उदाकिशुनगंज . ब्रह्माकुमारीज संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती की पुण्य स्मृति मनायी गयी. इस दौरान उनके संगठन विस्तार में योगदान और आदर्श जीवन पर वक्ताओं ने प्रकाश डाला. शोभा देवी ने कहा कि मातेश्वरी अत्यंत आज्ञाकारी, ईमानदार और निष्ठावान थीं. उन्हें शिवबाबा पर पूर्ण निश्चय था और वे सभी में सद्गुण देखती थीं. उनका मानना था कि अपने श्रेष्ठ कर्मों से दूसरों को प्रेरित किया जा सकता है. उन्होंने कभी भी प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोया. उनका योगी व तपस्वी जीवन आज भी मार्गदर्शक है. उन्होंने कहा कि मातेश्वरी ने सभी ब्रह्मा वत्सों का पालन-पोषण बहुत स्नेह और ज्ञान के साथ की. उन्होंने अपने आदर्श आचरण से संगठन के सदस्यों को श्रेष्ठ जीवन की प्रेरणा दी. ट्रस्ट की पहली जिम्मेदारी सौंपी गयी थी समाजसेवी राजेंद्र चौधरी ने कहा कि वर्ष 1919 में अमृतसर के साधारण परिवार में मम्मा का जन्म हुआ था. उनके बचपन का नाम ओम राधे था. जब आप ओम की ध्वनि का उच्चारण करती थीं तो पूरे वातावरण में गहन शांति छा जाती थी, इसलिए भी आप ओम राधे के नाम से लोकप्रिय हुईं. वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभावान थीं. ब्रह्मा बाबा ने कोई भी ज्ञान की बात आपको कभी दोबारा नहीं सिखायी. आप एक बार जो बात सुन लेती थीं उसी समय से अपने कर्म में शामिल कर लेती थीं. 24 जून 1965 को आपने अपने नश्वर देह का त्याग करके संपूर्णता को प्राप्त किया था. अधिवक्ता ओमप्रकाश गुप्ता ने कहा कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की वर्ष 1937 में स्थापना के समय संस्थापक ब्रह्मा बाबा ने जब माताओ-बहनों के नाम एक ट्रस्ट बनाया तो उसकी जिम्मेदारी सबसे पहले मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) को दी गई थी. तब से लेकर 24 जून 1965 तक आपने इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय की बागडोर बड़ी ही कुशलता के साथ निभायी. मौके पर डॉ संतोष कुमार संत, किशोर कुमार, किंग कुमार, पप्पू कुमार, प्रफुलचंद्र, अशोक राय, मनोज कुमार श्रीवास्तव, प्रीति बहन, पूजा बहन, सुनीता देवी, अनिता देवी आदि मौजूद थीं.
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