बहनों ने बजरी खिलाकर भाई के लंबी उम्र की मांगी दुआ सूर्यगढ़ा/लखीसराय.भाई बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक त्यौहार भाई-दूज गुरुवार को क्षेत्र के विभिन्न भागों में परंपरागत तरीके से मनाया गया. भाई-दूज के मौके पर बहनों ने अपने भाई की लंबी उम्र की प्रार्थना की. बहनों ने गोधन कुटा और गोबर से मानव आकृति बनाकर छाती पर ईट रख कर उसे बहन के द्वारा मुसल से तोड़ा गया. जिह्वा पर कांटा चुभाया गया तथा पूजन के उपरांत भाई को तिलक लगाकर उसे बजरी खिलाया गया. बहनें सुबह से ही निर्जला रहकर यम देवता की पूजा की तथा कुटी हुई बजरी भाई को खिलायी. भाई ने भी बहना को इस श्रद्धा के बदले उसे आशीष और उपहार दिये. मान्यता है कि इस दिन जो भाई नदी स्नान के बाद श्रद्धा से अपनी बहना का आतिथ्य स्वीकार करता है उसे व उसकी बहन को यम का भय नहीं होता. इस दिन बहना की गाली भी भाई के लिए आशीर्वाद होता है. कथाओं के मुताबिक भगवान सूर्यनारायण की पत्नी का नाम छाया थी. उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ. यमुना यमराज से काफी स्नेह करती थी. वह उससे बराबर निवेदन करती थी कि अपने इष्ट मित्रों सहित उनके घर आकर भोजन करें. अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहते थे. कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन आया, यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर दिया. यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं, मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाता. बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है,उसका पालन करना मेरा धर्म है. बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवो को मुक्त कर दिया. यमराज को अपने घर आया देख कर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर यमराज को भोजन कराया. यमुना द्वारा किये गये आतिथ्य से यमराज प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने को कहा. यमुना ने कहा कि भद्र, आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो. मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें उसे तुम्हारा भय ना रहे. यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्र आभूषण आदि देकर यमलोक की राह की. इस दिन से ही भाई-दूज पर्व की परंपरा बनी. ऐसी मान्यता है कि जा भाई इस दिन अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं उन्हें यम का भय नहीं रहता. इसलिए भाई दूज को यमराज तथा यमुना की पूजा होती है.
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