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हेमाद्रि स्नान के साथ ब्राह्मणों ने सूर्यदेव से मांगा तेज, मनाया श्रावणी उपाकर्म

प्राचीन वैदिक परंपरा को जीवंत रखते हुए श्रावण पूर्णिमा पर स्नान, दान, पूजा, पितरों का तर्पण करने के अलावा श्रावणी उपाकर्म का आयोजन किया गया. ब्राह्मणों ने अंत:करण को शुद्ध करने के बाद सूर्यदेव से तेज मांगा.

गोपालगंज. प्राचीन वैदिक परंपरा को जीवंत रखते हुए श्रावण पूर्णिमा पर स्नान, दान, पूजा, पितरों का तर्पण करने के अलावा श्रावणी उपाकर्म का आयोजन किया गया. ब्राह्मणों ने अंत:करण को शुद्ध करने के बाद सूर्यदेव से तेज मांगा. अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा की ओर से कुचायकोट प्रखंड के जलालपुर स्थित भट्ठा पर स्थित ऐतिहासिक सरोवर में आयोजित उपाकर्म में प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय किया. प्रायश्चित रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प करने के बाद गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गाय के दूध, दही-घी के साथ ही गोबर व गोमूत्र और पवित्र कुशा से स्नान कर साल भर में जाने-आनजाने हुए पाप कर्मों का प्रायश्चित किया. स्नान विधान के बाद ऋषि पूजा, सूर्योपस्थान व यज्ञोपवीत पूजन कर उसे धारण किया. यह आत्म संयम का संस्कार है. इस संस्कार से व्यक्ति का पुनर्जन्म माना जाता है. सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, सदसस्पति, अनुमति, छंद व ऋषि को घृत से आहुति से स्वाध्याय की शुरुआत हुई. श्रावणी उपाकर्म में पितरों को 10 प्रकार से स्नान कराकर जल दिया गया और साथ ही आत्म कल्याण के लिए मंत्रों के साथ यज्ञ में आहुतियां दीं. मौके पर अखिल भारतीय ब्राह्मण महा सभा के अध्यक्ष पं राजेंद्र पांडेय, पं मंजीत त्रिपाठी, रवींद्र पांडेय समेत इलाके के प्रबुद्ध लोग शामिल थे. भोरे संवाददाता के अनुसार जनकल्याण मंच भोरे के तत्वावधान में सावन पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को ब्राह्मणों ने श्रावणी उपाकर्म मनाकर अपने पितरों को याद किया. इसके तहत हथुआ राज के प्राचीन लखरांव बाग शिव मंदिर परिसर में स्थित तालाब में ब्राह्मणों ने दस विधि स्नान, ऋषि पूजन और यज्ञोपवीत पूजन कर पितृ तर्पण किया. मंच के संरक्षक शंभू शरण द्विवेदी ने बताया कि सुबह करीब साढ़े छह बजे से यह कार्यक्रम शुरू हुआ. प्रत्येक ब्राह्मण के लिए यह मनाना बहुत जरूरी है. यह उपाकर्म घर-परिवार से दूर रहकर संन्यासी जैसा जीवन व्यतीत करते हुए मनाया जाता है. दस विधि स्नान करने से आत्मशुद्धि होती है और पितरों के तर्पण से उन्हें तृप्ति मिलती है. इस पर्व को वैदिक काल से ही शरीर, मन और इंद्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व माना जाता रहा है. दुर्गापूजा क्षत्रियों का तथा दीपावली वैश्यों का पर्व माना गया है. वहीं श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों का सबसे पवित्र पर्व माना गया है. कार्यक्रम में पंडित सदानंद तिवारी, ललन तिवारी, बालेश्वर तिवारी, सच्चिदानंद तिवारी, पंडित वासुदेव मिश्र, गुड्डू चौबे, बीरेंद्र शुक्ल, शिवनाथ जी, राजेश जी, श्रीधर, अखिलेश, धनंजय, चंद्रभान आदि दो दर्जन से अधिक लोग शामिल हुए.

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