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विलुप्त होती जा रही हल-बैल की किसानी की परंपरा

पारंपरिक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता रहती है बरकरार

अलीगंज. मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती… यह गीत सुनते ही मन मस्तिष्क में एक छाया उभर कर आती है और वह होती है खेत में हल और बैलों के साथ काम करते हुए किसान, जो अपने अथक परिश्रम और लगन से मिट्टी से अनाज उगा कर सभी का पेट भरते हैं. लेकिन अब किसानी व खेती के तौर-तरीकों में बदलाव आ गया है. तकनीक आधारित खेती ने किसानी को काफी बदल दिया है. पारंपरिक तरीके की खेती शायद अब अपने अंतिम दौर में है, लगातार खत्म होती जा रही है. नयी पीढ़ी के किसान हल-बैल के सहारे खेती करना नहीं पसंद करते हैं. हालांकि हल-बैल से खेती में मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है, ऐसा किसी अन्य प्रकार से संभव नहीं होता है.

छोटे किसान पारंपरिक खेती के तरीके को रख रहे जीवित

छाेटे किसान अभी भी हल और बैल के माध्यम से ही खेती करते हैं. किसान तुलसी महतो, सुरेश कांदु, केदार महतो, रामरूप यादव, संजय महतो, रामधीन यादव समेत अन्य किसान बताते हैं कि छोटी जोत में ट्रैक्टर के माध्यम से जुताई संभव नहीं होती है. जिन किसानों के पास छोटी खेती है वैसे किसानों को पारंपरिक रूप से ही खेत की जुताई करनी पड़ती है. कई किसानों ने बताया कि बैल व हल से जुताई करने पर मिट्टी की गुणवत्ता कायम रहती है. ट्रैक्टर से जुताई करने पर मिट्टी में पाये जाने वाले केचुए खत्म हो जाते हैं, जो हल-बैल से जुताई करने पर बचे रहते हैं. बैल और हल के माध्यम से जुताई किये गये खेत का उत्पादन में भी फर्क होता है. हम मिट्टी से जुड़े हैं, मिट्टी पर रहते हैं, मिट्टी से ही जीवन यापन होता है और अंतिम समय भी मिट्टी में मिलते हैं. ऐसे में हम अपनी पारंपरिक खेती को आगे बढ़ाते हैं, जो हमारे पूर्वज करते रहे थे. किसानों ने कहा कि हमारे बारे में सरकार को और सोचना चाहिये. बड़े-बड़े उद्यमियों और अमीरों के कर्ज माफ कर दिये जाते हैं लेकिन किसान का छोटा सा कर्ज भी माफ करने पर हो-हल्ला होने लगता है.

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Prabhat Khabar News Desk
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