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पुश्तैनी धंधा बचाने के लिए सरकारी सहायता की आस में मोहली समुदाय के लोग

प्रखंड की रामचंद्रडीह पंचायत के कोहवारा टांड के मोहली जाति के लोग आज भी अपने पुश्तैनी धंधा बांस से विभिन्न प्रकार के आकर्षक बर्तन तैयार कर किसी तरह अपनी जीविका चला रहे हैं.

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जयकुमार शुक्ला,

चकाई

प्रखंड की रामचंद्रडीह पंचायत के कोहवारा टांड के मोहली जाति के लोग आज भी अपने पुश्तैनी धंधा बांस से विभिन्न प्रकार के आकर्षक बर्तन तैयार कर किसी तरह अपनी जीविका चला रहे हैं. उनके बनाये गये बांस के बर्तन जैसे दोउरा, डाली, सुप, मोनी, पंखा, टोपा लोग बड़े चाव से खरीद कर अपने अपने घर में उपयोग करते हैं. इतना ही नहीं छठ जैसे महापर्व में इनके बनाये गये बर्तन डाली, दोउरा, सुप, मौनी आदि का व्रत करने वाले लोग उपयोग करते हैं. मान्यता है कि इनके हाथों से निर्मित बांस का बर्तन शुद्ध एव उपयोगी माना जाता है, इसलिए पर्व त्योहार में इसका उपयोग बड़े उत्साह के साथ किया जाता है.

नहीं मिल पाती है सरकारी सहायता

कोहवारा टांड निवासी सह बांस के बर्तन निर्माण से अपनी जीविका चला रहे राजेश मोहली, बुधन मोहली, लगन मोहली आदि बताते हैं कि बांस से बर्तन बनाकर तथा इसे बेचकर आजीविका चलाना इनका पुस्तैनी धंधा है, जो वर्षों से उनके पूर्वज और अब वे करते आ रहे हैं. लगभग 50 घर का कोहवरा टांड गांव के महादलित इसी परम्परागत धंधे पर निर्भर हैं. सरकारी लोन नहीं मिल पाने से उनको महाजन से अधिक ब्याज पर कर्ज पर लेकर बांस खरीदना पड़ता हैं. इस धंधे से कमाई तो होती हैं, मगर कमाई का एक बड़ा हिस्सा महाजन के कर्ज चुकाने में चला जाता है. दिन रात जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी उन्हें इसका उचित लाभ नही मिल पाता है. बताया कि हम महादलितों की आर्थिक स्थिति अब भी दयनीय हो गयी है. ऐसा नही है कि हम सभी कारीगरों ने सरकारी कर्ज लेने के लिए प्रयास नहीं किया. बेंकों के भी चक्कर लगाये, मगर बिना निजी संपत्ति के मोरगेज किये बिना बैंक कर्ज नहीं देता है. अगर उन्हें कर्ज के रूप में ही सरकारी सहायता मिल जाती, तो रोजी रोटी आसानी से चल जाती आ साथ में कुछ बचत भी कर लेते.

बाजार में बांस के बने बर्तनो की होती है भारी मांग

बाजारों में बांस से बने बर्तनो की अधिक डिमांड को देखते हुए झाझा, सोनो, बटिया, आदि स्थानों से व्यापारी कोहवराटांड आकर तथा ओने पौने दामों में बर्तन खरीद कर अच्छी कमाई कर लेते हैं जबकि बांस से बर्तन बनाने वाला गरीब महादलित इतनी हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद भी मुश्किल से अपना गुजर बसर कर पाते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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