Motihari: सच्चिदानंद सत्यार्थी,मोतिहारी. पूर्वी चंपारण जिले का एक छोटा सा प्रखंड मेहसी आज देशभर में अपनी खुशबूदार और रसीली लीची के लिए मशहूर है. मेहसी,चकिया व मधुबन की शाही लीची की यह मिठास सिर्फ स्वाद में ही नहीं बल्कि अपनी सुंदरता व आकार के लिए जानी जाती है. लीची यहां तैयार होने के साथ देश भर के व्यापारी यहां पहुंचने लगे हैं. आलम यह है कि दिल्ली की सबसे बड़ी आजादपुर मंडी हो या कोलकाता, बेंगलुरु, झारखंड की फल मंडियां हर जगह मेहसी की लीची की जबरदस्त मांग हो रही है. देश की सबसे बड़ी फल मंडी दिल्ली की आजादपुर मंडी में जैसे ही मेहसी की लीची से लदे ट्रक पहुंचते हैं, व्यापारियों के चेहरे खिल उठते हैं. व्यापारी बताते हैं कि मेहसी की लीची का स्वाद, उसकी मिठास और टिकाऊपन देश के किसी भी हिस्से की लीची से बेहतर होता है. यही कारण है कि लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर, महाराष्ट्र, कोलकाता, बेंगलुरु जैसे शहरों में भी इसकी भारी मांग है. ऑपरेशन सिंदूर के कारण व्यापारियों में संशय की स्थिति थी, लेकिन संशय के बादल हटने के साथ यहां से पहली खेप आजाद मंडी दिल्ली भेजी गई है . कई प्रदेश के व्यापारी आकर बगीचों में डेरा बनाने लगे हैं. लीची पांच रोज पहले से बाजार में आने लगा है .लेकिन रविवार व सोमवार की हल्की बारिश के बाद 22 मई से आने वाले लीची में मिठास अधिक होगी.
15 प्रखंडों में लीची की पैदावार, मेहसी सबसे आगे
मेहसी परिक्षेत्र में लगभग 11,500 हेक्टेयर भूमि पर लीची के बाग फैले हुए हैं. जिसमें मेहसी,तेतरिया, मधुवन, चकिया, कल्याणपुर, केसरिया, पिपरा कोठी, मोतिहारी, फेनहारा, ढाका,संग्रामपुर आदि प्रखंडों में लीची की खेती होती है, इसमें मेहसी व मधुबन में लीची की सर्वाधिक खेती की जाती है जिसमें शाही लीची भी है. मेहसी प्रखंड को इस फसल की ””””राजधानी”””” कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. यहां के बागानों से हर वर्ष हज़ारों टन लीची देशभर की मंडियों तक भेजी जाती है.लीची उत्पादक किसानों की पीड़ा
स्थानीय किसान संजय सिंह, राजकुमार प्रसाद, नैमूल हक, अबुल कलाम आजाद,संजय सिंह, मोहम्मद मुस्लिम, और रिजवान अहमद बताते हैं कि उन्होंने कई बार प्रशासनिक अधिकारियों से सहायता की मांग की, लेकिन हर बार आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला. हमारी लीची आज दिल्ली-मुंबई तक जाती है, लेकिन हमारी परेशानियों की कोई सुनवाई नहीं होती.10 वर्षों से ””रेड बग”” कीटजंग, लेकिन कोई सहायता नहीं
मेहसी , मधुबन आदि के किसान पिछले 10 वर्षों से ””रेड बग”” यानी लाल कीट के आतंक से परेशान हैं. यह कीट लीची की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और उत्पादन में भारी गिरावट लाता है. किसान साल में 5 से 6 बार कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं, लेकिन पूरी प्रक्रिया किसान अपने निजी खर्च पर करते हैं. न तो कोई विशेष प्रशिक्षण, न अनुदान और न ही कीटनाशक की आपूर्ति. किसान अकेले दम पर इस फसल को जिंदा रखे हुए हैं.समाधान की आवश्यकता
-रेड बग की रोकथाम के लिए वैज्ञानिक पद्धति से कीट प्रबंधन की योजना- किसानों को कीटनाशक, जैविक उपाय और प्रशिक्षण की सुविधा- मेहसी की लीची को भौगोलिक संकेतक (जीआइ टैग) दिलाने की प्रक्रिया तेज हो-प्रसंस्करण इकाई की स्थापना जिससे किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिल सके-सीधे किसान से ग्राहक तक बिक्री को तकनीकी सहयोग और ऐप आधारित सिस्टमडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है