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आबादी के मुताबिक नहीं हो रहा जीएसटी संग्रह, कई छोटे राज्यों से पिछड़ा बिहार, जानिये क्या है कारण

बिहार जनसंख्या के मामले में तीसरा और जनसंख्या घनत्व में पहला राज्य है. जनसंख्या सबसे ज्यादा होने का मतलब ज्यादा उपभोक्ता और ज्यादा टैक्स संग्रह भी होना चाहिए, परंतु बिहार में जनसंख्या के हिसाब से जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) का संग्रह नहीं हो रहा है.

पटना. बिहार जनसंख्या के मामले में तीसरा और जनसंख्या घनत्व में पहला राज्य है. जनसंख्या सबसे ज्यादा होने का मतलब ज्यादा उपभोक्ता और ज्यादा टैक्स संग्रह भी होना चाहिए, परंतु बिहार में जनसंख्या के हिसाब से जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) का संग्रह नहीं हो रहा है. बिहार से कम जनसंख्या वाले दूसरे कई राज्यों का टैक्स संग्रह यहां से कई गुना ज्यादा है.

अगर सिर्फ दिसंबर 2020 तक के आंकड़े पर नजर डालें, तो बिहार का जीएसटी संग्रह एक हजार 67 करोड़ था, जबकि यहां से कम जनसंख्या वाले राज्यों कर्नाटक का सात हजार 459 करोड़, तमिलनाडु का छह हजार 905 करोड़, आंध्र प्रदेश का दो हजार 581 करोड़ , तेलंगाना का तीन हजार 543 करोड़, केरल का एक हजार 776 करोड़, राजस्थान का तीन हजार 135 करोड़ रुपये टैक्स संग्रह हुआ है.

इन राज्यों में उद्योगों का बहुत ज्यादा योगदान जीएसटी संग्रह में नहीं है. सिर्फ कंज्यूमर आधारित राज्य के कारण ही इनका जीएसटी संग्रह ज्यादा है. कुछ छोटे राज्यों का संग्रह बिहार के आसपास है.

असम का 984 करोड़, पंजाब का एक हजार 353 करोड़, ओडिशा का दो हजार 860 करोड़, छत्तीसगढ़ का दो हजार 349 करोड़ रुपये है, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड व उत्तर प्रदेश जैसे उद्योग प्रधान राज्यों से बिहार की तुलना नहीं की गयी है. इन राज्यों के जीएसटी संग्रह में उद्योगों का योगदान आधा से ज्यादा का होता है.

बिहार में टैक्स संग्रह कम होने के कारण

बिहार की आबादी लगभग 12 करोड़ होने की वजह से यह काफी बड़ा उपभोक्ता प्रधान राज्य है. फिर भी टैक्स का संग्रह इस अनुपात में नहीं हो पा रहा है. हालांकि, दिसंबर 2020 में पिछले वर्ष दिसंबर की तुलना में पांच प्रतिशत अधिक टैक्स का संग्रह हुआ था. अन्य कम आबादी वाले राज्यों की तुलना में यहां टैक्स संग्रह कम होने की मुख्य वजहों में कई क्षेत्रों में टैक्स का संग्रह उसकी क्षमता के अनुरूप नहीं होने के अलावा उद्योगों की संख्या काफी कम होना प्रमुख है.

फिर भी कंज्यूमर प्रमुख राज्य होने के नाते उपभोक्ताओं से जुड़े कुछ क्षेत्रों में ही टैक्स का संग्रह अनुपात से कम हो रहा है. इसमें लोहा, सीमेंट, ईंट, रेडिमेड गार्मेंट व खाद्य पदार्थ समेत ऐसे कई क्षेत्रों में टैक्स का कलेक्शन उतना नहीं हो रहा है, जबकि जानकार बताते हैं कि जीएसटी डेस्टिनेशन आधारित टैक्स प्रक्रिया है. इस आधार पर जहां जितना अधिक कंज्यूमर है, वहां का टैक्स संग्रह उतना अधिक होना चाहिए, परंतु बिहार में यह पूरी तरह से लागू नहीं हो रही है.

Posted by Ashish Jha

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