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बिहार की विरासत और वर्तमान की चुनौतियां विषय पर संवाद

प्राचीन काल में बिहार हजार वर्षों तक भारत की राजनीति ही नहीं, बल्कि समाज, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, संस्कृति एवं धर्म का भी मुख्य केंद्र रहा है.

मधेपुरा.

ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् दिल्ली के सौजन्य से स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग में रविवार को बिहार की विरासत और वर्तमान की चुनौतियां विषय पर संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. हिन्दी के समकालीन सृजन-चिंतन के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर सुप्रसिद्ध लेखक शिवदयाल ने कहा कि आमतौर पर बिहार की विरासत को प्रतिरोध तक सीमित कर दिया जाता है. इसे राजनीतिक प्रयोगों की भूमि के रूप में पहचाना जाता है, मान भी दिया जाता है, लेकिन बिहार प्रतिरोध की भूमि के साथ-साथ निर्माण की भूमि भी है. शिवदयाल ने कहा कि प्राचीन काल में बिहार हजार वर्षों तक भारत की राजनीति ही नहीं, बल्कि समाज, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, संस्कृति एवं धर्म का भी मुख्य केंद्र रहा है. भारत के लगभग एक हजार वर्षों का इतिहास बिहार का इतिहास है और इस कालखंड के बिहार ने मानव सभ्यता के निर्माण एवं विकास में वैश्विक स्तर पर अपना योगदान दिया है. उन्होंने बताया कि आधुनिक भारत के इतिहास में भी बिहार ने बड़ी भूमिका निभाई है. आजादी के आंदोलन में बिहार के योगदान को कभी भी नहीं भुलाया जा सकता है. सन् 1857 के गदर, आदिवासी आंदोलन, किसान आन्दोलन, चम्पारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह एवं भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार के लोगों ने बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभायी. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भूदान आंदोलन, संपूर्ण क्रांति आंदोलन एवं समाजवादी आंदोलन में भी बिहार आगे रहा, लेकिन दुख की बात है कि वर्ष 2000 में बिहार के विभाजन के समय यहां से प्रतिरोध का कोई स्वर नहीं उठा। इससे यह साबित हुआ की हममें बिहारीपन का आभाव हो गया है.

– बिहार के पुनर्निर्माण की जरूरत-

उन्होंने कहा कि हमें नालंदा एवं विक्रमशिला जैसी अपनी शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विरासत से प्रेरणा लेकर बिहार के पुनर्निर्माण की जरूरत है.. इसके लिए हमें सबसे पहले अपने बिहारीपन को जगाना होगा. आगे हमें ग्राम केंद्रित विकास मॉडल को अपनाना होगा और अपने राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा सम्मानजनक रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करके विद्यार्थियों एवं श्रमिकों के पलायन को रोकना होगा. शिक्षा में गुणात्मक बदलाव करने के निमित्त योग्य एवं सक्षम शिक्षकों की नियुक्ति करने और राजनीति को जातिवाद एवं पूंजीवाद की गिरफ्त से निकालकर इसे संवेदनशील बनाने पर जोर दिया.

– गौरवशाली विरासत को करें पुनर्जीवित : प्रो श्रीभगवान सिंह-

कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर (बिहार) के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ श्रीभगवान सिंह ने किया. उन्होंने बताया कि हमारा अतीत काफी गौरवशाली रहा है. हम बुद्ध, महावीर, चाणक्य-चंद्रगुप्त, अशोक, गुरु गोविंद सिंह, गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण की विरासत के हकदार हैं, लेकिन आज हमारे चारों तरफ बिरानगी है. अतः हमें इस माहौल को बदलने के लिए आगे आना होगा. कार्यक्रम का संचालन करते हुए दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ सुधांशु शेखर ने बताया कि भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित यह कार्यक्रम पूरी तरह नि:शुल्क था. इसमें भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को फीडबैक फॉर्म भरने के बाद प्रमाण-पत्र जारी किया जाएगा. डॉ सारंग तनय एवं विकास कुमार आदि के नाम शामिल हैं. तकनीकी पक्ष डॉ. विनम्र कुमार तिवारी (भोपाल) तथा सौरभ कुमार चौहान (मधेपुरा) ने संभाला. इस अवसर पर प्रो. कुसुम कुमारी (गया जी), प्रो. विद्या सिन्हा (दिल्ली), प्रो. एस एन पांडेय (भागलपुर), डॉ. दीनानाथ शाह, डॉ. शैलेंद्र कुमार, डॉ. सिद्धेश्वर सिंह, रामानुज रवि, प्रिया कुमारी, सनोज कुमार, सुशील कुमार, रूबी कुमारी, मुकेश कुमार यादव, बबलू कुमार, अजीत पांडे, अक्षत सिंह, अमृता सिंह, आनंद कुमार, अरविंद कुमार, अरविंद कुमार, आशीष कुमार, अशोक कुमार, आशुतोष कुमार, बबलू कुमार, बम कुमार, भावना वर्मा, विकास कुमार आदि उपस्थित थे.

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