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बिहार में उपजाया जा रहा काला गेहूं, कैंसर से मोटापे तक में फायदेमंद

पुरुषोत्तम, बहादुरपुर(दरभंगा) : तनाव, मोटापा जैसी गंभीर बीमारियों को दूर रखने वाला और एंटी आॅक्सिडेंट से भरपूर काले गेहूं की खेती बिहार में भी शुरू हो गयी. गेहूं की इस प्रजाति का विकास नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, मोहाली (पंजाब) में हुआ है. दरभंगा के बहेड़ी प्रखंड के जाखंड गांव निवासी किसान मुकेश कुमार सिंह […]

पुरुषोत्तम, बहादुरपुर(दरभंगा) : तनाव, मोटापा जैसी गंभीर बीमारियों को दूर रखने वाला और एंटी आॅक्सिडेंट से भरपूर काले गेहूं की खेती बिहार में भी शुरू हो गयी. गेहूं की इस प्रजाति का विकास नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, मोहाली (पंजाब) में हुआ है.

दरभंगा के बहेड़ी प्रखंड के जाखंड गांव निवासी किसान मुकेश कुमार सिंह ने प्रयोग के तौर पर दो कट्ठे जमीन में इस गेहूं की बुआई की. दो कट्ठे में 140 किलो गेहूं का उत्पादन हुआ. मुकेश ने बताया कि गेहूं का काला रंग इसमें उच्च मात्रा में पाये जाने वाले एंथोसाइनिन की वजह से है. इसमें जिंक व आयरन की अधिक मात्रा पायी जाती है.
सभी चीजें सेहत के लिए मुफीद हैं. उन्होंने बताया कि काले गेहूं का बीज अनुसंधान केंद्र से ऑनलाइन मंगवाया. श्री सिंह ने बुआई से अन्न प्राप्ति तक की पूरी प्रक्रिया की जानकारी डीएओ समीर कुमार को दी.
गुणवत्ता के मामले में ब्लूबेरी के बराबर : साधारण गेहूं में एंथोसाइनिन की मात्रा पांच से 15 पीपीएम की होती है. वहीं, काले गेहूं में यह मात्रा 40 से 140 पीपीएम तक होती है. इसलिए यह गेहूं शरीर से फ्री रेडिकल्स बाहर निकालने में मदद करता है. एंटी ऑक्सीडेंट की अधिकता की वजह से साधारण गेहूं के मुकाबले काले गेहू में पौष्टिकता बहुत अधिक होती है. गुणवत्ता के मामले में इसे ब्लूबेरी नामक फल के बराबर माना जाता है.
कैंसर, शुगर, मोटापा, तनाव के मरीजों को फायदा
शोध में पता चला है कि तनावग्रस्त व्यक्ति को इस गेहूं के आटे की रोटी खिलाने पर उसे फायदा हुआ है. मोटापा कंट्रोल करने में भी बहुत ही उत्साहजनक परिणाम मिले हैं. कैसर और शुगर के मरीजों पर भी इस गेहूं का सकारात्मक परिणाम मिला है. अन्न की कीमत व स्वास्थ्य के फायदे की दृष्टि से इसे भविष्य की खेती बताया जा रहा है.
पंजाब के मोहाली सेक्टर 81 स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट ने डॉ मोनिका गर्ग के नेतृत्व में एंटीऑक्सीडेंट से परिपूर्ण इस गेहूं को विकसित किया है. संस्था ने इसका पेटेंट भी करा लिया है.
डॉ मोनिका के नेतृत्व में इस नयी प्रजाति पर 2010 से अनुसंधान किया जा रहा था. संस्था द्वारा ब्लैक गेहूं की इस प्रजाति को “नाबी एमजी” नाम दिया गया है.
बुआई के लिए कम लगता है बीज : मुजफ्फरपुर जिले के सरैया एमवीआरआई भटौलिया में भी पांच कट्ठे जमीन में रिसर्च के तौर पर काले गेहूं की खेती की गयी है. एमवीआरआई के संस्थापक अविनाश कुमार ने बताया कि पहली बार इसकी खेती की.
100 रुपये किलो बीज उपलब्ध हुआ था. एक कट्ठे में सवा से डेढ़ किलो बीज लगता है, जबकि पहले से जिस गेहूं की खेती की जाती है उसमें प्रति कट्ठा दो से ढाई किलो बीज लगता है.
डीएओ समीर कुमार ने बताया कि काले गेहूं की खेती की जानकारी मिली है. किसान ने उपजाया गया गेहूं दिखाया है. इसकी विशेष जानकारी कृषि वैज्ञानिक एवं अनुसंधान केंद्र से ली जा रही है. संतुष्ट होने के बाद काले गेहूं की खेती के लिए प्रचार-प्रसार किया जायेगा.
नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट ने किया है विकसित
एंटी ऑक्सीडेंट की अधिकता के कारण साधारण गेहूं के मुकाबले बहुत अधिक पौष्टिक
एंथोसाइनिन की मात्रा अधिक होने से शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालने में सहायक
दो कट्ठे जमीन में 140 किलो गेहूं का हुआ उत्पादन

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