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शहीदी गुरुपर्व मानव कल्याण अरदास के साथ संपन्न

शहीदी गुरुपर्व मानव कल्याण अरदास के साथ संपन्न

खालसा पंथ के पंचम गुरु का तीन दिवसीय शहीदी गुरुपर्व मनाया गया बरारी एतिहासिक धरती बरारी में खालसा पंथ के पंचम पातशाही के तीन दिवसीय 419वां महान शहीदी गुरूपर्व जपयो जिन अरजन देव गुरू,फ़िर संकट जोन गरद ना आयो शब्द गायन के साथ शुक्रवार को देर संध्या संपन्न हुआ. माता मुखौ कौर सम्पतो कौर ट्रस्ट गुरूद्वारा भंडारतल में तीन दिवसीय श्रीगुरु ग्रंथ साहिब के अखंड पाठ की समाप्ति शुक्रवार को दिन के दस बजे हुई. अखंड पाठ समाप्ति के बाद भव्य पंडाल में श्रीगुरु ग्रंथ साहिब की हजुरी में दीवान सजाया गया. दरबार साहिब अमृतसर के हजुरी राजी जत्था भाई गुरप्रीत सिंह ने गुरुवाणी शब्द मनोहर कीर्तन कर संगतों को निहाल किया. पश्चिम बंगाल रानीगंज के राज्ञी जत्था भाई रविन्द्र सिंह ने गुरुवाणी घरण गगन नव खण्ड में जोत सरोपी रहियो भर मन मथुरा कछु भेद नहीं गुरु अरजन पत्यक्ष हर शब्द गायन कर संगतों को श्रवण कराया. तख्त श्रीहरिमंदर जी पटना साहिब के कथा वाचक भाई दलजीत सिंह जी ने गुरु की महिमा से इलाके की संगतों को गुरूदर्शन गुरुवाणी से निहाल किया. कथा में बताया उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया. जो वर्तमान में पाकिस्तान में है. गुरु जी का पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा है. वे दया और करुणा के सागर थे. सिखों के पांचवें गुरु अरजन देव गुरु परंपरा का पालन करते हुए कभी मुंगलों के आगे नहीं झुके. उन्होंने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर देना स्वीकार किया. लेकिन मुगलशासक जहांगीर के आगे झुके नहीं. वे हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे. अरजन देव जी का जन्म 15 अप्रैल साल 1563 में हुआ था. वर्ष 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने. उन्होंने ही अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी. जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है. कहते हैं इस गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं अर्जुन देव जी ने ही बनाया था. गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया. शहजादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी. तब जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया, तो वह भागकर पंजाब चला गया. खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा. मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अरजन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गयी. अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन् 1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया. उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया. यातना के कारण जब वे मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया. उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है. गुरु अर्जुन देव का पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा है. वे दया और करुणा के सागर थे. पूर्व केन्द्रिय राज्य मंत्री निखिल कुमार चौधरी, अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष सह तख्त हरिमंदर जी पटना साहिब के वरिय मीत प्रधान सरदार लखविंदर सिंह लक्खा, प्रखंड बीस सूत्री अध्यक्ष मनोज कुशवाहा, सभी गुरुद्वारा के प्रधान व सचिव एवं जनप्रतिनिधि को गुरूद्वारा के प्रधान सरदार अमरजीत सिंह ने सम्मान स्वरूप शिरोपां देकर सम्मानित किया. जिलापार्षद गुणसागर पासवान, पूर्व उप प्रमुख अमरेन्द्र सिंह संजू, मुखिया नवल कौशिक आदि को शिरोपा देकर सम्मानित किया गया. केएम सेवा संस्था के द्वारा संगतो के बीच ठंडा जल की सेवा करती रही. हेडग्रंथी गई गुरजीत सिंह ने गुरूग्रंथ साहब के समक्ष मानव कल्याण अरदास किया. कढ़ाह प्रसाद एवं गुरु का लंगर अटूट बरताया गया. कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रबंधक कमेटी खालसा युवा दल, स्त्रीसतसंग, गुरूपर्व कमेटी के गुरुदयाल सिंह, गुरेन्द्रपाल सिह, सत्यदेव सिंह, जसवीर सिंह, रिपू सिंह, नरेन्द्र सिंह, मनोज सिंह, उपमुखिया बिमल सिंह, कमल सिंह, अकवाल सिंह सहित संगतों ने योगदान दिया. सभी ने गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष शीश नवाकर आशीष लिया. जो बोले सो निहाल के जयघोष से गुरुपर्व समापन हुआ.

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