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गोपालगंज : प्रकृति की बेरुखी से चार साल से परेशान हैं किसान

कभी सुखाड़ तो कभी बाढ़ का दर्द गोपालगंज : प्रकृति की बेरुखी किसानों की कमर तोड़ रही है. जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी किसान कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं. जिले के किसानों को कभी बाढ़ की तबाही का दंश झेलना पड़ता है तो कभी सूखे का. इस बार भी किसान रोपनी […]

कभी सुखाड़ तो कभी बाढ़ का दर्द
गोपालगंज : प्रकृति की बेरुखी किसानों की कमर तोड़ रही है. जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी किसान कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं. जिले के किसानों को कभी बाढ़ की तबाही का दंश झेलना पड़ता है तो कभी सूखे का. इस बार भी किसान रोपनी को लेकर आसमान की ओर नजर लगाये हैं. बारिश होगी तो रोपनी होगी, नहीं हुई तो खर्च और मेहनत बर्बाद.
उधर्र गंडक भी भय दिखा रही है. यह हालात इस साल नया नहीं है. विगत चार वर्षों पर नजर डाले तो किसान बाढ़ और सुखाड़ से जूझते आ रहे हैं. 2017 में बारिश ठीक रही तो बाढ़ ने तबाही का मंजर दिखा दिया. 2016, 2015, 2014 में लगातार सूखे का संकट रहा. हमारा सिस्टम इतना डेवेलप नहीं है कि किसान बिन बारिश के भी सिंचाई कर खेती कर सकें. ऐसे में किसान खेती छोड़ पलायन कर रहे हैं.
घट रही किसानों की संख्या, हर दूसरा किसान कर्जदार : जिले में किसानों की संख्या में लगातार कमी हो रही है. एक दशक पूर्व जिले में किसान परिवार की संख्या लगभग 4.67 लाख थी. आज वास्तविक किसान परिवारों की संख्या लगभग 2.98 लाख है. प्रति साल 8 से 10 फीसदी खेती करने वालों की संख्या घट रही है. खेती की जमीन भी घटी है, लेकिन किसानों के अनुपात में यह कम है. जिले का हर दूसरा किसान कर्ज के बोझ तले दबा है.
20 फीसदी किसान केसीसी का लोन लिये हैं और इसका पैसा इस लिये चुकता नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है. 30 से 35 फीसदी किसान महाजन और अन्य कर्ज के तले दबे हैं. ऐसे किसान ही खेती छोड़ पलायन कर रहे हैं.

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