Motiharia: मधुबन.पिछले कुछ वर्षों में बिहार में मौसम के स्वरूप में जो बदलाव देखने को मिला है, वह सामान्य मौसमी उतार-चढ़ाव नहीं बल्कि एक गहरी और चिंताजनक जलवायु असंतुलन की ओर इशारा करता है। खासकर बारिश के पैटर्न में जो अनियमितता आई है.कहीं अत्यधिक वर्षा, कहीं लम्बा सूखा और कहीं असमय बारिश वह स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाती है.पारंपरिक तौर पर मानसून जून के अंत से सितंबर तक सक्रिय रहता था.लेकिन अब यह पैटर्न बदल गया है.
अप्रैल में ही भारी बारिश
अत्यधिक वर्षा की घटनाएं बढ़ गयी हैं, जिससे फसलों को नुकसान हो रहा है.अचानक बारिश और ओलावृष्टि जैसी घटनाएं अब सामान्य हो गई हैं.यह सभी लक्षण इस ओर इशारा करते हैं कि मौसम अब धीरे-धीरे चरम की ओर बढ़ रहा है.जो कि जलवायु परिवर्तन की प्रमुख विशेषता है.
कृषि पर सीधा प्रभाव
बिहार कृषि-प्रधान राज्य है.यहां की खेती पूरी तरह मानसून पर निर्भर है.लेकिन बदलते वर्षा-पैटर्न ने किसानों को असमंजस में डाल दिया है.धान की बुआई के समय सूखा या देर से मानसून आने के कारण उत्पादन पर असर पड़ता है.किसान पारंपरिक खेती के चक्र को लेकर असमर्थ हो रहे हैं.
अप्रैल में चार दिन हो चुकी है बारिश
कृषि विभाग के रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी चंपारण जिले में इस बार 9 से 18 अप्रैल के बीच चार दिनों तक बारिश हो चुकी है.इन चार दिनों 48.6 फीसदी बारिश हुई है.जिले में सर्वाधिक बारिश पकड़ीदयाल में 143.2 व मधुबन में 106 एमएम बारिश रिकार्ड की गयी है.जबकि पिछले वर्ष जिले में अप्रैल महीने में बारिश का नामोनिशान नहीं था.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है