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वाहनों की छतों पर बैठकर ”मौत” का सफर कर रहे लोग

अभिषेक कुमार सतसंगी, गोपालगंज : सवारी गाड़ियों की सफर जानलेवा बन गया है. कब कौन गाड़ी कहां दुर्घटनाग्रस्त हो जायेगी और किसकी जान चली जायेगी, कहना मुश्किल है. पिकअप से लेकर बस तक नियम तोड़ रहे हैं. दुर्घटनाओं में दिनों दिन इजाफा हो रहा है. जर्जर वाहनों में जान से खिलवाड़ हो रहा है. जर्जर […]

अभिषेक कुमार सतसंगी, गोपालगंज : सवारी गाड़ियों की सफर जानलेवा बन गया है. कब कौन गाड़ी कहां दुर्घटनाग्रस्त हो जायेगी और किसकी जान चली जायेगी, कहना मुश्किल है. पिकअप से लेकर बस तक नियम तोड़ रहे हैं. दुर्घटनाओं में दिनों दिन इजाफा हो रहा है. जर्जर वाहनों में जान से खिलवाड़ हो रहा है. जर्जर टैक्सी, ऑटो, बस सहित सवारी वाहनों के लिए कोई नियम हीं नहीं है. सवारी गाड़ियों पर कार्य करने वाले चालक, कंडक्टर में 80 फीसदी के पास ड्राइविंग व अन्य लाइसेंस नहीं है.

वहीं गाड़ियों में ठूस-ठूस कर सवारी बैठाना आम बात है. यात्री गेट पर लटक कर और छत पर भी सफर करने को मजबूर हैं. सीवान में हुए बस हादसे के बाद भी जिला प्रशासन सजग नहीं हुआ है. बाइक को छोड़ कर सवारी गाड़ियों की जांच शायद ही कभी होती है. परिवहन और एमवीआइ विभाग का जांच का अभियान बाइक तक सिमट कर रह गया है. सवाल यह है कि आखिर सफर के नाम पर जान से खिलवाड़ कब तक होता रहेगा.
1. वाहनों की छतों पर सफर हालांकि नया काम नहीं है. शहर के अस्पताल चौक से महम्मदपुर व गोपालगंज-सीवान हाइवे पर आम तौर पर देखने को मिल सकता है. यह नजारा आंबेडकर चौक से जंगलिया की तरफ आ रही पिकअप वैन पर देखने को मिला. जहां पिकअप के आगे छत पर 10-12 लोग सफर कर रहे थे.
2. गोपालगंज से बड़हरिया जाने वाली सड़क की यह तस्वीर है. इतनी दुर्घटनाएं होने के बावजूद लोग अपनी जान को जोखिम में डालने से नहीं कतराते. मंगलवार को आंबेडकर चौक से महम्मदपुर की ओर जानेवाली कई निजी बसों की छतों पर यात्री सफर कर रहे थे.
3 . गोपालगंज से सीवान जानेवाली एनएच 85 पर यह नजारा दिखा. पिकअप जीप के पीछे तीन युवक लटकर सफर कर रहे थे, जबकि वाहन के छत पर भी कुछ यात्री बैठे हुए थे. थोड़ी सी चूक होने पर इन यात्रियों की जान जा सकती है. फिर भी इन्हें सफर करने से रोका नहीं जा सका.
ऐसे में यातायात कानून की सरेआम अवहेलना की जा रही थी.
ओवरलोडिंग के चलते हुईं कई दुर्घटनाएं
ओवरलोडिंग के चलते पिछले कुछ समय में कई दुर्घटनाएं भी सामने आयी हैं और भारी जान-माल का नुकसान भी हुआ है. कुछ समय तक कड़े कानून की दुहाई देने के उपरांत सब कुछ भुला दिया जाता है और फिर ऐसी ही किसी दुर्घटना के इंतजार में प्रशासन भी रहता है. लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र के मांझा, बरौली, बतरदेह, थावे आदि आदि मार्गों पर चलने वाली ऐसी बसों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए, ताकि इन अर्द्धनिर्मित सड़कों पर होनेवाली दुर्घटनाओं की आशंका पर पूर्ण विराम लगाया जा सके.
शहर में चलती हैं 190 से अधिक बसें
शहर से विभिन्न जगहों के लिए 190 से अधिक बसें चलती हैं. इनमें करीब 80 बसें कॉन्ट्रेक्टरों के माध्यम से और बाकी बस मालिक द्वारा संचालित हो रही है. कुछ बसों की स्थिति अपेक्षाकृत ठीक है. जबकि कॉन्ट्रेक्टरों की 60 फीसदी बसें कंडम और जर्जर हैं, लेकिन जिला प्रशासन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता.

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