24.6 C
Ranchi

BREAKING NEWS

लेटेस्ट वीडियो

Gaya News : मगध का महत्वपूर्ण बौद्ध पुरातात्विक स्थल है गुरुआ का नसेर गांव

Gaya News : कभी कोल राजाओं का था अभेद किला, अवशेष अब भी दिखते हैं

Audio Book

ऑडियो सुनें

गुरुआ. प्राचीन मगध के ऐसे अनेक गांव हैं जिनका पुरातत्विक महत्व बुद्ध काल तक जाता है. हालांकि, बदलते वक्त के साथ लोग इन स्थलों के महत्व से अंजान हो गये हैं. उन्हीं में से एक है गुरुआ प्रखंड में स्थित नसेर गांव. इतिहासकारों का मानना है कि प्राचीन काल में उरुवेला (बोधगया) से ऋषिपतन (सारनाथ) की ओर जानेवाला मार्ग नसेर से होकर गुजरता था. इस प्राचीन मार्ग का उल्लेख बौद्ध साहित्य में मिलता है. यह मार्ग राजगृह से बोधगया होते हुए सारनाथ तक जाता था. नसेर की पहचान यहां के प्राचीन गढ़, भगवान बुद्ध की पलकालीन मुकुटधारी मूर्तियों व कोल राजाओं के कीले व विशाल सरोवर से है. जानश्रुति के अनुसार नसेर में कोल राजाओं का अभेद किला था, जिसके अवशेष आज भी गढ़ और गढ़ पर मौजूद के दीवारों के रूप में देखने को मिलता है. पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास व पुरातत्व विभाग में परास्नातक शोध छात्र प्रिंस कुमार ””बुद्धमित्र”” ने नसेर भ्रमण के बाद बताया कि नसेर में भगवान बुद्ध की पालकालीन मुकुटधारी मूर्तियां हैं, जो नौवीं-10वीं शताब्दी की है. यह मूर्ति लगभग साढ़े तीन फुट लंबी और दो फुट चौड़ी है, यह काले बैसल्ट पत्थर से बनी हुई है. कई प्राचीन अवशेष थे जो संरक्षण के अभाव में नष्ट हो गये ””ये धर्मा हेतु प्रभवा हेतुं, तेषां तथागतः ह्यवदत् तेषां च यो निरोध व वादी महाश्रमण””! यह मंत्र बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण मंत्र माना जाता है. इस तरह की मूर्ति बोधगया, नालंदा व कुर्कीहर से भी प्राप्त हुई है. जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. नसेर गांव निवासी रूपा रंजन बताती हैं कि गढ़ की खुदाई से मनौती स्तूप, मृदभांड इत्यादि प्राप्त होते रहते हैं. तालाब किनारे भी कई प्राचीन अवशेष थे जो संरक्षण के अभाव में नष्ट एवं खो गये. तालाब के किनारे ही एक और मूर्ति थी, जिसे गांव के लोग सातवाहिनी देवी के नाम से पूजते थे. करीब 16 साल पहले वह मूर्ति चोरी हो गयी, जिसे आज तक पता नहीं लगाया जा सका. यहां अन्य पुरातत्विक महत्व की प्रतिमाएं भी हैं, जिनका काल उत्तर गुप्त कालीन से पाल काल ठहरता है. इसके आलवा यहां नौग्रह पैनल व एक शिवलिंग का अवशेष जो 10-11वीं शताब्दी के प्रतीत होते हैं. इस प्रकार यहां हमें प्राचीन काल में धार्मिक सहिष्णुता का भी प्रमाण देखने को मिलता है. बुद्ध ने बोधगया से सारनाथ की यात्रा नसेर के रास्ते ही की थी नसेर विगत कई वर्षों से बौद्ध सैलानियों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. यूनिवर्सिटी और पेंसिलवेनिया से शोध करने आयीं हरियाणा निवासी शशि अहलावत बताती हैं कि बोधगया से सारनाथ के रास्ते में नसेर का होना इस गांव के गौरव को कई गुणा बढ़ा देता है. इतिहासकारों के अनुसार, ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने बोधगया से सारनाथ की यात्रा नसेर के रास्ते ही की थी. उन्होंने पहला रात्रि विश्राम भूरहा में किया था. बिहार सरकार में सहायक निदेशक सह जनसंपर्क पदाधिकारी विनीत सिन्हा का मानना है कि गया से वाराणसी जाने वाले इस मार्ग पर गहमा-गहमी बुद्ध काल से लेकर मध्यकाल तक विद्यमान रही. ऐसी मान्यता है कि शंकराचार्य ने भी गया से वाराणसी का सफर इसी मार्ग से किया था. और शोध की जरूरत नसेर घूमने के बाद सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में सहायक निदेशक नीरज कुमार ने बताया कि भूरहा, दुब्बा, बैजूधाम, गुनेरी, देवकली की तरह नसेर का भी स्वर्णिम इतिहास रहा होगा, जिसे शोध के द्वारा तथ्यों को सामने लाने की जरूरत है. नसेर पर शोध करने वाले डाॅ राजेश कुमार ने बताया कि नसेर गांव एक महत्वपूर्ण बौद्ध पुरातात्विक स्थल है. यहां से प्राप्त बैसाल्ट काले पत्थर की बौद्ध मूर्तियां पालकलीन हैं, वहीं गांव के में स्थित विशाल गढ़ और पश्चिमी छोर पर अवस्थित तालाब का होना यह परिलक्षित करता है कि यह किसी राजा का राजश्रय रहा होगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel