सूरज गुप्ता, कटिहार जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में अगस्त क्रांति दिवस के मौके पर बुधवार को कई तरह की गतिविधि आयोजित की गयी. मूसलाधार बारिश के बीच हर घर तिरंगा कार्यक्रम अभियान के तहत तिरंगा यात्रा भी निकाली गयी है. इस बीच स्वाधीनता संग्राम में शामिल लोगों की गाथा भी लोग सुना रहे है. कटिहार जिले के लोगों ने भी जंग-ए- आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. कई लोगों ने तो अपना आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. जबकि बड़ी संख्या में लोगों ने आजादी की लड़ाई में अलग-अलग तरीके से योगदान दिया. इस दौरान अंग्रेजों की यातनाओं को भी झेला. आजादी की 78 वीं सालगिरह के मौके पर प्रभात खबर ने आजादी की लड़ाई में योगदान देने वाले वीर सपूतों के वीर गाथाओं की श्रृंखला प्रकाशित कर रही है. कटिहार जिले के स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार से जुड़ी घटनाओं से संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित की जा रही है. बताया जाता है कि वर्तमान में कटिहार और पुराने पूर्णिया जिले के समेली ग्राम निवासी स्व लब्बू माली के चतुर्थ पुत्र नक्षत्र माली है, जो बाद में नक्षत्र मालाकार के नाम से जाना गया. बताया जाता है कि अक्टूबर 1905 में जन्मे नक्षत्र मालाकार ने आजादी की लड़ाई में अलग-अलग तरीके से योगदान दिया. कई बार अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें सलाखों के पीछे धकेला. पर उनके मजबूत इच्छाशक्ति पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. जेल से निकलने के बाद भी वह आजादी की लड़ाई सक्रिय रहे. ब्रिटिश हुकूमत काल में नक्षत्र मालाकार न केवल अंग्रेजों से लड़ते रहे. बल्कि उस दौरान सामंती ताकतों से भी जूझते रहे तथा उन से लोहा लेते रहे. गरीबों पर अत्याचार करने वाले सामंती ताकतों के खिलाफ जमकर मुकाबला करते थे. यही वजह है कि स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ वह रॉबिन हुड, डाकू, लूटेरा, नाककट्टा और अन्य उपभ्रंश नामों से लोगों के बीच चर्चित हुए. ब्रिटिश काल में सामंती ताकतों से लेते रहे लोहा जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता व राज्य संसाधन समूह के पूर्व सदस्य विमल मालाकार ने बातचीत में बताया कि नक्षत्र मालाकार बहुत अधिक पढ़े लिखे नहीं थे. कम पढ लिखकर भी वे अपने को स्वतंत्रता संग्राम से अलग नहीं रख सके. बताया जाता है कि उन्होंने पढ़ाई का कार्य सलाखों के अंदर ही सम्पन्न किया. सलाखों के अंदर वे अपने शैक्षणिक कार्य में लगनशील दिखते थे. उनमें जीवन के प्रथम पड़ाव से ही स्वाभिमान, निर्भीकता, समाज सेवा, क्रांतिकारिता, श्रमदान और अन्य समाजसेवी की भावना भरा परा है. मात्र 10 वर्ष की अवस्था में उनके हीं सामने उनके पिता को जमींदार के एक सिपाही ने गाली दे दिया. इस तरह के अपमान को वे बर्दाश्त नहीं कर पाए. फलस्वरूप प्रतिकार के रूप में वे उस सिपाही को मारने के लिए उठ गए. इस तरह के प्रतिरोध से सिपाही केवल सहमा हीं नहीं. बल्कि अत्यधिक भयभीत हो गया. बताया जाता है कि ज्यों-ज्यों उनकी उम्र बढ़ती गयी, त्यों-त्यों उनका झुकाव राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन की ओर होता गया. साथ हीं वे गरीबों की बहू-बेटियों और परिवारों के साथ फिरंगियों और उनके चाटुकारों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार का बदला भी लेने लगे. नमक सत्याग्रही के रूप रहे सक्रिय जानकारों की मानें तो नक्षत्र मालाकार ने महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया. अंग्रेजों ने इसे रोकने के लिए उत्तरी बिहार में कई जगह नाकेबंदी की. पर सत्याग्रही नहीं माने. प्रमुख रूप से भागीदार होने के कारण इन्हें गिरफ्तार किया गया. अपने 42 साथियों के साथ नक्षत्र को छह माह की सजा हुई और आरा जेल भेज दिया गया. वहां का जेलर कैदियों को ढंग का खाना नहीं देता था और उनके साथ दुर्व्यवहार करता था. इन्होंने वहां अनशन किया. नक्षत्र को दूसरी बार जेल की सजा तब हुई. जब वे विदेशी कपड़ों के बहिष्कार अभियान में कटिहार में काम कर रहे थे. वे विदेशी कपड़ों की दुकान के आगे सो जाते थे. ग्राहकों को दुकान पर नहीं आने के लिए प्रेरित करते थे. इनकी इस गतिविधि से त्रस्त दुकानदार ने थाने को सूचित किया तो नक्षत्र को छह माह के लिए गिरफ्तार कर गुलजारबाग पटना कैम्प जेल भेज दिया. सजा काटने के बाद वह घर नहीं लौटकर सीधे टीकापट्टी आश्रम गए और यहीं रहकर एक गांधीवादी कांग्रेसी कार्यकर्ता के रंग में रंग गए. जानकारों की मानें तो उन दिनों बिहार में गांधी के रचनात्मक कामों और जन सेवा को लेकर प्रशिक्षण खोले गए. मुजफ्फरपुर में नक्षत्र ने एक महीने की चर्खा ट्रेनिंग ली. तीन महीने तक मोतिहारी में प्रशिक्षण प्राप्त किया. हालांकि बाद के दिनों में नक्षत्र का कांग्रेस से मोहभंग हो गया तथा समाजवादी बन गए. जयप्रकाश नारायण के संपर्क में भी आए. बताया जाता है कि जयप्रकाश नारायण ही नक्षत्र माली से नक्षत्र मालाकार का नाम दिया. बाद के दिनों में वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए. वर्ष 1987 में 82 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.
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