बोधगया़ मगध विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन विभाग द्वारा ‘राष्ट्रवाद’ विषय पर तृतीय व्याख्यान शृंखला का आयोजन संयुक्त रूप से किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में जेपी विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं समाज विज्ञान संकाय के पूर्व डीन प्रोफेसर सरोज कुमार ने भाग लिया और विषय पर सारगर्भित विचार व्यक्त किये. अपने व्याख्यान में प्रो सरोज कुमार ने राष्ट्रवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वर्तमान स्वरूप तथा इसकी विकृतियों पर गहन चर्चा की. उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रवाद मूलतः राष्ट्र के प्रति प्रेम, गौरव और निष्ठा की भावना है, जो समाज के विभिन्न वर्गों को एकसूत्र में जोड़ने का कार्य करती है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विकसित राष्ट्रवाद की भावना समावेशी थी, जिसमें महात्मा गांधी का सर्वधर्म समभाव, नेहरू का प्रगतिशील राष्ट्रवाद और हिंदू महासभा का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद शामिल थे. ये सभी धाराएं स्वतंत्र भारत के राष्ट्र निर्माण की नींव बनीं. प्रो कुमार ने वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान परंपरा के माध्यम से राष्ट्र के प्रति लगाव उत्पन्न करने के प्रयासों की सराहना की, लेकिन साथ ही यह भी रेखांकित किया कि आज राष्ट्रवाद में विकृत प्रवृत्तियों और असहिष्णुता का भी समावेश होता जा रहा है, जो चिंताजनक है. उन्होंने कहा कि वर्तमान समाज में सहयोग और सामंजस्य की भावना घट रही है. विभिन्न विचारधाराएं टकराव की स्थिति में हैं, जिससे समाज में विभाजन की प्रवृत्ति बढ़ रही हैं. राष्ट्रवाद का सही अर्थ है विविध विचारों के प्रति सहिष्णुता और लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान. लोकतांत्रिक मूल्यों पर खतरा प्रो कुमार ने चिंता जताई कि भारतीय लोकतंत्र, जो राष्ट्रवाद की मूल आत्मा है, वर्तमान में राजनीतिक गिरावट के कारण संस्थागत रूप से कमजोर होता जा रहा है. उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि विकसित भारत की संकल्पना तभी साकार हो सकती है जब हम एक सहयोगी समाज का निर्माण करें और युवा उसकी बुनियाद बनें. कार्यक्रम का संचालन और सहभागिता कार्यक्रम का संचालन राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ अंजनी कुमार घोष ने किया. धन्यवाद ज्ञापन प्रो एहतेशाम खान ने किया. इस अवसर पर डॉ श्रद्धा ऋषि, डॉ शमशाद अंसारी, डॉ दिव्या मिश्रा, डॉ प्रियंका सिंह समेत विश्वविद्यालय के कई प्राध्यापकगण, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे.
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