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जहां कमीशन की गुंजाइश कम, वहां ध्यान नहीं !, निगमकर्मियों व जनप्रतिनिधियों की चाल एक जैसी, व्यक्तिगत शौचालय योजना की गति धीमी
गया : शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की बात कई वर्षों से हो रही है. सरकार ने स्मार्ट सिटी में शामिल नहीं किया, तो निगम के जनप्रतिनिधि, अधिकारी-कर्मचारी अपने यहां मौजूदा संसाधनों से ही शहर को स्मार्ट सिटी से भी बेहतर बनाने का संकल्प लिया है. कई-कई बार. बिहार के अन्य नगर निकायों की तुलना […]
गया : शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की बात कई वर्षों से हो रही है. सरकार ने स्मार्ट सिटी में शामिल नहीं किया, तो निगम के जनप्रतिनिधि, अधिकारी-कर्मचारी अपने यहां मौजूदा संसाधनों से ही शहर को स्मार्ट सिटी से भी बेहतर बनाने का संकल्प लिया है. कई-कई बार. बिहार के अन्य नगर निकायों की तुलना में गया में उपलब्ध संसाधनों को देखा जाये, तो सबसे अधिक दिखते हैं. बावजूद इसके शहर के स्थिति में कोई बदलाव नहीं होना लोगों की शिकायत का प्रमुख कारण है.
जनप्रतिनिधि व अफसरों के कामकाज के स्टाइल में कोई फर्क नहीं है. लोग कहते हैं कि जिस काम में इन्हें फायदा दिखता है, उसके लिए ये तत्पर रहते हैं. मसलन प्रधानमंत्री आवास योजना. विभागीय स्तर पर ही विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में ये अधिक रुचि दिखाते हैं. इधर व्यक्तिगत शौचालय योजना, डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन, टेंडर से होनेवाले विकास कार्य व स्वच्छ भारत मिशन के तहत जागरूकता अभियान पर इनका कम ही ध्यान होता है.
आलम यह है कि व्यक्तिगत शौचालय योजना व आवास योजना शहरी क्षेत्र में एक साथ कुछ दिन के ही अंतर पर शुरू हुआ था. आवास योजना के तहत राजीव आवास योजना, मलिन बस्ती समेकित विकास योजना का काम शहर में लगभग पूरा हो गया है. प्रधानमंत्री आवास योजना का काम भी तेजी से चल रहा है पर व्यक्तिगत शौचालय योजना का काम अधर में लटका है.
नगर निगम की कई योजनाएं हुईं असफल
गया. नगर निगम द्वारा चलाये गये पहले भी कई योजनाएं असफल ही साबित हुई है. इसमें नैली डंपिंग जोन में कचरा से जैविक पार्क बनाने की योजना अधर में लटक गयी. निगम कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, शुरुआती समय में निगम ने जोर-शोर से काम लगाया. लेकिन, बाद में हर किसी ने अपना हाथ खींच लिया और काम बंद हो गया. इसके साथ ही मशीन से शहर में सफाई की योजना तैयार की गयी. लेकिन, अधिकारी की लापरवाही के कारण किसी निजी कंपनी को मशीन चलाने का टेंडर अब तक नहीं दिया गया है, जबकि निगम में करीब दो करोड़ रुपये खर्च कर तीन माह पहले ही मशीन खरीदी गयी है.
वार्ड में कचरा प्रबंधन का काम शुरू करने की योजना अब तक फाइल में ही लटकी है. कचरा से जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया गया, लेकिन खाद को बाजार में उतारने के लिए कोई ठोस तैयारी अब तक नहीं की जा सकी है. निगम के अधिकारी सिर्फ जल्द तैयारी होने की बात कहते रहे हैं.
इनसे लगाया जा सकता है सच्चाई का अंदाजा
पटवा टोली के विकास ठाकुर, गाेपालगंज रोड के रामावतार प्रसाद, हरि बगीचा के जितेंद्र कुमार, पेहानी की गीता देवी, कलेर के विवेक कुमार, खटकाचक के विनय प्रसाद, शाहमीर तक्या पहाड़ी के रमेश कुमार व डेल्हा के विनोद रमानी ने बताया कि निगम से शौचालय के लिए वर्क ऑर्डर जारी हुआ है. छह माह से गड्ढा खोद कर छोड़ा हुआ है.
लेकिन, पार्षद व निगम का चक्कर काटते-काटते जूता घिस गया, पर पहली किस्त का पैसा बैंक खाते में नहीं पहुंचा. इनका कहना है कि इस योजना में सरकार से 12 हजार रुपये ही मिलने हैं. शौचालय बनाने में कम-से-कम 30 हजार रुपये खर्च होते हैं. इस कारण कमीशन की गुंजाइश ज्यादा नहीं है. एेसे में इस योजना पर कौन ध्यान देगा.
ऊपरोक्त लोगों ने बताया कि आवास योजना का वर्क ऑर्डर मिलते ही कुछ ही दिनों में पैसे बैंक खाते में पहुंच जाते हैं. क्योंकि वहां दो लाख रुपये मिलने हैं और लोग घर बनाने में 30-40 हजार रुपये तक नाजायज देना होगा ऐसा मान कर ही चलते हैं. निगम सूत्रों के अनुसार, कई बार इस तरह की शिकायत निगम के अफसरों को दी गयी है.
पर, उन शिकायतों की जांच करना तक उचित नहीं समझा गया है. कई लोगों की शिकायत है कि आवास और शौचालय योजना के पैसे गलत ढंग से कुछ लोगों के खाते में जाने की बात भी सामने आयी है पर लंबा वक्त गुजर जाने के बावजूद ऐसे लोगों से पैसे वापस नहीं लिये जा सके हैं.
फाइल रहती है पार्षद के हाथ में
निगम के एक कर्मचारी ने नाम नहीं छापने के शर्त पर कहा कि योजनाओं की फाइल लेकर पार्षद ही अधिक बार घूमते रहते हैं. उनका तर्क होता है कि परेशान जनता उन्हें तंग करती है. खुद सक्रिय रहते हैं. सच्चाई कुछ और होती है. कर्मचारी ने कहा कि ज्यादातर पार्षद वार्ड योजनाओं में काम कराने का आदेश विभागीय स्तर पर होने के बाद अपने चहेते इंजीनियर को काम की जिम्मेदारी दिलवाते हैं. पार्षद या फिर पार्षद के बताये गये आदमी से ही काम कराया जाता हैं. एक ठेकेदार ने बताया कि एक इंजीनियर के पास आधा-आधा दर्जन योजनाओं की जिम्मेदारी होती है. एक इंजीनियर के पास तीन से अधिक योजनाओं में काम की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए.
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