चारों तरफ खामोशी पसरी हुई है. एक टूटे घर में कौशल्या देवी बैठी नजर आयी, जहां ढिबरी जल रही थी. कहती है ‘ बड़ी मुश्किल से केरोसिन का इंतजाम हुआ है, तो रोशनी हो रही है, कल से यह भी संभव नहीं होगा ’. पड़ोस के ही बुजुर्ग रामानंद महतो कहते हैं
कटिहार
शनिवार. शाम 8: 30 बजे. घटवारी टोला का विकासनगर गांव. गांव में अपने बच्चे-भतीजे के साथ किरण बैठी थी. पर, बातचीत में किरण कहती है कि करीब एक सप्ताह से इस गांव की बिजली कटी हुई है. पूरे गांव में बाढ़ का पानी था.
घर छोड़कर दूसरे जगह चले गये थे. पानी घटने के बाद दो दिन पहले घर आये है. बाढ़ के पानी में सांप व कई तरह के जहरीली जीव जंतु नजर आया. उससे डर भी लगता है. देर रात तक इसी तरह ढिबरी जलाकर बातचीत में काटते है. अबतक सरकार की ओर से मिट्टी तेल नहीं मिला है. अररिया
पानी तो कमा है बाबू. गांव लौट आये हैं. दिन तो कट जाती है लेकिन रात का अंधेरा काटने का दौड़ता है. कई जंगली जीव दिखते हैं. डर लगता है कि अंधेरे मेें सोयें और कोई जीव काट न ले. बिजली नहीं है. जेनरेटर था, वह भी बाढ़ के पानी में खराब हो गया. केराेसिन मिल नहीं रहा है, क्या करें. यह कहना है मदनपुर के शिवसुंदर भारती का.
प्रभात खबर की टीम शनिवार की रात नौ बजे मदनपुर बाजार पहुंची. बाजार में चहल-पहल दिखी. कुछ दुकानों में लालटेन की रोशनी थी, लेकिन बाजार के बाहर निकलते ही घुप अंधेरा. पानी तो कम हो गया है लेकिन सड़क के नीचे अब भी पानी जमा है. कई लोगों ने सोलर इनर्जी को अपना वैकल्पिक व्यवस्था बना रखा है.
सुपौल
पानी आया-पानी आया, पानी आया की आवाज सुनते ही जिंदगी बचाने के लिये तटबंध के बीच बसे लोग घर से निकल पड़ते हैं. भागम-भाग, अफरा-तरफी शुरू हो जाती है. शनिवार की रात प्रभात खबर की टीम ने बाढ़ प्रभावित गांवों में पहुंची.
मरौना प्रखंड के कमरैल पंचायत के चंदरगढ़ गांव में रंजीत सिंह जगे मिले. बातचीत में रंजीत ने कहा कि कैसे नींद आयेगी. वार्ड नंबर 04 निवासी गणेशी राम की मौत इसी गुरुवार की रात को उस समय सांप काटने से हो गयी जब वह घर से निकल कर ऊंचे स्थान पर शरण लेने के लिये जा रहे थे. स्थानीय सत्यनारायण सिंह व जय प्रकाश सिंह आदि ने बताया कि यहां सबने एक ही पत्थर की चोट खाई है. जिनके पास कभी खुद का आशियाना था, वे खुले आसमान के नीचे रहने को विवश हैं.
किशनगंज
कैसे रहेंगे घर में. हर तरफ पानी ही पानी है. बिजली तो कई दिन से नहीं है. केरोसिन भी नहीं है. अंधेरे में तो रह नहीं सकते. वह तो गांव में ही विद्यालय है, जहां बच्चों के साथ अंधेरा होने के पहले ही पहुंच जाते हैं. यह कहना है किशनगंज प्रखंड के कमारमनी गांव के सफीक का. किशनगंज जिला के सात प्रखंडों की 10 लाख की आबादी बाढ़ की त्रासदी झेलने को विवश है, जो जहां है, भूख से बिलबिला रहा है. पेयजल के लिए तरस रहा है.
मधुबनी
जिले की विभिन्न नदियों में आयी बाढ़ के कारण लोगों का संपर्क अपनों से नहीं हो पा रहा हे. दूर दूर तक पानी, सड़कें टूटी हैं. आवागमन का कोई जरिया नहीं. जो जिस जगह हैं वहीं पर घिर कर रह गये हैं. इसी में बिजली भी गुम हो गयी है. लोग अंधरे में रहने को विवश हैं.
किसी जगह पर पोल टूट कर गिर जाने के कारन विभाग ने लाइन काट दी है तो किसी जगह पर तार नीचे हो जाने के कारण विभाग ने सुरक्षा को लेकर लाइन को काट दिया है. ऐसे में एक ओर जहां लोग अंधेरे में बाढ़ व कीड़े मकोड़े के डर के बीच जी रहे हैं तो मोबाइल भी डिस्चार्ज हो जाने के कारण भी लोग अपनों से कट गये हैं.
हालत दिन व दिन बतदर होती जा रही है. जानकारी के अनुसार बेनीपट्टी के विशनपुर, बर्री, फुलबरियां, रजिया, धनुषी, पाली का कुछ भाग, बिस्फी प्रखंड के अधिकतर बाढ़ प्रभावित गांव, झंझारपुर, लौकही, मधेपुर का कोसी दियारा क्षेत्र में बिजली की गंभीर समस्या बनी है.
सीतामढ़ी
जिले में जारी बाढ़ के कहर के चलते विद्युत व्यवस्था का बुरा हाल हो गया है. कहीं विद्युत पोल बह गये हैं तो कहीं पोल व तार टूट कर बिखर गये हैं. इतना ही नहीं पावर सब स्टेशन व ग्रिड में भी बाढ़ का पानी घुस गया हैं. हालात यह हैं की जिले के 17 में से 14 प्रखंड की 230 पंचायत में पिछले सात दिन से बिजली गुल है. लिहाजा 30 लाख की आबादी अंधेरों के सायों में जीने को विवश हैं. रोशनी तो दूर लोगों को मोबाइल को चार्ज करना भी मुश्किल हो गया हैं.
गोपालगंज
दिन के 12 बज रहे हैं. सलेमपुर रिंग बांध पर 60 से अधिक परिवार शरण लिये हुए हैं. यहां पहुंचते ही दौड़ कर कुछ बच्चे और बुजूर्ग आते हैं. पूछते हैं-खाना बांट रहे हैं क्या? आसमान में बादल है. बादल देख ये कहते हैं-कहीं बारिश न हो जाये. जी हां, नारायणी द्वारा मचायी बाढ़ रूपी तांडव के बाद बाढ़पीड़ितों की जिंदगी भूख, भय और उम्मीद के बीच कट रही है़
सड़क और तटबंधोंं पर डेरा डाली लगभग 80 हजार की आबादी अपने भविष्य का ताना-बाना बुन रहे हैं. ठीक छह दिन पहले तक जो लोग अमीर हुआ करते थे गांवों में जहां खुशहाली का दौर था वहीं गांव आज डरावने से हो गये हैं. बहते पानी के बीच कहीं पशुओं का शव मिल रहा है, तो कहीं सांप और जंगली सूअरों का भय है़ बीच-बीच में निकलता मानव लाश लोगों में थर्राहट पैदा कर रहा है़
कल तक के मालिक बने हाथ आज भिखारी बन गये हैं.
पांच उपकेंद्र व चार फीडर क्षेत्र में बिजली बाधित
आदापुर, मधुबन, पंचरूखा, सुगौली, घोड़ासहन, रामगढ़वा उपकेंद्र बंद, लखौरा, कोल्हुअरवा, हनुमानगढ़ी, बरियारपुर आदि क्षेत्र में खोला गया जंफर
मोतिहारी
पूर्वी चंपारण में एक सप्ताह से बिजली आपूर्ति बाधित है. पांच उपकेंद्र पचरूखा, आदापुर, मधुबन, सुगौली, घोड़ासहन, रामगढ़वा में पानी घुस जाने के कारण संबंधित क्षेत्र के गांव में बिजली बाधित है. इसके अलावे शहर वे देहात के जिन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी है वहां जंफर खोल कर बिजली बाधित की गयी है.
मोबाइल नेटवर्क बड़ी समस्या
बाढ़ प्रभावित पूर्वी चंपारण के करीब 213 पंचायतों के 400 गांवों में मोबाइल नेटवर्क की समस्या भी उत्पन्न हो गयी है. अधिकतर कंपनियों के नेटवर्क बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में काम नहीं कर रहा है, जिसके कारण परेशानी बढ़ गयी है.
1. कटिहार में रात के
अंधेरे में बैठे ग्रामीण
2. पूर्णिया में अंधेरे में अपना
भविष्य निहारती बाढ़ महिला
3. अररिया में मचान बना कर पानी
के बीच रात काटने की है मजबूरी
4. सुपौल में ढ़िबरी ही सहारा.
5.सलखुआ में सोये बाढ़पीड़ित.
6. गंगापुर सड़क पर खुले आसमान के नीचे बच्चों के साथ सोने को है विवश.
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