शिक्षकों की कमी के बीच अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहा विश्वविद्यालय प्रशासन आज समाप्त हो जायेगा अतिथि शिक्षकों का कार्यकाल, सेवा विस्तार के लिए कॉलेजों के कंधे पर दी जिम्मेदारी मुंगेर. मुंगेर विश्वविद्यालय (एमयू) के 17 अंगीभूत कॉलेजों में कार्यरत लगभग 90 अतिथि शिक्षकों का कार्यकाल एक दिसंबर 2025 को समाप्त हो जायेगा. इस स्थिति ने विश्वविद्यालय प्रशासन को भारी संकट में डाल दिया है, क्योंकि यह सवाल उठने लगा है कि क्या विश्वविद्यालय अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है या फिर प्रशासन ने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है. 2023 में की गई नियुक्तियों और 2024 में सेवा विस्तार वर्ष 2023 में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा 120 से अधिक अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी. जिनमें से अधिकांश को 2024 में 11 महीने का सेवा विस्तार भी दिया गया था. इस सेवा विस्तार की प्रक्रिया तत्कालीन कुलपति प्रो. श्यामा राय के मार्गदर्शन में पूरी की गई थी. हालांकि, अब 2025 में यह सेवा विस्तार समाप्त होने जा रहा है और विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक नया कदम उठाया है. कॉलेजों को दी जिम्मेदारी, विश्वविद्यालय ने पल्ला झाड़ा हाल ही में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो घनश्याम राय द्वारा एक अधिसूचना जारी की गयी, जिसमें कहा गया कि अतिथि शिक्षकों का कार्यकाल 1 दिसंबर 2025 को समाप्त हो जायेगा और इसके बाद कॉलेजों को इन शिक्षकों के सेवा विस्तार के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है. यानी अब विश्वविद्यालय के बजाय कॉलेजों को इस मामले में निर्णय लेना होगा. इस कदम से एक नया संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि यदि कॉलेज अपने स्तर से इन शिक्षकों को सेवा विस्तार देने का निर्णय लेते हैं, तो उनके मानदेय का भुगतान कॉलेज प्रबंधन को अपने स्तर पर करना होगा. इससे कॉलेजों पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव पड़ेगा, जो विशेष रूप से महिला कॉलेजों के लिए बड़ी समस्या बन सकती है. महिला कॉलेजों के पास आंतरिक संसाधन बहुत सीमित हैं, क्योंकि सरकार ने छात्राओं के नामांकन शुल्क को पूरी तरह से माफ कर दिया है. संविदाकर्मियों को भी नहीं मिला सेवा विस्तार जहां एक ओर विश्वविद्यालय अतिथि शिक्षकों के सेवा विस्तार पर अपना पल्ला झाड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर, विश्वविद्यालय ने अपने 17 अंगीभूत कॉलेजों में कार्यरत लगभग 60 संविदाकर्मियों को भी सेवा विस्तार नहीं दिया है. यह संविदाकर्मी विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं और उनकी सेवा अवधि पहले ही समाप्त हो चुकी थी. इन कर्मचारियों को बिना किसी स्पष्ट कारण के सेवा विस्तार नहीं दिया गया. इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय ने चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए भी एक नया तरीका अपनाया है. विश्वविद्यालय ने कॉलेजों से इन कर्मचारियों की सूची मांगी है, ताकि उन्हें आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियुक्त किया जा सके. इन कर्मचारियों का भुगतान कॉलेजों के खाता संख्या-1 से किया जायेगा, जिसमें विद्यार्थियों का ट्यूशन शुल्क जमा होता है. इस निर्णय से कॉलेजों पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है, क्योंकि पहले से ही वे छात्रों से फीस लेकर अपने दैनिक खर्चे पूरा करते हैं. कॉलेजों के सामने अतिरिक्त चुनौती अतिथि शिक्षकों और संविदाकर्मियों के सेवा विस्तार को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कदम न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे कॉलेज प्रबंधन के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. जिन कॉलेजों के पास सीमित संसाधन हैं, उनके लिए इसे संभालना और कर्मचारियों को उनकी उम्मीद के अनुसार सेवा विस्तार देने के लिए धन जुटाना मुश्किल हो सकता है. महिला कॉलेजों में जहां पहले से ही संसाधनों की कमी है, वहां इस निर्णय से ज्यादा समस्या उत्पन्न हो सकती है. विश्वविद्यालय के प्रशासन पर बढ़ते सवाल इस सब के बीच, विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. यह निर्णय विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता और अव्यवस्था को उजागर कर रहा है, जिससे शिक्षकों और कर्मचारियों में असंतोष की भावना बढ़ रही है. विश्वविद्यालय द्वारा सेवा विस्तार की प्रक्रिया में अस्पष्टता और जिम्मेदारी से भागने का यह कदम उन संस्थाओं की कार्यकुशलता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है, जो शिक्षा के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रही हैं.
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