हाजीपुर . केला उत्पादन के क्षेत्र में वैशाली जिले ने बिहार ही नहीं, बल्कि देशभर में अपनी विशेष पहचान बनायी है. यहां का चिनिया केला अपनी अद्वितीय मिठास के लिए जाना जाता है, जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है. अनुकूल जलवायु और उपजाऊ मिट्टी ने यहां के किसानों को केला उत्पादन से अच्छी आमदनी करने का अवसर प्रदान किया है. अब, केला उत्पादन से होने वाली आय को और बढ़ाने के लिए, जिले के किसान और ग्रामीण उद्यमी इसके थंब का भी प्रभावी ढंग से उपयोग कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में जुट गये हैं. इस दिशा में कृषि विज्ञान केंद्र हरिहरपुर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जो रोजगार सृजन के इच्छुक ग्रामीण उद्यमियों को केला रेशा निष्कर्षण और हस्तशिल्प के क्षेत्र में प्रशिक्षण और प्रोत्साहन प्रदान कर रहा है. कृषि विज्ञान केंद्र हरिहरपुर की गृह विज्ञान वैज्ञानिक डॉ कविता वर्मा ने बताया कि कि वैशाली में बड़े पैमाने पर केला उत्पादन होता है, लेकिन पहले किसान केले की फसल काटने के बाद थंब को बेकार समझकर छोड़ देते थे. इससे प्रदूषण बढ़ता था और फसलों में कीट व रोगाणुओं के पनपने का खतरा रहता था. इस समस्या को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र ने केले के थंब से रेशा निकालने और उससे उत्पाद बनाने की दिशा में किसानों को प्रशिक्षित करना शुरू किया. इस उद्योग के माध्यम से प्रतिमाह लगभग 60 से 70 हजार रुपये तक की आमदनी की जा सकती है.
मुख्यमंत्री उद्यमी योजना में शामिल हुआ केला रेशा उद्योग
केला रेशा उद्योग ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार का एक मजबूत माध्यम बन रहा है. इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इस उद्योग को मुख्यमंत्री उद्यमी योजना में शामिल कर लिया है. इस योजना के तहत महिला समूहों को 50% अनुदान के साथ लोन मुहैया कराया जा रहा है. इसके अलावा, इच्छुक उद्यमियों को विभिन्न उत्पादों के निर्माण और विपणन का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. कृषि विज्ञान केंद्र न केवल रेशा निकालने वाली मशीन उपलब्ध करा रहा है, बल्कि उत्पादित सामान की खरीद भी कर रहा है. इससे उद्यमियों को अपने उत्पादों की बिक्री के लिए भटकना नहीं पड़ता है.थंब का रेशा होता है बेहद मजबूत
विशेषज्ञों के अनुसार, केले के थंब से निकाला गया फाइबर रेशा बेहद मजबूत होता है. इसकी जल सोखने और सहन करने की क्षमता अधिक होती है, जिससे बने उत्पादों की मांग स्थानीय बाजार के साथ अन्य राज्यों में भी तेजी से बढ़ रही है. वैशाली जिले के सहदुल्लहपुर गांव के एक उद्यमी समूह ने बड़े पैमाने पर केले के रेशे का उत्पादन शुरू किया है. इस समूह का नेतृत्व जगत कल्याण कर रहे हैं, जिन्होंने एमबीए की पढ़ाई करने के बाद नौकरी छोड़कर इस उद्योग को अपनाया. उनका समूह बिहार के अलावा अन्य राज्यों में भी रेशा की सप्लाई कर रहा है, जिससे कई लोगों को रोजगार मिला है. इसी तरह, राजापाकर की महिला उद्यमी नीलम देवी केले के रेशे से क्राफ्ट बनाकर अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गयी है.थंब से निकले पल्प और रस का जैविक खाद बनाने में उपयोग
केले के थंब से 100 से 200 ग्राम तक सूखा रेशा तैयार किया जाता है. प्रोसेसिंग के दौरान निकले पल्प और रस से जैविक केंचुआ खाद बनाया जाता है, जिसमें पोटाश की प्रचुर मात्रा होती है, जो फसलों के लिए बेहद लाभकारी है. किसान अब केले के रेशे से जुड़े उद्योग के साथ केंचुआ खाद निर्माण में भी रुचि ले रहे हैं. यह खाद बाजार में आसानी से बिकती है और किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत प्रदान करती है.रेशे से बन रहे आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद
केले के रेशे से बने हस्तशिल्प उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है. उद्यमी इससे थैले, चप्पल, लेडीज पर्स, पेपर बैग, भगवान की मूर्तियां और गिफ्ट आइटम जैसी चीजें तैयार कर अच्छी कीमत में बेच रहे हैं. इन उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाता है, जिससे स्थानीय उद्यमियों को बाजार उपलब्ध कराने में मदद मिल रही है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है