मधेपुरा : सदर अस्पताल में आइसीयू में सब सुविधा होने के बावजूद स्टाफ की कमी के कारण आइसीयू में सालों से ताला लटक रहा हैं. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार यहां से हर महीने आइसीयू में कर्मचारियों की कमी को लेकर आवेदन दिया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग सचिव और प्रधान सचिव इस आवेदन पर कोई पहल नहीं कर रहे हैं.
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सरकारी आइसीयू में लटक रहा है ताला, निजी सेंटरों पर हो रहा दोहन
मधेपुरा : सदर अस्पताल में आइसीयू में सब सुविधा होने के बावजूद स्टाफ की कमी के कारण आइसीयू में सालों से ताला लटक रहा हैं. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार यहां से हर महीने आइसीयू में कर्मचारियों की कमी को लेकर आवेदन दिया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग सचिव और प्रधान सचिव इस आवेदन पर कोई […]
स्वास्थ्य विभाग द्वारा एवं प्रधान सचिव द्वारा सिर्फ आश्वासन दिया जाता है कि तैयारी चल रही है. वही अस्पताल के अधिकारियों द्वारा बताया गया कि आइसीयू में सभी तरह के उपकरण की व्यवस्था है, लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण सेवा का लाभ मरीजों को नहीं मिल रही है. गौरतलब हैं मधेपुरा समेत लगभग पूरे बिहार आइसीयू में स्टाफ की कमी को झेल रहा हैं, लेकिन सरकार आइसीयू में कर्मचारियों की भर्ती को लेकर कोई कदम नहीं उठा रही हैं.
मरीजों को रेफर करने की है मजबूरी
आइसीयू की सुविधा नहीं रहने पर के कारण मरीजों को इलाज कराने के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल या पटना और दरभंगा की और रुख करना पड़ता. इससे गरीब वर्ग के लोगो को बहुत परेशानी होती हैं.
बताया जाता है पिछले एक साल से जिला स्वास्थ्य समिति आइसीयू सेवा की पहल कर रही है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है. सदर अस्पताल में मिली जानकारी के अनुसार प्रतिमाह औसत एक सौ से अधिक मरीजों को पीएमसीएच या डीएमसीएच रेफर किया जाता है. खासकर कोई बड़ी घटना या दुर्घटना होने पर अस्पताल में मरीजों का उचित इलाज नहीं हो पा रहा है.
जब मरीजों को सदर अस्पताल से हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है तो कभी कभी जाने के क्रम में ही मौत हो जाती है. लोगों का कहना है कि अगर आइसीयू की सुविधा यहां होती तो घायलों की जान बच सकती है. ऐसी कई घटनाएं होती है बावजूद सदर अस्पताल में आइसीयू की व्यवस्था को लेकर कोई कदम नहीं उठा रही है. इससे लोगों में असंतोष व्याप्त है.
वर्षों से रिक्त है अस्पताल में पद
जिले के सदर अस्पताल में जीएनएम का पद 133 है. जिसमें से 23 ही जीएनएम की भर्ती है और तीन लिपिक की जगह एक कार्यरत है. ओटी असिस्टेंट की बहाली ही नहीं हुई है और न ही ड्रेसर की व्यवस्था है. 56 डॉक्टर के पद पर 21 डॉक्टर कार्यरत है. जिसमें तीन महिला डॉक्टर है.
उन्ही तीन महिला डाक्टर को ओपीडी और अपातकालीन भी देखनी होती है, जो कि ओपीडी से 12 बजे के बाद इमेरजेंसी आ जाती है. महिला चिकित्सक की कमी के कारण महिला मरीजों की ओपीडी से बिना इलाज कराये घर जाना पड़ता है.
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