कटिहार बदलती जीवन शैली व वर्तमान विकास मॉडल से आज वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संकट एक गंभीर चुनौती बन गयी है. मंगलवार को विश्व पृथ्वी दिवस है. प्रदेश व देश के स्तर पर विभिन्न आयोजन के जरिये पृथ्वी का संरक्षण व बचाने की अपील की जाती है तथा इसके लिए संकल्प भी लिया जाता है. पर उपभोक्तावादी संस्कृति व बदलती लाइफ स्टाइल का पर्यावरण व पृथ्वी संकट को बढ़ाने में बड़ी भूमिका है. कटिहार जिले में पृथ्वी व पर्यावरण संकट कम नहीं है. पृथ्वी के संकट को कई रूपों में देखा जा रहा है. छोटे बड़े सभी तालाब सूखने लगे है. पेड़ पौधा भी समय से पहले सुख जाते है. स्वास्थ्य पर भी व्यापक असर पड़ रहा है. जल प्रदूषित हो रही है. बारिश के मौसम में अपेक्षित बारिश नहीं होती है. जब बारिश का मौसम नहीं होता है. तब मुसलाधार बारिश होने लगती है. शहरीकरण की वजह से भी पर्यावरण व पृथ्वी संकट उत्पन्न हुआ है. मोबाइल टावर, बड़े बड़े मॉल, औद्योगिक प्रतिष्ठान के लगने से भी कई तरह का संकट बढ़ा है. पृथ्वी को बचाने का एक प्रमुख साधन पेड़-पौधे, जल व पर्यावरण संरक्षण ही है. जानकारों की मानें तो जिले के पूरे भू-भाग में से एक तिहाई क्षेत्र में पेड़-पौधे होने चाहिए, लेकिन मात्र 10 फीसदी भू-भाग पर ही पेड़ पौधे लगे हुए हैं. जिस रफ्तार से पेड़-पौधों की कटाई हो रही है, उसके अनुरूप पौधारोपण नहीं किया जाता है. इससे पर्यावरण व पृथ्वी में असंतुलन की स्थिति बन गयी है. खासकर उपभोक्तावादी संस्कृति की वजह से लोग पर्यावरण व पृथ्वी के प्रति उदासीन बने हुए हैं. बढ़ती आबादी की तुलना में जितने पेड़-पौधों की जरूरत प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए जरूरी है. उसके हिसाब से जिले में पेड़-पौधे की भारी कमी है. छोटे-बड़े तालाब व नदी को बचाना चुनौती जल का सबसे बेहतरीन स्रोत तालाब है. लेकिन तालाब का अस्तित्व ही इन दिनों खतरे में है. यूं तो जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कई तालाब है. जिले में कई प्रमुख नदियां भी है. पर इन नदियों और तालाबों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. बाजारवाद के इस दौर में सर्वाधिक नुकसान प्राकृतिक संपदा को हो रही है. इसमें नदी व तालाब भी शामिल है. पर्यावरण प्रदूषण की वजह से बढ़ती तपिश व गरमी ने पानी के स्तर को काफी नीचे कर दिया है. विभागीय आंकड़ों पर भरोसा करें, तो जिले के 70 फीसदी से अधिक छोटे-बड़े तालाब पूरी तरह सूख गये हैं. नदी तालाब के सूखने से मनुष्यों सहित जीव-जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. नदी तालाब के सूखने से खासकर जलीय जीव व पौधाें पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है. संरक्षण के अभाव में कई जलीय जीव विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं. कटिहार जिले में तालाब व नदी को बचाने के लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर अब तक सिर्फ खानापूर्ति होती रही है. जिला मत्स्य विभाग के कार्यालय के अनुसार कटिहार जिले में करीब 936 जलकर है. जिसे राजस्व विभाग के द्वारा मत्स्य विभाग को हस्तांतरित किया गया है. इनमें से करीब आधा दर्जन जलकर बड़ी नदियों में विलीन हो गया है. अब मत्स्य कार्यालय के पास करीब 900 जलकर बचा हुआ है. अधिकांश जलकर अतिक्रमण का शिकार है. साथ ही कई अन्य तरह से भी जलकर व तालाबों को नुकसान पहुंचाने की प्रक्रिया भी चल रही है. रोक के बाद भी पॉलीथिन का धड़ल्ले से उपयोग जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में पॉलीथीन के रोक के बावजूद धड़ल्ले से इसका उपयोग किया जा रहा है. पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाने में पॉलीथिन का बहुत बड़ा योगदान है. मिट्टी को प्रदूषित करने के साथ-साथ पॉलीथिन कई तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है. पर्यावरण संकट का प्रमुख कारण पॉलीथिन के होने के वजह से ही राज्य सरकार ने पॉलिथीन कैरी बैग पर प्रतिबंध लगाया है. कुछ माह तक पॉलीथिन का उपयोग बंद जरूर हुआ, लेकिन प्रशासनिक निगरानी नहीं होने की वजह से फिर से पॉलीथिन का उपयोग होने लगा है. शहरी क्षेत्रों की नकल ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगे है. ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे-बड़े बाजार या हाट में भी पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से हो रही है. प्रशासन पॉलीथिन के उपयोग की रोकथाम के मामले में पूरी तरह उदासीन बना हुआ है. धड़ल्ले से हो रहा मिट्टी का खनन इन दोनों जिले के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी का खनन धड़ल्ले से किया जा रहा है. खासकर ईट भट्टा व नये-नये प्रोजेक्ट के लिए मिट्टी की जरूरत होती है. मिट्टी का खनन करके ही इन जरूरत को पूरा किया जा रहा है. यह अलग बात है कि दिखावे के लिए जिला खनन विभाग की ओर से छापेमारी की जाती है तथा कुछ ट्रैक्टर और ट्रक भी जब्त किया जाता है. अधिकांश मामलों में ऐसा नहीं होता है. जानकारी के माने तो ईट भट्टा व बड़े-बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने वाले संवेदक अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके धड़ल्ले से मिट्टी का खनन करते है. जिले के डंडखोरा, कदवा, आजमनगर, बारसोई, कुरसेला, प्राणपुर, मनिहारी सहित विभिन्न प्रखंडों में मिट्टी की कटाई धड़ल्ले से हो रही है. कई क्षेत्रों में तो चोरी छुपे रात में मिट्टी कटाई कर उसकी ढुलाई की जाती है. उल्लेखनीय है कि मिट्टी के संरक्षण से ही पृथ्वी को बेहतर किया जा सकता है एवं उसे बचाया जा सकता है. कहते हैं पर्यावरणविद जाने-माने पर्यावरणविद् डॉ टीएन तारक ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि पृथ्वी व पर्यावरण के लिए कई तरह के गंभीर संकट उत्पन्न होने लगे है. आम लोगों के जीवन शैली व विकास के मॉडल भी पर्यावरण व पृथ्वी संकट के लिए खास तौर से जिम्मेदार है. पर्यावरण संकट से बचाव का एक ही तरीका है कि हम अधिक से अधिक पौधारोपण करें. जल संरक्षण की दिशा में पहल होनी चाहिए.
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