सुविख्यात हैं बिशौनी की चतुर्भुजी मां दुर्गा साग व बगिया का लगता है भोगभाग्यशाली भक्त ही देख पाते हैं निशा पूजाकुंवारी कन्या पूजा का विशेष महत्व कहते हैं अंग्रेज अधिकारी को मां की कृपा से हुई थी पुत्र की प्राप्ति अति प्राचीन सिद्ध पीठ में हैं पहचान, मंदिर का आकार भी चतुर्भुज विजयादशमी के दिन ग्रामीण गले मिल कर करते हैं आपसी प्रेम का इजहार फोटो 21 व 25 मेंकैप्सन: स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा का फाईल फोटो व मंदिर का दृश्यगोगरी. जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर और गोगरी अनुमंडल मुख्यालय से 14 किलोमीटर पर अवस्थित बिशौनी गांव की चतुभुर्जी दुर्गा मंदिर पूरे इलाके में विख्यात हैं. गंगा तट पर स्थित बिशौनी गांव की चार भुजा वाली आदिशक्ति मां दुर्गा की महिमा अगम अपार है.संतान प्राप्ति के लिए चतुभुर्जी दुर्गा विख्यात हैं. सच्चे मन से मांगे गए मन्नतें पूर्ण होती हैं. शारदीय नवरात्रि देश के कोने कोने में मनायें जाते हैं. आमतौर पर सभी जगह आठ एवं दस भुजा वाली मां दुर्गा की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती हैं. लेकिन बिशौनी एवं नयागांव में सदियों से चार भुजा वाली मां दुर्गा की प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना करते आ रहें हैं. वेद उपनिषद के महान ज्ञाता परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज कहते हैं कि महा लक्ष्मी,सरस्वती स्वरूप है चार भुजा वाली मां दुर्गा की मूल प्रकृति स्वरूप हैं इसी मुल प्रकृति स्वरूप का उद्गगम विकास का मुल आधार महा लक्ष्मी हैं जो चतुभुर्जी हैं इनको भुवनेश्वरी भी कहा जाता हैं. मूल प्रकृति स्वरूप चतुभुर्जी दुर्गा की पूजा करने से सभी बाधाएं दुर होती हैं तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ने भी इस शक्ति की उपासना को स्वीकार किया है. ग्रामीण दिनेश चन्द्र झा, उमेश चन्द्र झा,विद्यापति झा,धनंजय झा,मनोज मिश्रा,मनोज झा,लगार पंचायत के पूर्व मुखिया सत्यनारायण मिश्र,अविनाश मिश्र उर्फ मुकेश मिश्रा,खगेश चन्द्र झा,सुर्दशन शास्त्री आदि बताते हैं कि कई वर्ष पूर्व बार बार बाढ़ की विभीषिका से लोग तंग आ चुके थे. उसके बाद भी हमारे पूर्वजों ने मां की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा एक बार नवरात्रि प्रारंभ होने वाला था लेकिन मंदिर में बाढ़ का पानी भरा हुआ था. ग्रामीण चिंतित थे कैसे होगी मां की पूजा. लेकिन रातों रात पानी निकल गया. पून:पूजा प्रारंभ हुआ. विजयादशमी के दिन मंदिर के पुजारी एवं भक्तों ने मां से विनती किया मां अगले वर्ष से हमलोग पूजा नहीं कर पाएगें. बा़ढ़ की विभीषिका से तंग आ चुका हूं हमलोगो की आर्थिक स्थिति भी दयनीय हो चुकी हैं. यह कहके मां की प्रतिमा के साथ साथ मेढ को भी गंगा में प्रवाहित कर दिया. भक्त और भगवान की प्रेम भला कैसे दूर हो सकती हैं. अगले वर्ष मंदिर के पुजारी को मां ने स्वप्न दिया मेरी पूजा इसी मंदिर में होनी चाहिए. सभी कष्टों का निवारण होगा तुमलोगों की भक्ति से हम खुश हैं. नवरात्रि प्रारंभ होने में कुछ दिन शेष थे लोग चिंतित थे आखिर पूजा कैसे करे. क्योंकि बाढ़ की विभीषिका से आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. पून: मां दुर्गा ने पुजारी को स्वप्न दिया जो भी तुम भोजन प्राप्त करते हो उसका ही भोग लागाकर मेरी पूजा करो. उस दिन से मां चतुर्भुजी दुर्गा को साग एवं बगिया का भोग लगाया जाता हैं. जो आज भी परम्परा बरकरार हैं. आज मां की कृपा से बिशौनी गांव में जिलाधिकारी, मत्स्य विभाग के डायरेक्टर, कृषि विभाग के डायरेक्टर , इंजीनियर, आधा दर्जन से अधिक महिला पुरुष डाक्टर, बैंक मैनेजर, सरकारी अधिवक्ता , मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य, प्रोफेसर , विधायक आदि पदों की कुर्सी को सुशोभित कर गांव एवं जिले का नाम रोशन किया है. मां की दरबार से भक्त गण खाली हाथ वापस नहीं जाते हैं. एक बार अंग्रेज के एक अधिकारी ने मां की दरबार में पुत्र प्राप्ति हेतु माथा टेका और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. प्रतिवर्ष नवरात्रि के मौके पर आस्था का सैलाब उमड़ता हैं. नवरात्रि के सप्तमी दिन काल रात्रि के दिन निशा पूजा किया जाता हैं. लगातार 25 वर्षों से मां की सेवा करते आ रहें नित्यानंद वेद महाविद्यालय वाराणसी के प्राचार्य डाक्टर प्राण मोहन कुंवर (खजरैठा निवासी) बताते हैं कि निशा पूजा के दिन मां को महा स्नान कराया जाता हैं तथा विधि विधान के साथ पूजा किया जाता हैं. जिसमें काला कबूतर व काले रंग के छागर की बलि दी जाती हैं. इस पूजा को देखने प्रतिवर्ष काफी संख्या में भक्त गण मंदिर में जुटते हैं. ऐसी मान्यता हैं की भाग्यशाली भक्त हीं निशा पूजा देख पाते हैं. जिनपर माँ की कृपा नहीं होती हैं वे निन्द्रा के आगोश में चले जाते हैं. निशा पूजा के दर्शन व प्रसाद प्राप्त करने से चमत्कारी परिणाम के दर्जनों किस्से इलाके के लोगों को जुबानी याद हैं. मंदिर के आचार्य रिंकु झा बताते हैं कि नौवीं के दिन करीब दो दर्जन कुवांरी कन्याएं की पूजा मां भगवती के सामने होती हैं. भक्त गण अपने अपने चिन्हित कुवांरी कन्या को नये वस्त्र पहना कर एवं श्रृंगार से सुसज्जित करते हैं. मंदिर में कतार वद्ध कर कन्या की पूजा विधि विधान से की जाती हैं. तथा खोइचा मिष्ठान एवं द्रव्य से भरा जाता हैं. कुवारी कन्या पूजन के अंतिम क्षण में उपस्थित सैकड़ों भक्त गण कन्या को हंसने के लिये विनती करती हैं. दुर्गा रुपी कन्या भक्त की विनती सुनकर हंसती हैं. कुंवारी कन्या की हंसी से मंदिर परिसर भक्ति मय एवं खुश हाल हो जाता हैं. कन्या से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये मंदिर में भीड़ उमड पडती हैं. बिशौनी गांव नवरात्रि के प्रत्येक दिन घर घर में कुंवारी कन्या एवं ब्रह्मण भोजन करवा जाता हैं. कन्या पूजन देखने के लिये दुर दराज से भक्त गण आते हैं. भीड़ को देखते हुए मंदिर को वातानुकूलित किया गया है. जो जिले का एक मात्र मंदिर है. मंदिर का बनावट भी वगार्कार हैं।नवरात्रि के मौके पर बिशौनी में चतुभुर्जी दुर्गा की पूजा अर्चना विधि विधान तरीके से होती हैं. जो इलाके चर्चा का विषय बना रहता हैं. युवा पीढ़ी के ग्रामीण पप्पु मिश्रा ,राजीव झा प्रवीण गौतम,नीतीश गौतम,कुमुद झा,नटवर मिश्रा,सिन्धु मिश्रा,मोनु मिश्रा,रमण कुमार,तुषार मिश्र,नितीन मिश्रा,पंकज झा,विनय मिश्रा,आलोक झा,,सतीश मिश्रा ,राघव झा आदि बताते हैं कि विजयादशमी के दिन एक विशेष परंपरागत कई सौ वर्ष से ग्रामीण करते आ रहे हैं. जो एकता का प्रतीक हैं. विजयादशमी की संध्या के समय मां की प्रतिमा गंगा में विसर्जन हेतु जब मंदिर से निकला जाता हैं तो महिलाओं द्वारा विदाई गीत से माहौल गम में डूब जाते हैं तथा भक्त जनो की आंखें नम हो जाती हैं. जय माता दी की घोष ,शंख,घंटे की आवाज से वातावरण भक्ति में डूब जाती है. विसर्जन के समय सभी ग्रामीण उपस्थित रहते हैं. मां के विसर्जन के बाद मंदिर प्रागंण में छोटे बड़े सभी लोग एक दूसरे से गले मिलकर आपसी प्रेम का इजहार करते हैं. तथा एक दूसरे के घर जाकर बड़े से आशीर्वाद एवं छोटे को शुभ प्यार देते हैं. बताते चले कि बिशौनी के अधिकांशत: अन्य जगह रहते हैं. दुर्गा पूजा के मौके पर सपरिवार उपस्थित होकर मां चतुभुर्जी दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं. मां चतुभुर्जी दुर्गा सुख,शांति,एवं समृद्धि का प्रतीक हैं. आज मां के आशीर्वाद से यहां के लोग सप्रतिशत साक्षर हैं तथा जिले में एक अलग पहचान है. मां चतुभुर्जी दुर्गा की असीम कृपा से कई मां की सुनी गोद भरी है. सन्तान प्राप्ति एवं आसाध्य रोगों से मुक्ति के लिए विख्यात हैं.
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सुवख्यिात हैं बिशौनी की चतुर्भुजी मां दुर्गा
सुविख्यात हैं बिशौनी की चतुर्भुजी मां दुर्गा साग व बगिया का लगता है भोगभाग्यशाली भक्त ही देख पाते हैं निशा पूजाकुंवारी कन्या पूजा का विशेष महत्व कहते हैं अंग्रेज अधिकारी को मां की कृपा से हुई थी पुत्र की प्राप्ति अति प्राचीन सिद्ध पीठ में हैं पहचान, मंदिर का आकार भी चतुर्भुज विजयादशमी के दिन […]
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