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अस्पताल में जेनेरेटर मद में भुगतान पर सवाल

आखिर दावा किसका सही, बिजली विभाग या फिर सदर अस्पताल का वहीं हर दिन कम से कम 8 घंटे जेनेरेटर चलने का किया गया है सदर अस्पताल से भुगतान वर्ष 2016-17 में 16 लाख 26 हजार तो 17-18 में 11 लाख 16 हजार रुपये का किया गया भुगतान नजराना के तौर पर हर दिन दी […]

आखिर दावा किसका सही, बिजली विभाग या फिर सदर अस्पताल का

वहीं हर दिन कम से कम 8 घंटे जेनेरेटर चलने का किया गया है सदर अस्पताल से भुगतान
वर्ष 2016-17 में 16 लाख 26 हजार तो 17-18 में 11 लाख 16 हजार रुपये का किया गया भुगतान
नजराना के तौर पर हर दिन दी जा रही पांच घंटे की जेनेरेटर चलाने की राशि
मधुबनी : सदर अस्पताल में जेनेरेटर मद में किये गये भुगतान ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. बीते एक साल में 11.16 लाख रुपये का भुगतान किया गया है. जबकि बिजली विभाग का दावा है कि इमरजेंसी फीडर लाइन होने के कारण अस्पताल में कम से कम 22 से 23 घंटे तक की बिजली आपूर्ति हर दिन की जाती है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर दावा किसका सही.
बिजली विभाग का या फिर सदर अस्पताल का. जिस प्रकार से अस्पताल में जेनेरेटर मद में खर्च किये गये हैं उसको यदि गुणा भाग किया जाय तो औसतन हर दिन करीब 8 से 9 घंटे तक जेनेरेटर चला है. यदि यह दावा सही है तो फिर कटघरे में बिजली विभाग. पर जिस प्रकार से बीते एक साल में बिजली विभाग के द्वारा लाइन की आपूर्ति की गयी है, वह भी इमरजेंसी फीडर में उससे अस्पताल में जेनेरेटर मद में किये गये भुगतान से गड़बड़ी की आशंका उठने लगी है.
पिछले साल की तुलना में कम हुआ भुगतान . सदर अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में जेनेरेटर संचालक द्वारा 17 लाख 48 हजार 673 रुपये का विपत्र दिया गया. जिसके विरुद्ध 7 प्रतिशत की कटौती कर 16 लाख 26 हजार 673 रुपये का भुगतान किया गया. जबकि वर्ष 2017-18 में 12 लाख 239 रुपये के विरुद्ध 7 प्रतिशत की कटौती कर 11 लाख 16 हजार 239 रुपया का भुगतान किया गया.
जेनेरेटर मद में लाखों रुपये का होता है भुगतान. सदर अस्पताल में विद्युत सेवा उपलब्ध नहीं होने पर जेनेरेटर से विद्युत आपूर्ति किया जाता है. जेनेरेटर संचालक को प्रति घंटा के हिसाब 389 रुपये का भुगतान करने का अनुबंध है. कुल भुगतान राशि पर 2 प्रतिशत टीडीएस व 5 प्रतिशत वैट कटौती कर शेष राशि भुगतान किया जाता है. आंकड़ों पर गौर करें तो मार्च 2016 से जुलाई 16 तक के पांच माह में 12 लाख 45 हजार 307 रुपये का विपत्र संचालक द्वारा दिया गया.
जबकि अगस्त 16 से फरवरी 17 तक 5 लाख 3 हजार 366 रुपये का विपत्र दिया गया. सदर अस्पताल द्वारा उक्त राशि से वैट व टीडीएस की कटौती कर 16 लाख 26 हजार 673 रुपये का भुगतान संचालक किया गया.
वहीं वर्ष मार्च 17 से मई 17 तक 4 लाख 48 हजार 205 रुपये, जून 2017 से अगस्त 17 तक 2 लाख 66 हजार 43 रुपया, सितंबर से दिसंबर 2017 तक 3 लाख 35 हजार 504 व जनवरी 18 से फरवरी 18 तक 1 लाख 50 हजार 187 रुपये का विपत्र संचालक द्वारा दिया गया. इस तरह 2016-17 में कुल राशि 17 लाख 48 हजार 673 रुपया तथा 2017-18 में कुल राशि 12 लाख 239 रुपया में 7 प्रतिशत की कटौती कर भुगतान किया गया.
नजराना में मिलता है पांच घंटे
इस संबंध में उपाधीक्षक सदर अस्पताल डाॅ अजय नारायण प्रसाद का बयान भी गौर करने लायक है. डा. प्रसाद बताते हैं कि रोगी कल्याण समिति की बैठक में लिये गये निर्णय के आलोक में जेनेरेटर संचालक को प्रतिदिन 5 घंटे का छूट दिया गया है. यानी कि जेनेरेटर चले न चले पांच घंटे का भुगतान कर देना है.
मतलब जेनेरेटर सेवा से प्रतिदिन लगभग 2 हजार रुपये का भुगतान बख्शीश में.
प्रतिदिन नौ से दस घंटे चलता है जेनेरेटर
जेनेरेटर संचालक द्वारा दिये गये विपत्र के विरुद्ध सदर अस्पताल द्वारा किये गये भुगतान के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रतिदिन लगभग 3 हजार से 35 सौ रुपये प्रतिदिन जेनेरेटर मद में भुगतान किया जाता है. जेनेरेटर संचालक को प्रति घंटे 389 रुपये के दर से भुगतान किया जाता है. इस संबंध में विद्युत सहायक अभियंता गौरव कुमार ने बताया कि सदर अस्पताल की विद्युत आपूर्ति इमरजेंसी फीडर से होती है. जिसमें प्रतिदिन 22 से 23 घंटा विद्युत आपूर्ति की जाती है. सदर अस्पताल द्वारा इस संबंध में जब भी प्रतिवेदन की मांग की जाती है. उन्हें विद्युत आपूर्ति का प्रतिवेदन भेजा जाता है. ऐसे में प्रतिदिन 8 से 9 घंटा जेनेरेटर सेवा का परिचालन में होने वाले खर्च किसी यक्ष प्रश्न से कम नहीं है.
गरमी आते ही जेनेरेटर कनेक्शन की बढ़ी मांग
शहर में इन दिनों बिजली व्यवस्था चरमरा गयी है. गरमी में लोग लाइन कटते ही बेहाल हो जाते हैं. पर लोगों की यही बेहाली जेनेरेटर संचालकों के लिये वरदान साबित हो रहा है. जेनेरेटर संचालकों की पौ बारह हो गयी है. आम लोगों की कौन कहे, अब तो प्राय: हर व्यवसायी जेनेरेटर लाइन पर ही पूरी तरह निर्भर होकर रह गये है. कुछ बड़े व्यवसायी के पास भले ही अपना जेनसेट हो पर अधिकांश आज भी निजी जेनरेटर कनेक्शन लेने को बाध्य है. कहने को बिजली विभाग हर दिन 20 से 22 घंटे तक बिजली की आपूर्ति करने का दावा करती है, पर हकीकत में कभी पंद्रह घंटा तो कभी इससे भी कम ही बिजली का लाइन रहता है. एक आंकडों के अनुसार हर साल डेढ़ करोड से दो करोड़ रुपये का कारोबार जेनेरेटर संचालक करते हैं
200 रुपये प्रति बल्ब लिया जाता है भाड़ा
बाजार से मिली जानकारी के अनुसार जेनेरेटर संचालक एक बल्ब का दिन भर लाइन देने के लिये 7 रुपये से 10 रुपये प्रतिदिन लिया जाता है. जबकि एक पंखा का चार्ज 15 रुपये तक है. वहीं कंप्यूटर एवं अन्य सामान जलाने पर भाड़ा अलग से तय होता है. यह भाड़ा चार हजार से लेकर 15 – 20 हजार मासिक तक होता है. कुल मिलाकर एक दुकानदार कम से कम एक बल्ब का कनेक्शन हर हाल में लिये हुए है. वहीं मझोले स्तर का दुकानदार कम से कम तीन बल्ब, पंखा लगाये हुए है. नाम ना बताने के शर्त पर जेनेरेटर संचालकों ने बताया कि उनका कोई संघ नहीं है. जो रेट निर्धारित करे. बाजार में कई जेनेरेटर संचालक हैं जो अपने अपने हिसाब से और क्षेत्र के अनुसार रेट तय करते हैं. ऐसे में यदि पांच हजार दुकानदार भी एक बल्ब लेते हैं तो सालाना कारोबार एक करोड़ से अधिक का होता है.

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