भभुआ. जिले में पड़ रही प्रचंड गर्मी के कारण अब भूजलस्तर का पानी पाताल में घुसने लगा है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, जिले की 146 पंचायतों में से 108 पंचायतों में भूजलस्तर का लेबल सुरक्षित मानक से भी नीचे खिसक चुका है. गौरतलब है कि पहाड़ी बाजूओं के बीच बसा कैमूर जिला हर साल गर्मी में पानी को लेकर छटपटाने लगता है. आदमी से लेकर पशु तक पानी के एक एक बूंद के लिए जद्दोजहद करने लगते हैं. फिलहाल जिले में मॉनसूनी बारिश का कही नामो निशान नहीं है. नहरों में भी ठीक से पानी की आपूर्ति नहीं किये जाने के कारण भू जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है. इधर, जिले के भूजलस्तर की बात करें तो पिछले तीन माह यानी 15 मार्च से लेकर 15 जून तक औसत भू जल स्तर जिले में चार से लेकर पांच फीट नीचे गया है. रह गयी बात जहां तक सुरक्षित वाटर लेबल की, तो जिले की मात्र तीन प्रखंडों की 38 पंचायतों में अभी भू जल स्तर सुरक्षित लेबल पर पाया गया है. इसमें भगवानपुर प्रखंड की मोकरम, भगवानपुर, तोड़ी, जैतपुर आदि सहित नौ पंचायतें, रामपुर प्रखंड की बेलांव, सवार, पसाई आदि सहित 11 पंचायतें तथा मोहनिया प्रखंड की अकोढी, बम्हौर, देवराढ खुर्द आदि सहित 18 पंचायतें ही ऐसी हैं, जहां वाटर लेबल का स्तर 29 से लेकर 32 फीट नीचे यानी सुरक्षित लेबल पर कायम है. अब अगर वाटर लेबल के सुरक्षित मानक से ऊपर वाले की पंचायतों की बात करें, तो भभुआ प्रखंड की सीवों, अखलासपुर, दुमदुम सहित 22 पंचायतें, चैनपुर प्रखंड के सिरबिट, नौगढा, जगरिया सहित 16 पंचायतें, चांद प्रखंड की जिगना, सिहोरियां, सिरिहिरा सहित 12 पंचायतें, कुदरा प्रखंड की डेरवां, चिलबिली नेवरास सहित 15 पंचायतें तथा दुर्गावती प्रखंड की जेवरी, जनार्दनपुर, छांव सहित 13 पंचायतों में वाटर लेबल सुरक्षित जोन से ऊपर 35 से 40 फीट नीचे पाया गया है, जहां हलक तर करने के लिए लोगों को प्रयास करना पड़ रहा है. = जिले की चार पंचायतों में भूजलस्तर 50 फुट नीचे खिसका जहां तक जिले में भू जलस्तर गंभीर रूप से नीचे जाने की बात है तो जिले की चार पंचायतों में भू जल स्तर का लेबल लगभग 50 फुट नीचे चल रहा है, जहां पानी को लेकर लोग बेचैन हैं. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार इन चार पंचायतों में अधौरा प्रखंड के अधौरा, डुमरांवा तथा बड़वान कला पंचायतें और भगवानपुर प्रखंड की रामगढ़ पंचायत शामिल है. जबकि, वाटर लेबल के असुरक्षित जोन की बात करें तो जिले के नुआंव प्रखंड के मुखरांव, कोटा, तरैथा सहित नौ पंचायतें रामगढ़ प्रखंड की देवहलियां, बडौरा, जमुरना सहित 15 पंचायतें, अधौरा प्रखंड की दिघार, ताला, कोल्हुआ, जमुनीनार सहित छह पंचायतों में भू जल स्तर खतरे की घंटी बजा रहा है. इन पंचायतों में फिलहाल पशु से लेकर आदमी तक पानी के लिए दौड़ रहा है. अधौरा आदि पंचायतों में पीएचइडी द्वारा टैंकर से भी पानी भेजा जा रहा है. तीन माह में खिसके भूजलस्तर का प्रखंड वार ब्योरा प्रखंड 15 मार्च 15 जून अधौरा 35.0 40.8 भभुआ 32.7 37.2 भगवानपुर 25.7 28.8 चैनपुर 31.7 35.6 चांद 32.5 35.8 दुर्गावती 35.8 39.2 कुदरा 32.6 36.5 मोहनिया 27.0 32.1 नुआंव 38.0 41.4 रामगढ़ 37.8 41.3 रामपुर 24.4 29.5 क्या कहते हैं पदाधिकारी इधर इस संबंध में जब कार्यपालक अभियंता पीएचइडी के अवकाश पर होने के कारण प्रभार में चल रहे सहायक अभियंता से बात की गयी, तो उनका कहना था कि पानी को लेकर सभी कनीय अभियंताओं को अलर्ट कर दिया गया है. हर घर नल जल योजना की लगातार मानीटरिंग भी करायी जा रही है. फिलहाल 50 फुट वाटर लेबल पर जिले के अधौरा तथा भगवानपुर प्रखंड की चार पंचायतें है. जहां पानी की आपूर्ति नल जल योजना से लोगों को उपलब्ध करायी जा रही है. सूचना पर 24 घंटे के अंदर खराब चापाकलों की मरम्मत करायी जा रही है. जहां जरूरत है वहां राइजर पाइप लगाकर चापाकलों को दुरूस्त कराया जा रहा है. खराब नल जल योजना को भी चालू करने के लिए कनीय अभियंताओं और मिस्त्रियों के धावा दल को गश्त करके ठीक कर रहा है. अधौरा प्रखंड के मुशहरवा बाबा, प्रखंड मुख्यालय सहित जहां जरूरत है टैंकर से भी पानी की आपूर्ति करायी जा रही है. इन्सेट भूजल दोहन की अपेक्षा भूजल रिचार्ज की स्थिति खराब भभुआ. जिले में भूजलस्तर के दोहन की अपेक्षा भूजल रिचार्ज की स्थिति मजबूत नहीं दिखाई देती है. भूजलस्तर भागने का सबसे मुख्य कारण हर वर्ष बारिश कम होना तो है ही ऊपर से सिंचाई के लिए बड़े पैमाने पर मोटर पंपों का प्रयोग भी है. इसके अलावा बढ़ रहे शहरीकरण और उद्योगीकरण भी भू जल खपत के बड़े कारण बने हैं. लेकिन, समस्या यह है कि जल बर्बादी के लिए कोई दंडनीय प्रावधान नहीं होने के कारण भू जल का दोहन भी तेजी से किया जा रहा है. उदाहरण के लिए सरकार की नल जल योजना का टारगेट हर घर तक शुद्ध जल पहुंचाना है, लेकिन सरकारी आंकड़ों में ही नल जल योजना के पानी का भी बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है. इस पानी से लोग मवेशियों को धोने से लेकर सब्जी की खेती तक करते हैं. नतीजा है भूजल स्तर भागने से गर्मी में सरकार की नल जल योजना भी कई जगहों पर ठप हो जाती है. हालांकि भू जल रिचार्ज करने के लिए सरकार स्तर से चेकडैमों का निर्माण, तालाबों और कुओं का जीर्णोद्धार, सोख्ता का निर्माण, बांधों का निर्माण, बडे पैमाने पर पौधारोपण आदि कार्यक्रम चलाकर भूजल रिचार्ज करने का प्रयास किया जा रहा है, बावजूद इसके भूजल स्तर नीचे जाने के अपेक्षा भू जल रिचार्ज की स्थिति मजबूत नहीं बन पा रही है. गौरतलब है कि भू जल एक तरह का बैंक एकाउंट है. अगर बैंक से सिर्फ राशि निकासी की जाये और राशि जमा न की जाये तो एक दिन राशि खत्म हो जायेगी. इसी तरह भू जल रिचार्ज क्षमता नहीं बढ़ायी जाती है तो संकट गहरा होना तय है.
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