जयकुमार शुक्ला, चकाई
भक्तों की आस्था का प्रतीक हैं मां तीन घरा वाली दुर्गा. प्रखंड क्षेत्र के तीन घरा गांव में अवस्थित चैती दुर्गा मंदिर में कामना लेकर आने वाले भक्तों की कामना मां अवश्य पूरी करती हैं. कोई भी इनके दरबार से कभी खाली हाथ नहीं लौटा है. इसी कारण मां के मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है.मंदिर का इतिहास
तीन घरा दुर्गा मंदिर के संयोजक अहलाद पांडे के वंशज 95 वर्षीय मोहन पांडे बताते हैं कि लगभग दौ सौ वर्ष पूर्व निर्मित इस दुर्गा मंदिर में भक्तों की असीम आस्था है. उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज तथा यहां के पूर्व जमींदार अहलाद पांडे क़ो कोई संतान नहीं था. संतान की प्राप्ति के लिए उन्होंने तीन तीन विवाह किये, मगर उन्हें संतान का सुख नहीं मिला.अंत में अपने कुल पुरोहित के परामर्श पर उन्होंने अपनी कुलदेवी खड़ग वाहिनी मां दुर्गा की पूजा अर्चना कर मन्नत मांगी कि अगर उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, तो वे तीन घरा में मां दुर्गा का मंदिर निर्माण कराकर वासंतिक नवरात्र के पावन अवसर पर मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना करेंगे. मां खड़ग वाहिनी दुर्गा मां की कृपा से उन्हें दो पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. वहीं वचन के अनुसार मनोकामना पूरी होने पर उन्होंने तीन घरा गांव में मां दुर्गा की मंदिर का निर्माण करा कर वासंतिक नवरात्र के मौके पर अपने पुरोहित पंडित महादेव भट्टचार्य से मां की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा कराकर नवरात्र की पूजा आरम्भ की जो आज भी जारी है. वर्तमान में भी महादेव भट्टाचार्य के वंशज सुशील भट्टचार्य इस दुर्गा मंदिर के पुजारी हैं.वासंतिक नवरात्र के अवसर पर मंदिर परिसर में लगता है तीन दिवसीय मेला
वासंतिक नवरात्र के पावन अवसर पर महाअष्टमी, नवमी एवं विजयदशमी क़ो मां चैती दुर्गा के दर्शन एवं पूजा अर्चना करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. अपनी मन्नत पूरी होने की ख़ुशी में मां के मंदिर प्रांगण में महाअष्टमी एवं नवमी क़ो सैकड़ों बकरे की बलि चढ़ाते हैं. वहीं मंदिर प्रांगण में तीन दिनों तक भव्य मेला लगता है, जहां लोग लजीज मिठाइयां सहित मेले में लगे मनोरंजन साधन मीना बाजार, तारामंची, कठघोड़िया आदि का लुफ्त उठाते हैं.मंदिर क़ो मिली दान की जमीन से होता है मंदिर का रखरखाव एवं अन्य खर्च
बताया जाता है कि जमींदार अहलाद पांडे ने मां दुर्गा के मंदिर निर्माण के साथ साथ पूजा अर्चना एवं मंदिर के रखरखाव में होने वाले खर्च के लिए 32 एकड़ 36 डिसमिल जमीन मंदिर के नाम दान में दी थी. उसी भूमि से फसलों की उपज क़ो बेचकर उससे होने वाली आय से आज भी मंदिर का खर्च पूजा समिति की ओर से किया जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

