सबसे बड़े पशु मेले में क्यों नहीं पहुंच रहे गाय-बैल और भैंसें?पुष्यमित्रबैल बाजार बिल्कुल खाली है. गाय बाजार में मुश्किल से 40-50 गायें और बछड़े हैं. हाथी बाजार में जो थोड़े बहुत हाथी वाले पहुंचे हैं, वे अगले साल से नहीं आने का मन बना चुके हैं, ले-देकर एक घोड़ा बाजार है, जो सोनपुर मेले के नाम से जुड़े एशिया के सबसे बड़े पशु मेले की नाक बचा रहा है. जहां इस बार भी हजार के करीब घोड़े और उनके बच्चे पहुंचे हैं, वहीं बाकी जानवरों का मेले में दिखना बंद हो गया है. दुधारू पशुओं के परिवहन को लेकर बने सख्त कानूनों ने सोनपुर के पशु मेले की रौनक ही खत्म कर दी है. गाय मेले के खाली मैदान में अपनी चार-पांच गायों के साथ बैठा संतोष राय बताता है, अब कोई गाय खरीदने सोनपुर मेला थोड़े आता है. सबको मालूम पड़ गया है कि अब यहां गाय-बाछी नहीं आती है. काहे नहीं आती हैं, के सवाल पर वह कहता है- कड़ा कानून बन गया है. बाहर से गाय-बैल-भैंस लेकर आना-जाना मुसीबत का काम हो गया है. पहले हरियाणा वाला सब आता था, तो यहां रौनक रहती थी. मगर चार-पांच साल से ऊ सब आना बंद कर दिया. हमलोग लोकल हैं, ऐसे ही आ जाते हैं. देखते नहीं हैं, पहले इसी मैदान में 50-55 हजार गाय रहती थी, अब 50-55 ठो पुरना (गिनना) मुश्किल है. आंकड़े बताते हैं कि इस मेले में 2013 में 94 और 2012 में 107 गायें बिकी थीं. थोड़ी दूर आगे जाने पर समझ में आता है कि बैल बाजार के नाम से जो जगह है, वह बिल्कुल खाली है. वहां चौपहिया वाहन खड़े हैं. हाथी बाजार में कुछ हाथी वाले इसलिए आ गये हैं कि सोनपुर मेले के पीछे कहानी ही हाथी की है. राज्य में हाथी की खरीद बिक्री पर पहले से ही रोक है. वे पिछले कुछ साल से एक दूसरे के साथ हाथी की अदला-बदली कर इस परंपरा को निभा लेते हैं. बकरी बाजार के छोटे से कैंपस में कुछ बकरियां हैं. हां, घोड़े के बाजार में जरूर रौनक है, हजार से अधिक घोड़े और उनके बच्चे इस बार भी पहुंचे हैं और खरीदार भी आ रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों हुआ? एशिया के सबसे बड़े समृद्ध पशु मेले में शुमार सोनपुर मेले में न गायें पहुंची हैं, न भैंस और ना ही बाकी जानवर. पहुंचे हैं, तो सिर्फ घोड़े, जिनकी प्रासंगिकता लगभग खत्म हो गयी है. कहा जाता है कि कभी अफगान, इरान और इराक जैसे मुल्कों से लोग इस मेले में पशु खरीदने आते थे. चंद्रगुप्त मौर्य के जमाने से बाबू कुंवर सिंह के जमाने तक युद्ध के लिए घोड़ों, हाथियों की सबसे बड़ी मंडी यही थी. महज कुछ साल पहले तक यहां बड़ी संख्या में दुधारू पशु बिकने आते थे और राज्य का पशुपालन विभाग खुद यहां से डेयरी पालकों के लिए हर साल 10-12 हजार गायें खरीदा करता था.पशुपालन निदेशालय के सीनियर वेटनरी ऑफिसर डॉ. रमेश कुमार कहते हैं, वे लंबे समय तक समस्तीपुर में पदस्थापित थे और मेले के दौरान हर साल के अपने जिले के लिए 300 से अधिक गायें खरीदा करते थे, यह 2001-02 की बात है. उस जमाने में बड़ी संख्या में डेयरी फार्मिंग से जुड़े बैंकर और पशुपालन विभाग के अधिकारी पूरे राज्य से मेले में पहुंचते थे. मगर 2005 में जब जदयू-भाजपा की सरकार बनी तो बिहार में पशुओं के आवागमन को लेकर कड़े कानून बना दिये गये. इसके अलावा पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी इससे संबंधित कानूनों को कड़ाई से लागू किया जा रहा है. इसलिए हरियाणा और पंजाब से ऊंची नस्ल के दुधारू पशुओं की आवक एकाएक बंद हो गयी. गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा नेता सुशील मोदी ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाते हुए कहा था कि पहले सोनपुर मेले के नाम पर पशु तस्कर भारी संख्या में दुधारू पशुओं को लेकर बिहार आते थे और फिर उन्हें बांग्लादेश लेकर चले जाते थे. जब वे उप मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने बिहार से पशुओं के निर्यात पर रोक लगा दी. हाल ही में 22 नवंबर को पूजा करने सोनपुर पहुंचे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने भी कहा कि भाजपा नेताओं के हंगामे की वजह से सोनपुर मेले में पंजाब और हरियाणा से पशुओं की आवक बंद हो गयी है. उनकी सरकार मेले के गौरव को लौटाने के लिए कानून में बदलाव करेगी.दरअसल, सोनपुर मेले में कथित पशु तस्करी के मामले को लेकर पहले भी कई कदम उठाये गये हैं. अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के दौरान तात्कालिक पर्यावरण मंत्री मेनका गांधी के हस्तक्षेप पर रेलगाड़ियों में दुधारू पशुओं के आवागमन पर रोक लगा दी गयी थी, जिसे बाद में तब हटा लिया गया जब यूपीए-1 की सरकार में लालू प्रसाद रेलमंत्री थे. मगर क्या कड़े कानूनी प्रावधानों की वजह से मेले में इन पशुओं की आवक कम हो गयी है या इसके पीछे कोई और भी वजह है. इन सवालों के आईने में सच तलाशने के लिए हमने पशुपालन विभाग के सूचना एवं प्रसार, सहायक निदेशक डॉ. दिवाकर से बात की. वे कहते हैं, पिछले कुछ सालों से विभाग इन पशुओं के लिए नस्ल सुधार का कार्यक्रम सघन रूप से चला रहा है. अब बिहार में भी जगह-जगह वैसे पशु उपलब्ध हैं, जैसे हरियाणा और पंजाब में हुआ करते थे. इसलिए अब खरीदार भी सोनपुर मेले में कम पहुंच रहे हैं. वजह, यहां पशुओं की कम आवक है. मगर उनकी बात इसलिए तर्क संगत नहीं लगती, क्योंकि अगर बिहार में ऐसे पशु खुद उपलब्ध हैं, तो कम से कम उन्हें भी तो बिकने के लिए मेले में आना चाहिए था. वैदिक और प्राचीन इतिहास का धरोहर यह मेला विष्णु पुराण के गज और ग्राह की लड़ाई से भी जाना जाता है. धार्मिकता के साथ अपनी खास पशुओं के संग्रह को समेटे इस मेले की पहचान कहीं खोने सी लगी है. वजह जो भी हो, मगर पिछले कुछ सालों से सोनपुर मेले में इन पशुओं के आवक में जो गिरावट आयी है, उसकी वजह से इस मेले के एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के टैग पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है.इस वक्त इन पशुओं के आवागमन को लेकर देश में बने ट्रांसपोर्ट ऑफ एनिमल रूल काफी सख्त हैं. इनके मुताबिक-1. वेटनरी डॉक्टर के फिटनेस प्रमाणपत्र के बिना पशुओं का आवागमन नहीं करा सकते. साथ में वेटनरी फस्ट एड बॉक्स रखना जरूरी है. साथ में इस बात का प्रमाण पत्र होना चाहिए कि उन्हें कहां से कहां तक किस उद्देश्य से ले जा रहे हैं.2. हर दुधारू पशु के लिए औसत जगह दो वर्ग मीटर से कम किसी हाल में न हो. रेल की बोगी में दस और ट्रकों में छह से अधिक पशुओं को एक साथ नहीं ले जा सकते. 3. उन्हें पर्याप्त खिला-पिला कर यात्रा करायें और रास्ते के लिए भी पर्याप्त भोजन-पानी की व्यवस्था हो.4. एक जनवरी, 2016 से लागू होने वाले नये नियमों में गाड़ियों में हर पशु के लिए अलग केबिन बनाने और पशु ढोने वाले वाहनों को अलग परमिट लेने की शर्त लगायी जा रही है. तसवीर-1. खाली पड़ा गाय मेले का एक बड़ा हिस्सा.2. घोडों के मेेले में ही बची है रौनक.3. इक्की-दुक्की गायें, जिसे लेकर स्थानीय पशु विक्रेता पहुंचे हैं.
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सबसे बड़े पशु मेले में क्यों नहीं पहुंच रहे गाय-बैल और भैंसें?
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