आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना
बिहार के उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव लगातार महागठबंधन में चल रही जुबानी जंग के लिए मीडिया को जिम्मेदार मानते हैं. तेजस्वी ने इस बात को लेकर कई बार तल्ख टिप्पणी भी करचुके हैं. तेजस्वी ने तो अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर यहां तक लिख दिया कि लालू परिवार से ही कई मीडियाकर्मियों का रोजगार चलता है. तेजस्वी के मीडिया पर लगाये जा रहे आरोपों के आईने में यहसवाल ढूंढ़ना जरूरी है कि क्या हाल में जो राष्ट्रपति चुनाव को लेकर घटनाएं हुईं, उनमें मीडिया की भूमिका है ? क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीडिया के कहने पर रामनाथ कोविंद का समर्थन किया ?तेजस्वी कहते हैं कि महागठबंधन अटूट है. हो सकता है, मीडिया को इससे इनकार कहां है ? तेजस्वी का बार-बार मीडिया पर गुस्सा होना, आखिर क्या संदेश देता है. स्वयं कांग्रेस के बड़े नेता यह बयान देचुके हैं कि नीतीश अपने सिद्धांतों और राजनीति में अलग स्टैंड पर चलनेवाले नेता हैं, उसके बाद तेजस्वी का यह गुस्सा कितना वाजिब है ?
यह भी पढ़ें :महागठबंधन : तेजस्वी के बयान पर जदयू गंभीर : वशिष्ठ
हाल में एनडीए की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद का नाम सामने आने के बाद जदयू ने उन्हें समर्थन कर दिया. उसके ठीक बाद एंटी एनडीए फ्रंट की ओर सेराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का नाम सामने आया. जदयू ने अपने हालिया बयान में कहा कि मीरा कुमार को सिर्फ हराने के लिए खड़ा किया गया है. इसके जवाब मेंतेजस्वी का बयान आया कि बिना मैदान में उतरे हार-जीत का फैसला कैसे हो सकता है. उसके बाद बिहार के महागठबंधन के नेताओं में जुबानी जंग शुरू हो गयी और माहौल ऐसा बन गया है, मानोंमहागठबंन में दरार बढ़ती जा रही है. जुबानी जंग के बाद तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर 26 जून को एक पोस्ट लिखा और मीडिया पर जमकर निशाना साधा.
महागठबंधन के दुष्प्रचार में लगा है मीडिया : तेजस्वी
तेजस्वी ने अपने पोस्ट के जरिये कहा कि भाजपा समर्थित मीडिया का भी एक वर्ग जिस दिन से महागठबंधन बना है, उसी दिन से महागठबंधन के खिलाफ दुष्प्रचार में लगा हुआ है. शायद ही कोई ऐसा दिन हो,जब उन्होंने यह रिपोर्ट किया हो कि महागठबंधन मजबूत है, एकजुट है और बिहार के लिए समर्पित है. शायद वो इसलिए नहीं करते, क्योंकि महागठबंधन का विचार उनके सरोकारों को पूर्ण नहीं करता. महागठबंधन के बने रहने की इसी बैचनी और टूटने के ख्याली पुलाव खाने की बेकरारी में वो अपनी ऊर्जा का निवेश करते रहते हैं. खैर, सबकी पेशागत मजबूरी या वैचारिक मान्यताएं होती हैं और लोकतंत्र मेंइसका भी सम्मान होना चाहिए. तेजस्वी आगे लिखते हैं कि बाकायदा हमारे दल की तरफ से सभी मीडिया प्रतिष्ठानों को प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से चिट्ठी भी कई बार भेजी जा चुकी है, जिसमें स्पष्ट रूप से यहकहा गया कि केवल नामित प्रवक्ता ही पार्टी से संबद्ध मसलों पर आधिकारिक बयान देने के लिए अधिकृत हैं, लेकिन फिर भी उस निवेदन और सूचना का पालन उनके द्वारा नहीं किया जाता और वो अपनेपसंद के अनधिकृत व्यक्ति से बयान लेकर उसे पार्टी का आधिकारिक बयान बता कर चला देते है. समर्थित मीडिया को भी मिर्च-मसाला चाहिए होता है, इसलिए ऐसे व्यक्ति का बयान चलाते है, जो पार्टी कीतरफ से बोलने के लिए नामित नहीं है.
महागठबंधन अटूट है : तेजस्वी
तेजस्वी ने मीडिया पर हमला बोलते हुए यह भी कहा कि महागठबंधन अटूट है. अब लोगों के मन में सवाल यह उठता है कि आखिर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जो चल रहा है, वह किसी पार्टी और उसके नेताका अपना फैसला है. इसमें बीच में मीडिया कहां से चला आया ? तेजस्वी के मुताबिक, अगर किसी को किसी प्रकार की परेशानी है, तो संबंधित प्लेटफॉर्म पर ही उसकी बात की जानी चाहिए, ना कि मीडियाके द्वारा. हम इसे लेकर अत्यंत गंभीर है. तेजस्वी कहते हैं कि इतिहास हर पहलू को संजीदगी से देखता है. उसकी समग्रता में व्याख्या करता है और कुछ समकालीन टेलीविजन एंकरों की तरह फौरी उप संहारनहीं लिखता है.
लालू से चलता है मीडिया का रोजगार
इससे पूर्व 15 जून, 2017 को मेरी दिल की बात शृंखला में तेजस्वी ने लिखा कि कैसे लालू परिवार से मीडिया का रोजगार चलता है. तेजस्वी ने कहा कि लालू जी और उनके परिवार से मीडिया घरानों व उनकेकॉरपोरेट कर्मियों का विशेष लगाव किसी से छिपा नहीं है. यह उसी प्रकार का लगाव है, जिस तरह का भाजपा का लगाव है, लालू जी से, दुखती नब्ज वाला एहसास! ना पसंद किया जाये और न नजरंदाजकिया जाये. सौतेला व्यवहार बताना, इसे कमतर करने के बराबर माना जायेगा.
कई पत्रकारों की नौकरी लालू के नाम पर : तेजस्वी
तेजस्वी ने कहा कि बिहार में ना जाने कितने पत्रकारों की नौकरी ही लालू जी के नाम पर चल रही है? लगभग चार दशक से लालू जी राष्ट्रीय राजनीति के मजबूत स्तंभों में से एक रहे हैं. और यह बात किसी कोपसंद हो या ना हो, देश की राजनीति में निर्विवाद रूप से शीर्ष नेता बने हुए हैं. चाहे केंद्र या राज्य में सत्ता से दूर रहे या हिस्सा बने रहे किंतु प्रासंगिकता और प्रसिद्धि में कभी कोई कमी नहीं आयी. कभी उन्हेंग्वाला तो कभी चुटीले और मजाकिया अंदाज के लिए मसखरा बताया गया. इस पर भी जब दिल ना भरा तो हर छोटी-मोटी असफलता पर राजनैतिक अंत की गाथा सुना दी गयी. लेकिन, हर बार पूर्वाग्रह पीड़ितों को खून का घूंट पीना पड़ा. कभी रेल मंत्री के अपने कार्यकाल से आलोचकों को पानी भरने पर मजबूर किया, तो बार-बार दर्ज की गयी अपनी वापसी से विरोधी की छाती पर सांप लोटवा दिया.
भाजपा समर्थित है मीडिया : तेजस्वी
तेजस्वी ने आगे लिखा कि पर हर उल्लेखनीय उपलब्धि और कार्यों को छुपा कर नकारात्मक पहलू कहीं से भी पैदा सामने कर देने की कवायद भाजपा समर्थित मीडिया खूब पहचानता है. लालू जी सच्चे गौपालक हैं, गौ सेवक हैं. किंतु दूसरों को इसी बात पर महिमा मंडित करनेवाली मीडिया ने कभी लालू जी की इस बात पर प्रकाश नहीं डाला. कुरेद-कुरेद कर छोटी-छोटी बातों को बड़ा करके सनसनी पैदा कीजाती है, नकारात्मक बनाया जाता है. पूर्वाग्रह से विवश, विरोधियों के अनर्गल आरोपों को ही अपनी भाषा बनाया जाता है, जांच से पहले ही घोटाला शब्द जोड़ दिया जाता है. और जांच में कुछ नहीं मिलने परमाफी मांगने का शिष्टाचार भी नहीं दिखाया जाता है.
अपने आपको चौथा स्तंभ मत कहिए : तेजस्वी
तेजस्वी ने लिखा कि अरे भाजपा समर्थित मीडिया के लोगों, कितनी घृणा और पूर्वाग्रह पालियेगा? अगर वंचित और बहुसंख्यक समुदाय का उत्थान इतना कचोटता है, तो सीधे मुद्दे पर आघात कीजिए, खुले मेंआइए. लेकिन, कम से कम भाजपा के हाथों बिकने के बाद अपने आपको लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मत कहिए! भाजपा की चरण वंदना और चाकरी करने से आप अपने ही पेशे को नुकसान पहुंचा रहे हैं. लालू का ना कुछ बिगड़ा है, ना बिगड़ेगा. लाखों-करोड़ गरीब लोगों की दुआ और आशीर्वाद उनके साथ है.