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नहीं सीख ले रहा है निजी विद्यालय प्रबंधन

गोगरी: विभागीय उदासीनता व अधिकारियों की अनदेखी के कारण अनुमंडल क्षेत्र में संचालित विभिन्न निजी विद्यालयों द्वारा अब भी खटारा स्कूली वाहन धड़ल्ले से चलाये जा रहे है. डीएवी के वाहन पलटने के बाद तीन दर्जन से अधिक बच्चों के घायल हो जाने के बावजूद भी विद्यालय प्रशासन अनदेखी कर खटारा वाहन चला रहे है. […]

गोगरी: विभागीय उदासीनता व अधिकारियों की अनदेखी के कारण अनुमंडल क्षेत्र में संचालित विभिन्न निजी विद्यालयों द्वारा अब भी खटारा स्कूली वाहन धड़ल्ले से चलाये जा रहे है. डीएवी के वाहन पलटने के बाद तीन दर्जन से अधिक बच्चों के घायल हो जाने के बावजूद भी विद्यालय प्रशासन अनदेखी कर खटारा वाहन चला रहे है.

खटारा किस्म के वाहनों के उपयोग पर न तो रोक लग पा रही है और न ही नियमों का पालन कराया जा रहा है. निजी विद्यालयों में नियमों की अनदेखी के साथ चलाये जा रहे जर्जर वाहनों के कारण बच्चों की जान सांसत में रहती है, जबकि बच्चों को विद्यालय लाने व ले जाने के नाम पर अभिभावकों से प्रत्येक माह मोटी राशि उगाही जाती है.

हाल निजी विद्यालयों की बस का

अनुमंडल क्षेत्र में सौ से अधिक निजी विद्यालय हैं. दर्जनों ऐसे विद्यालय हैं जो बच्चों को विद्यालय तक लाने व ले जाने के लिए अपनी ओर से वाहनों का परिचालन करा रहे हैं. यहां नियमों का माखौल उड़ाया जा रहा है. अधिकतर बड़े-बड़े विद्यालयों में ऐसे खटारा किस्म बस व अन्य वाहनों को रखा गया है जो सड़क पर यात्री वाहन के रूप में सही ढंग से कार्य नहीं कर सकते हैं. विद्यालयों में बेधड़क इन वाहनों का उपयोग किया जा रहा है. जो दुर्घटना का कारण बनती है. इन वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चों को भी चढ़ाया जाता है. कई बस इस स्थिति में हैं कि बिना दुर्घटना के ही बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है. इधर-उधर निकले कील, चदरा व तख्ती से भी बच्चों को खरोंच व चोट लगते रहता है.

कहते हैं अभिभावक

आमलोगों की मानें तो विद्यालयों में जर्जर वाहनों के परिचालन पर रोक लगने के साथ ही इसे लेकर नियमों के पालन पर भी ध्यान देना आवश्यक है. मनोज कुमार मंडल कहते हैं कि डीएवी के अलावा भी अन्य विद्यालयों में जर्जर बस व अन्य वाहन धड़ल्ले से चलाया जा रहा है. अमित कुमार कहते हैं निजी विद्यालय द्वारा बच्चों को विद्यालय लाने व ले जाने के नाम पर अभिभावकों से उगाही की जा रही है. चार से पांच किलोमीटर के दायरे में भी किराया में पांच से छह सौ रुपये प्रतिमाह लिया जाता है. अधिकारियों को किराया निर्धारण भी करना चाहिए. विवेक कुमार कहते हैं बसों में सीट से अधिक बच्चों को भेड़ बकरी के तरह ठूंस कर चढ़ाया जाता है. लोग बच्चों को बस में खड़ा होकर जाने के लिए तो पैसे नहीं देते, परंतु अधिकारी इस ओर ध्यान ही नहीं देते हैं.

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