मधुबनी : तीन दशक पहले मिथिलांचल के अधिकांश युवक, युवतियों की शादी, या यूं कहें कि हर अविवाहित लड़का-लड़के की शादी सौराठ सभा में ही तय होती थी. न दहेज का लेन-देन और न बरात में आज के जमाने जैसा ताम-झाम और खर्च. कन्या पक्ष सौराठ सभा में आकर योग्य वर को पसंद करते, दोनों पक्षों में वहीं बात तय होती.
उसी रात या एक-दो दिन बाद शादी हो जाती. खाना भी परंपरागत तरीके से ही बरातियों को परोसा जाता. धीरे-धीरे दहेज की बात चली, तो सौराठ सभा में लोगों के आने की संख्या में भी कमी आती गयी. दो दशक में तो सौराठ सभा वास की खानापूरी ही होती रही. इस साल इस सभा को विभिन्न संगठनों ने पुनर्जीवित करने की पहल की, तो इसका असर भी दिखा. न सिर्फ अन्य सालों की अपेक्षा इसमें आने वाले लोगों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई बल्कि सालों बाद इस सभा से पुराने जमाने की तरह ही एक शादी भी तय हुई.
इसे अपनी संस्कृति को बचाने के साथ दहेज मुक्त शादी को बढ़ावा देने की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है.
सौराठ सभा में तय शादी से दोनों पक्ष खुश . कलुआही थाने के बेलाही गांव निवासी विजयकांत झा के पुत्र घनश्याम और जितवारपुर गांव के श्रीकांत झा की पुत्री खुशी बीते 28 जून की रात परिणय सूत्र में बंध कर एक दूसरे के हो चुके हैं.
वर वधू के साथ-साथ दोनों परिवार भी शादी से खुश हैं. दोनों की शादी की चर्चा जिले भर में हो रही है. दोनों परिवार के साथ खासकर घनश्याम की पहल की लोग तारीफ कर रहे हैं. दरअसल घनश्याम की शादी सौराठ सभा में ठीक उसी प्रकार से तय हुई जिस प्रकार 44 साल पहले उनके पिता विजयकांत झा की तय हुई थी. घनश्याम दिल्ली मेट्रो में काम कर रहा है. शादी की उम्र हो चुकी थी. हर दिन उनके पिता के पास कहीं न कहीं से कन्या पक्ष का आना लगा रहा था. कई जगह बात शुरू भी हुई. अचानक विजयकांत झा को लगा कि जब बेटे की शादी करनी है, तो ऐसा काम किया जाये जिससे समाज इस शादी को याद रखे. अधिक पैसेवाले तो हैं नहीं कि तामझाम करते. ऐसे में उनके मन में अपने बेटे की शादी सौराठ सभा से ही करने का विचार आया. बेटे को फोन किया. सारी बातें बताते हुए घर आने को कहा. घनश्याम भी आधुनिकता की बातें छोड़ पिता के विचार को सिर आंखों पर रखा. गांव आ गये. फिर 28 जून को पंचायत के मुखिया अजय कुमार झा, पंसस सूर्य मोहन झा व गांव के अन्य गणमान्य लोगों के साथ सज-धज कर सौराठ सभा गाछी आ गये.
बिन दहेज तय हुई शादी . कहते हैं कि शादी तो ऊपर वाले के घर में ही तय हो जाती है. इसे यहां पर औपचारिकता के रूप में निभाया जाता है. बेलाही से शादी की नीयत से घनश्याम सौराठ सभा को निकले, तो दूसरी ओर जितवारपुर के श्रीकांत झा भी अपनी बेटी की शादी की मंशा से सौराठ सभा आये. इससे पहले कई जगहों पर श्रीकांत झा गये थे. हर जगह मुंह खोलकर लाखों में दहेज मांगा जाता. सौराठ सभा में आये, तो घनश्याम को अपनी बेटी खुशी के लिये उपयुक्त पाया. फिर क्या था. दोनों पक्षों के बीच सभा गाछी में ही बातचीत तय की गयी. बात पक्की हो गयी. यहीं से श्रीकांत ने अपने घर पर शादी उसी रात होने की जानकारी दी. घनश्याम के पिता ने भी फोन से अपने सगे संबंधियों को बरात में आने को कहा. सब कुछ सही से होता गया और फिर बिना दहेज अौर ताम-झाम, नाच-गाने की हंसी खुशी से 28 जून की रात ही घनश्याम और खुशी की शादी तय हो गयी. इधर, इस शादी से सौराठ सभा को पुनरोत्थान करने वाले संगठनों में भी खुशी व्याप्त है. मिथिला लोक फाउंडेशन के चेयरमैन बिरबल झा, सौराठ सभा समिति के अध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्र, शेखर मिश्रा, डाॅ. इंद्रमोहन मिश्र सहित अन्य ने वर वधू को आशीर्वाद देते हुए इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिये घनश्याम की तरह ही आगे बढ़ने की अपील की है.