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Jamui News: दहियारी के कई गांवों में न सड़क है न बिजली, बटिया स्थित प्रसिद्ध झुमराज मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए आज भी सुविधाएं नहीं

जमुई के दहियारी पंचायत और बटिया गाँव को आदर्श ग्राम के रूप मे गोद तो लिया गया लेकिन विकास के मामले में ये क्षेत्र आज भी अतिपिछड़े हैं. अधिकारियों की बैठकें तो हुईं , विकास की योजनाएँ भी बनी, पर धरातल पर एक भी काम नहीं हो पाया. आलम ये है कि इस क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का आज भी अकाल है.

  • नदी या अन्य प्राकृतिक स्रोतों से पानी लाकर पीते हैं लोग
  • अधिकारियों की बैठक तक ही सिमटा आदर्श ग्राम का विकास
  • विकास की बस बातें हुईं, धरातल पर नहीं हो सका कोई भी कार्य
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Jamui News: प्रखंड मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर दक्षिणी छोर पर स्थित दहियारी पंचायत व इसका बटिया गांव विकास के मामले में पिछड़ा हुआ है. पंचायत के कई गांव सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. जब दहियारी पंचायत व बटिया को आदर्श ग्राम के रूप में गोद लिया गया था तब यहां के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं था.आदर्श ग्राम के रूप में गोद लेने के बाद जिला पदाधिकारी सहित तमाम पदाधिकारियों की बैठकें बटिया में होने लगी थीं. ग्रामीणों का उत्साह चरम पर था. लेकिन बीतते समय के साथ ग्रामीण का उत्साह तब ठंडा पड़ने लगा, जब उन्होंने पाया कि घोषणाओं के बाद भी विकास को लेकर उनके पंचायत की तस्वीर नहीं बदल सकी. बहुत ज्यादा विकास होने की उम्मीद लगा बैठे यहां के लोगों के सपने टूट गये. दरअसल लंबे समय तक सिर्फ पदाधिकारियों की बैठकें ही होती रही थी और काम के नाम पर सिर्फ कागज पर योजनाओं का चयन होता रहा. जब धरातल पर उन कार्यों को उतारने की बात हुई तब तमाम बाधाएं आने लगीं. लगभग एक दशक के इस सफर में कुछ कार्य अवश्य हुए, परंतु ये उम्मीद से बेहद कम रहे. न तो पंचायत में विकास की आंधी दिखी और न ही पंचायतवासियों के जीवन में कोई अमूल चूल परिवर्तन हुआ. आदिवासी, महादलित जैसे पिछड़ी जातियों की बहुलता वाले कई गांव आज भी विकास की रोशनी से दूर है.

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कई गांवों तक सड़क नहीं, बिजली से भी हैं वंचित

दहियारी पंचायत के कई गांव तक आज भी सड़क नहीं जा पायी है. कई गांव बिजली से वंचित हैं. गांव के लोग अभी भी जंगल से लकड़ी व पत्ता लाकर जीवन यापन को मजबूर है. यहां ऐसा भी गांव है जहां के लोग जोरिया से पानी लाकर अपनी प्यास बुझाते हैं. गांव के लोग शुद्ध पेयजल का अभाव झेल रहे हैं तो कई जगहों पर स्वास्थ्य सेवा दम तोड़ती नजर आती है. आज भी दहियारी पंचायत मलेरिया से मुक्त नहीं हो सका. जिस बाबा झुमराज मंदिर के कारण बटिया आदर्श ग्राम बना उस मंदिर परिसर में सुविधाओं का घोर अभाव है. गंदगी की समस्या आज भी विकराल है. असुविधाओं व बदबू के बीच हजारों श्रद्धालु हर सप्ताह यहां से बुरा अनुभव लेकर जाते हैं. अब जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर है तो यहां भी विकास के बड़े-बड़े वादे पुनः किये जायेंगे. लेकिन लोग मानते हैं कि उन्हें सिर्फ ठगा जाता है. बावजूद इसके यहां के लोग आज भी सरकार से उम्मीद लगाये बैठे हैं कि शायद हमारी समस्याओं को दूर कर यहां विकास की रोशनी लायी जायेगी.

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क्यों फ्लॉप हुआ दहियारी का संपूर्ण विकास कार्यक्रम

जब दहियारी को आदर्श ग्राम पंचायत के रूप में चयनित किया गया, तब इस योजना के लिए एक मात्र आवंटित 50 हजार की राशि विभिन्न बैठकों के खर्च की भेंट चढ़ गयी. केंद्र की पीएमएफ टीम द्वारा पूरे दहियारी पंचायत में आवश्यक विकास योजनाओं के लिए सर्वे कराया गया था. जरूरी विकास कार्य की रिपोर्ट पीएमएफ द्वारा तत्कालीन जिलाधिकारी को सौंप दी गयी थी. जब इस रिपोर्ट के आधार पर विकास कार्य को धरातल पर उतारने की बात होने लगी, तब पदाधिकारी बंगले झांकने लगे थे. दरअसल जनप्रतिनिधि से लेकर जिला पदाधिकारी तक सबको लग रहा था कि आदर्श ग्राम को लेकर अलग से फंड आयेगा. लंबे समय तक पदाधिकारीगण इसी इंतजार में रहे. बाद में जब उन्हें यह पता चला कि आदर्श ग्राम के विकास के लिए अलग से कोई फंड नहीं आयेगा तब पदाधिकारियों का भी उत्साह जाता रहा. शिक्षा विभाग स्कूल सुधार में लग गये, तो पीएचईडी विभाग द्वारा दो-तीन जलमीनार लगवायी गयी. उद्योग विभाग व गव्य विभाग द्वारा गौ-पालन व दुग्ध शीतलन भंडार को लेकर प्रयास करने लगे. परंतु यह सब प्रयत्न भी पूरी तरह सफलीभूत नहीं हो सका. कुछ जगहों पर जल मीनार बनी, तो कुछ जगहों पर जल हेतु सोलर मिनी प्लांट के लिए बोरिंग कराया गया, जो बाद में हाथी का दांत ही साबित हुआ. घोषणा के दो वर्ष बाद सांसद निधि से लगभग 46 लाख की राशि बटिया में विकास कार्य हेतु दिया गया. इस राशि से यहां मंदिर के समीप झांझी नदी किनारे पक्की घाट का निर्माण, घाट के समीप ही महिलाओं के लिए वस्त्र बदलने के कमरे का निर्माण कराया गया. लेकिन रख-रखाव के अभाव में इसकी उपयोगिता आज तक नहीं बन पायी. इसके अलावा हेंठ बटिया में एक सामुदायिक भवन का निर्माण, मध्य विद्यालय बटिया स्थित स्कूल में बाउंड्री, मुख्य सड़क से गिद्धडीह तक पक्की सड़क सहित कुछेक कार्य हुए जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए.

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बटिया स्थित प्रसिद्ध बाबा झुमराज मंदिर में सुविधाओं का है घोर अभाव

बटिया स्थित प्रसिद्ध जिस बाबा झुमराज मंदिर को लेकर ही बटिया को आदर्श ग्राम के रूप में चयन करने की प्रेरणा हुई. उसी मंदिर में सुविधाओं का घोर अभाव है. सप्ताह के तीन दिन होने वाले बलि पूजा में पूजा और प्रसाद खाने के लिए उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ के लिए न तो प्रशासन की ओर से सुविधाएं मिलती है और न ही मंदिर प्रबंधन समिति की ओर से. हर दिन मंदिर को जिस श्रद्धालुओं से लाखों की आमदनी होती है उसी श्रद्धालुओं के लिए न तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है न तो शौचालय व अन्य प्रसाधन की व्यवस्था है. पूजा के लिए आयी महिलाओं को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है. गंदगी के अंबार के बीच ही श्रद्धालु प्रसाद खाने को विवश है. मंदिर के समीप स्थित नदी अपना अस्तित्व खो रही है. पानी में इतनी गंदगी रहती है कि शायद ही कोई स्नान कर सके. पार्किंग की ठोस व्यवस्था न होने से वाहनों को शुल्क देने के बावजूद यत्र-तत्र सड़क किनारे ही पड़ाव करना होता है. इससे प्रायः जाम की समस्या होती है. पेय जल की समुचित व्यवस्था न होने से आने वाले लोग या तो पानी खरीद कर पीते हैं या फिर गंदे पानी को पीकर बीमार पड़ते हैं. हाल के वर्षों में जिस रफ्तार से मंदिर में भीड़ और आमदनी बढ़ी है, उस लिहाज से सुविधाओं का बड़ा अभाव है.

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कहीं बिजली व पानी का अभाव, तो कहीं सड़क व स्कूल नहीं

दहियारी पंचायत हमेशा से पिछड़ा रहा है. जंगल और पहाड़ों की तलहटी में बसे आदिवासी बाहुल्य यह क्षेत्र विकास से कोसों दूर है. कहीं सड़क बिजली और पानी का अभाव है, तो कहीं सड़क और स्कूल नहीं है. सनातरी, उखरिया व मेघामारन जैसे 15 से 20 घरों वाले आदिवासी समाज के गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंच सकी है. यहां न तो छतदार चबूतरा है और न ही सामुदायिक भवन. गर्मी आते ही कुआं सूख जाता है और चापाकल फेल हो जाने पर यहां के लोग जोरिया की खुदाई कर उससे पानी निकालकर अपनी प्यास बुझाते हैं. यहां के बच्चे चार किलोमीटर दूर स्थित स्कूल जाते हैं. यहां न तो सड़क की सुविधा है और न ही पानी की समुचित व्यवस्था. खांजर, मनेरिया, पिंडारी, कुराबा जैसे छोटे गांव भी मौलिक सुविधा से दूर है. लगभग 25 घर वाले खांजर गांव में कोई सरकारी भवन नहीं है. गांव के बाहर झांझी नदी पर पुलिया न बनने से गांव के भीतर सड़क नहीं बन पाया है. स्कूल ढाई किलोमीटर दूर दूसरे गांव में है. पानी की समस्या से जूझते इन गांवों में नल जल योजना भी दम तोड़ चुकी है. खैरा लेबाड़ गांव से सरपंच और पंचायत समिति सदस्य हैं उस गांव के विकास की स्थिति भी बेहतर नहीं है. नल जल योजना फेल है तो बेहतर सड़क भी उपलब्ध नहीं है. खुले में शौच से मुक्त करने हेतु बने शौचालय जल के अभाव में उपयोगहीन होकर खंडहर बन चुका है. रोजगार की समस्या दूर न होने से आज भी इन गांव के लोग जंगल से पत्ते और लकड़ी लाकर बेचते हैं. इन गांव के बच्चों का भविष्य भी उज्ज्वल नहीं दिखता है. असनातरी निवासी श्यामलाल मरांडी, मीना किस्कू, चुटकी बेसरा, छोटे लाल मुर्मू, शिव लाल टुड्डू, ललिता मुर्मू, सरिता सोरेन, बुद्धन मुर्मू, तालो मुर्मू सहित कई ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव में न तो बिजली है, न सड़क है, न स्कूल है और न ही पेयजल की व्यवस्था है. नदी व अन्य प्राकृतिक स्रोत से वे पानी लाने को मजबूर हैं.

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