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कीड़ों का बढ़ा प्रकोप, अब भी दवा खरीद पर हो रहा विचार

बरसात में सावधानी ही बचाव है बरसात आते ही सावधान हो जाना चाहिए. बच्चों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इस मौसम में कीड़ों का जिस प्रकार प्रकोप बढ़ जाता है उसमें सावधानी की अत्यंत जरूरत है. ऐसे मौसम में ट्रायकोफाइटोन, माइक्रोस्कोरम, इपिडरमोफाइटोन जैसे फंगल कीटाणुओं के प्रकोप से त्वचा संबंधी रोग होती है. […]

बरसात में सावधानी ही बचाव है

बरसात आते ही सावधान हो जाना चाहिए. बच्चों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इस मौसम में कीड़ों का जिस प्रकार प्रकोप बढ़ जाता है उसमें सावधानी की अत्यंत जरूरत है. ऐसे मौसम में ट्रायकोफाइटोन, माइक्रोस्कोरम, इपिडरमोफाइटोन जैसे फंगल कीटाणुओं के प्रकोप से त्वचा संबंधी रोग होती है. खेतों में काम वालों को भी सावधान रहना चाहिए. रात में सोते समय बल्ब जला कर नहीं सोना चाहिए. इस मौसम में स्टेफाइलो कोकस व स्टेफ्रो कोकस फंगल से शरीर में फोड़ा-फुंसी होते हैं. ऐसे मौसम में सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग हर हाल में करना चाहिए.
डाॅ उमेश चंद्रा, वेक्टर बाेर्न डिजीज प्रभारी, नवादा
100 में 65 रोगी कीड़ों के काटने के
प्रतिदिन त्वचा से संबंधित लगभग 100 रोगी जांच के लिए पहुंच रहे हैं़ 65 फीसदी मरीज कीड़ों के काटने से पीड़ित होते हैं़ त्वचा के जेनरल दवाओं का प्रभाव भी नहीं रह रहा है. इसका कारण है कि मरीज इसके प्रति सक्रिय नहीं हैं. इस बीमारी से थोड़ी राहत मिलते ही लोग दवा लेना छोड़ दे रहे हैं, जो परेशानी बन जाती है. मांसाहारी भोजन, तेल का खाना तथा पसीने से गीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए़ फंगल त्वचा रोगों का प्रकोप हर साल गर्मी के मौसम से ही बढ़ने लगता है, जो बरसात के मौसम में ऐसे मरीजों की तादाद बढ़ा देता है. इसके लिए सावधानी व साफ-सफाई पर भी ध्यान देना अत्यंत जरूरी है.
डाॅ श्रीकांत प्रसाद, त्वचा रोग विशेषज्ञ, सदर अस्पताल
नवादा : बरसात के दिनों में गंदगी से पनप रहे बरसाती कीड़े अब लोगों के लिये आफत बन गये हैं. इन कीड़ों के काटने से लोग त्वचा संबंधी रोगों की चपेट में आ रहे हैं. खास कर यह वैसे इलाकों में अधिक पनप रहे हैं, जहां गंदगी व गंदे पानी का जमाव रहता है. महादलित टोलों में इसका प्रकोप ज्यादा है. शहरी इलाके में भी कीड़े-मकोड़े फैलने लगे हैं. बरसात का आधा समय पार हो चुका है. बावजूद नगर पर्षद की ओर से अब तक शहर में कहीं भी दवाओं का छिड़काव नहीं किया जा सका है. बरसात के जहरीले कीड़ों में मच्छर, मकड़ी, ततैया और भंवराें के साथ पेडरस, बेडग्स तथा टिक्स आदि का प्रकोप है. इससे होनेवाले फंगल इन्फेक्शन के एलर्जी ने लोगों को परेशान कर दिया है.
बदल जाता है त्वचा का रंग
जहरीले कीड़ों के काटने से त्वचा का रंग बदल जाता है. काटे हुए स्थान पर सूजन के साथ लालिमा होकर एक धब्बा बन जाता है. जो एक या एक सप्ताह से अधिक दिनों तक रहता है. लोगों को जी मिचलाना, चक्कर आना तथा बुखार की शिकायत पर रहती है. इतना ही नहीं कुछ खतरनाक कीड़े तो छोटे बच्चों की जान तक ले लेते हैं. त्वचा विशेषज्ञों की मानें तो यह कीड़े दो प्रकार के होते हैं, परजीवी और वेक्टर. परजीवी कीड़ों के काटने से शरीर पर सीधा असर पड़ता है. वहीं वेक्टर जनित कीड़े रोगों को बढ़ावा देनेवाले होते हैं. परजीवियों में छेदने, चूसनेवाले, और काटने के साथ ही चबानेवाले कीड़े होते हैं. लेकिन, वेक्टर जनित कीड़े लार छोड़ते हैं. त्वचा पर लाल-लाल धब्बे तथा खुजली व सूजन होने लगते हैं. इसके एक डंक से ही त्वचा पर जख्म हो जाता है. जो दर्द व खुजली के साथ फैलता जाता है.
सुविधा देने पर नगर पर्षद नहीं है गंभीर
शहर को स्वच्छ रखने के लिए नगर पर्षद बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन हकीकत यह है कि बरसात के मौसम में दवा तक छिड़काव करने की व्यवस्था नहीं हो सकी है. शहर से लेकर बाहरी इलाकों तक बारिश होते ही जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. सड़कों पर रहे गड्ढों में जलजमाव आये दिन देखे जा सकते हैं. लेकिन, नगर पर्षद की ओर से न तो फॉगिंग करायी गयी है और न ही डीडीटी का छिड़काव ही किया जा सका है.

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