कटेया. सैकड़ों गांवों के लिए जीवन रेखा साबित होने वाली सोना नदी आज खुद के जीवन के लिए संघर्ष कर रही है. अब इसकी धाराएं विलुप्त होती जा रही हैं. पानी लगातार कम होता जा रहा है तथा नदी सिमटती जा रही है. इतनी बड़ी समस्या पर जिम्मेदारों द्वारा कोई पहल नहीं की जाती. विधानसभा चुनाव सामने है. क्षेत्र के लोग इस समस्या को इस बार राजनीतिक मुद्दा बनाने के मूड में हैं. कारण यह है कि राजनीतिक दलों ने भी कभी अपने एजेंडों में इसे शामिल नहीं किया. स्थिति यह है कि अधिकांश हिस्सों में यह नदी अब दम तोड़ रही है. दुर्भाग्य तो यह है कि इस नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए कभी आवाज नहीं उठायी गयी. यदि जिम्मेदार नेता इस पर पहल किये रहते, समय पर इसकी साफ-सफाई हुई रहती. नदी को अतिक्रमण से बचने के लिए सक्रियता दिखायी गयी होती, तो आज भी यह नदी सैकड़ों गांवों के लिए जीवनदायिनी रहती. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इसकी परवाह किसी को नहीं है. राजनीतिक स्तर से इसके लिए कोई पहल नहीं की जाती. यदि इसी तरह प्रकृति से मुंह मोड़ कर सिर्फ वोट के मुद्दों पर सियासत होती रही , तो वह दिन दूर नहीं जब इसका खामियाजा सबको भुगतना पड़ेगा.
सैकड़ों गांवों के लिए जीवनदायिनी हुआ करती थी सोना नदी
सोना नदी जिले के सैकड़ों गांवों के लिए जीवनदायनी हुआ करती थी. इस नदी के किनारों पर कटेया, भोरे व विजयीपुर के पांच दर्जन से अधिक गांव हैं. कटेया प्रखंड के भागीपट्टी झील, भगवानपुर, सहजनवा कला, सहजनवा खुर्द, पकडियार, झिलवनिया, गौरा,धमकी टोला, पकडियार टिकुलिया टोला, आसाराम भलुही, बभनी, मानपुर, गणेशपुर, कौलरही, रामपुर, धरहरा मेला, भेड़िया, रसौती, रैपुरा,खदही टोला, मैनीडिह, डुमरिया, अमही टोला, सवनहा, जैसौली, मलपुरा, परिवध, बैकुंठपुर, इजरा, बरी, पटखौली, दुबे बेलवा, बगही, कोरेया, हरदीखंड सहित सैंकड़ों गांव स्थित हैं. लोग बताते हैं कि पहले तो इन सभी गांवों में न तो सिंचाई के लिए कोई समस्या उत्पन्न होती थी और न ही पशु-पक्षियों को पानी पीने के लिए परेशानी होती थी.यूपी से आकर बिहार में प्रवेश करती है सोना नदी
सोना नदी यूपी से आकर बिहार में प्रवेश करती है. जानकार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के कुबेर स्थान के पास किसी ताल से सोना नदी जुड़ी है. जिले के कटेया भोरे , विजयीपुर प्रखंडों के पांच दर्जन से अधिक गांव इसके किनारे स्थित हैं. कटेया में तो यह नदी प्राय: विलुप्त होती जा रही है. कभी यह नदी क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही थी. किसान समय से अपने खेतों की सिंचाई कर लेते थे. आज इसकी स्थिति बद से भी बदतर हो गयी है. जनवरी-फरवरी के माह में ही नदी का पानी सूख जाता है. इससे किसानों को तो परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है, पशु-पक्षियों को पीने के लिए पानी भी नसीब नहीं होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है