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ब्रोकली की खेती करके निराश हैं बिहार के किसान, कोरोना के चलते हुआ भारी घाटा

ब्राेकली खाने से डायबिटिज, ब्लड प्रेशर की बीमारी नियंत्रित रहती है. यह यहां उत्पादित फूल गाेभी व बंधा गाेभी की तुलना में काफी फायदेमंद है.

गया. कोरोना संक्रमण की मार न केवल व्यवसाय, स्कूल-कॉलेज बल्कि खेती-बारी पर भी जबरदस्त पड़ा है. चाइनिज व फास्ट फुड में यूज हाेनेवाली सब्जियाें की खेती पर इसका खासा असर हाेने से किसान परेशान हैं.

वर्ष 2009 में गया में पहली बार ब्राेकली(चाइनिज गाेभी) की खेती शुरू करनेवाले खरखुरा गांव के किसान कुंवर सिंह ने बताया कि 11 वर्ष हाे गये ब्राेकली की खेती करते. हालांकि पिछले दाे वर्षाें से वह कैंसर से पीड़ित हैं बावजूद खेती किसानी से उनका इतना लगाव है कि अब भी वह ब्राेकली सहित अपने खेताें में साग-सब्जी की खेती कर ही लेते हैं.

कुंवर सिंह ने बताया कि अब ताे ब्राेकली बाेधगया के बकराैर, कुजापी, मानपुर के खानजहांपुर आदि जगहाें पर काफी हाेने लगी है. पर, इस बार काेराेना ने किसानाें की भी कमर ताेड़ दी. खासकर चाइनिज व अन्य विदेशी व्यंजनाें में यूज हाेनेवाली सब्जियाें की खेती प्रभावित हुई.

इस बार विदेशी पर्यटक जाे ठंडा में पर्यटन सीजन में लाखाें की संख्या में बाेधगया आते थे, इस बार नहीं आये. इन सब्जियाें की बिक्री व डिमांड सबसे ज्यादा वहीं हाेती है. कुंवर सिंह ने बताया कि वर्ष 2009 में नेट पर देखकर उन्हाेंने इस सब्जी के बारे में जाना.

फिर ऑनलाइन इसका बीज मंगवाया और शुरू कर दी खेती. अच्छा मुनाफा हुआ. आस-पास के दूसरे किसानाें काे भी इसके लिए प्राेत्साहित किया. जिले के विभिन्न भागाें से लाेग ब्राेकली की खेती देखने आते थे.

वह इसमें रासानिक खाद नहीं डालकर जैविक खाद का प्रयाेग करते हैं. उन्हाेंने बताया कि ब्राेकली खाने से डायबिटिज, ब्लड प्रेशर की बीमारी नियंत्रित रहती है. यह यहां उत्पादित फूल गाेभी व बंधा गाेभी की तुलना में काफी फायदेमंद है.

उन्हाेंने किसानाें से भी अपील की कि जैविक खाद की ही प्रयाेग करें, इससे खानेवाले की सेहत ठीक रहेगी. रासायनिक खाद व अधिक मात्रा में कीटनाशी दवाआें का छिड़काव सेहत के लिए काफी नुकसानदेह है.

बीज बाेने के 25 दिनाें के बाद पाैधे काे ट्रांसप्लांट किया जाता है. इसका शीड चीन व चिली से मंगवाया जाता है. बीज बाेने से लेकर साै से 115 दिनाें में यह तैयार हाेता है. एक गाेभी का वजन सात साै ग्राम से एक किलाेग्राम तक का हाेता है.

पंकज कुमार पांडेय ने बताया कि पिछले वर्ष पांच किलाे बीज की बिक्री हुई थी पर इस वर्ष काेराना काल में पर्यटकाें की संख्या नगण्य हाेने की वजह से महज ढाई किलाेग्राम ही बीज की बिक्री हुई. इससे स्पष्ट है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष आधी ब्राेकली की खेती हुई. इसमें पानी भी अधिक नहीं लगती है.

Posted by Ashish Jha

Prabhat Khabar News Desk
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