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प्री मॉनसून बारिश : मुरझाये फूलाें व किसानाें के चेहरे हुए गुलाबी

गया : शादी व शुभ लग्न में फूलाें का महत्व बढ़ जाता है. गया में गजरे का प्रचलन ताे नहीं पर शादी-विवाह के घराें, वरमाला के स्टेज व दूल्हा-दुल्हन के वाहन की सजावट के लिए फूलाें की जरूरत पड़ती है. किसी भी शुभ मुहूर्त में फूलाें की जरूरतें बढ़ जाती हैं. गया में फूलाें की […]

गया : शादी व शुभ लग्न में फूलाें का महत्व बढ़ जाता है. गया में गजरे का प्रचलन ताे नहीं पर शादी-विवाह के घराें, वरमाला के स्टेज व दूल्हा-दुल्हन के वाहन की सजावट के लिए फूलाें की जरूरत पड़ती है. किसी भी शुभ मुहूर्त में फूलाें की जरूरतें बढ़ जाती हैं. गया में फूलाें की खेती कम हाेती है. इसकी खास वजह यहां की मिट्टी व जलवायु भी है.
लाेकल फूल काेलकाता से आयातित फूलाें से ज्यादा सुगंधित हाेते हैं पर दाे, तीन दिनाें तक रह नहीं पाते. दूसरे ही दिन मुरझाने लगते हैं. फूल उत्पादक इसकी एक आैर वजह यह बताते हैं कि काेलकाता में व्यापारी फूलाें में केमिकल यूज करते हैं, जिससे उसकी लाइफ बढ़ जाती है, जाे यहां के फूल उत्पादक नहीं करते. लेकिन, यहां के फूलाें में खुशबू काेलकाता से आयातित फूलाें से अधिक हाेती है.
खासकर गुलाब व गेंदा के फूलाें में आैर भी खुशबू हाेती है. अब फूलाें के डिमांड पर आर्टिफिशियल फूल व लरियां भी छुरियां चला रहे हैं. चूंकि आर्टिफिशियल के दाम फूलाेंं की तुलना में लगभग आधी हाेती है. इसलिए ग्राहक भी कम पैसे लगने की स्थिति में आर्टिफिशियल काे ही पसंद करने लगे हैं. खासकर गाड़ियाें व दरवाजे आदि की सजावट में अब इन्हीं का इस्तेमाल ज्यादा हाेने लगा है.
गया में हर राेज 1.20 लाख रुपये की फूल की खपत : फूल विक्रेताआें की माने ताे लग्न के दिनाें में गया में हर राेज करीब एक लाख 20 हजार रुपये के फूलाें की खपत है. इनमें करीब एक लाख रुपये के फूल काेलकाता से आयात किये जाते हैं. गया की मंडी से महज 20 हजार रुपये के फूल ही आ पाते हैं. लेकिन, इस बार लंबे समय तक कड़ी धूप, लहर व गर्मी की वजह से फूलाें के पाैधे सूखने लगे, पीले पड़ने लगे.
इसकी वजह से उत्पादन पर गहरा असर पड़ा आैर उत्पादन लगभग आधा हाे गया. फूलाें के पाैधे बचाकर रखने के लिए अधिक पटवन करना पड़ा, जिसके लिए डीजल पंपसेट पर किसान काे अधिक खर्च हाे गया. मेहनत भी अधिक करनी पड़ी पर उसके एवज में उसके दाम नहीं मिल पाये. प्री मॉनसून बारिश से फूलाें के साथ किसानाें के चेहरे भी गुलाबी हाेने लगे हैं.
फूल विक्रेता बताते हैं फिलहाल गया के उत्पादित फूल 10 हजार के ही आ पा रहे हैं. पर्व-त्याेहार जैसे वेलेंटाइन डे, दीपावली आदि के माैके पर करीब ढाई लाख रुपये की फूल की खपत गया में हाेती है. आम दिनाें 40 हजार रुपये के फूलाें का काराेबार हाे पाता है.
लागत अधिक, पर दाम कम
उत्पाद पर खर्च की तुलना में बाजार में कीमत नहीं मिल पाने की मार यहां के फूल उत्पादकाें काे झेलना पड़ रहा है. इसकी वजह से फूल उत्पादकाें की नयी पीढ़ी इससे मुंह माेड़ने लगे हैं. कृषि विभाग या सरकार का भी फूलाें की खेती के प्रति न रुचि है आैर ना ही इसके लिए प्राेत्साहित ही करते हैं. जबकि यह कच्चा पर नकदी फसल है.
यहां के उत्पादित रेड राेज (लाल गुलाब) की कीमत प्रति पीस 50 पैसे मिल पाती है जबकि काेलकाता से मंगाये जानेवाले गुलाब की कीमत दाे रुपये हाे जाता है. इस तरह यहां के किसान को एक चाैथाई दाम ही काराेबारी दे पाते हैं. यहां केमिकल यूज नहीं हाेता, इसकी वजह से सुगंधित अधिक हाेता है.
शशि कुमार, फूल उत्पादक (लखनपुरा)
काेलकाता से फूल मंगाने पर खर्च ज्यादा
गया की मंडी में स्थानीय फूल उत्पादकाें से गेंदा, गुलाब (खासकर रेड राेज), तगड़ी, कुंद (कसिम जिसे माैसमी चमेली) भी कहते हैं, बेली (बेला माेतिया) आते हैं जबकि काेलकाता से हर कलर का गुलाब, कलकतिया गेंदा, रजनीगंधा, बेली, चमेली, चंपा, ग्लैडी, स्टिक वेराइटी के फूल मंगाये जाते हैं. गया के कई फूलाें में काफी खुशबू हाेती है पर दाे से तीन दिनाें तक रह नहीं पाते. दूसरे ही दिन से मुरझाने लगते हैं. काेलकाता से मंगाये गये फूलाें में सुगंध नहीं हाेती पर दाे-दिनाें तक के लिए टिकाऊ है. दाेगुने खर्च कर गया की तुलना काेलकाता से माल मंगवाना पड़ता है.
संजय कुमार उर्फ शंटू मालाकार, लहेरिया टाेला

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