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CAG की रिपोर्ट: बिहार में मनरेगा के तहत महज एक फीसदी गरीबों को मिला 100 दिनों का काम

पांच वर्षों यानी 2014 से 2019 तक इसके तहत रोजगार देने का प्रतिशत 14 से घटकर दो हो गया है. इसके अलावा मनरेगा में निबंधित वरिष्ठ नागरिकों की संख्या पांच से नौ प्रतिशत और दिव्यांगों की संख्या नौ से 14 प्रतिशत है.

पटना. राज्य सरकार के सामान्य (या सामाजिक क्षेत्र), राजस्व और पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम) से संबंधित सीएजी की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा में पेश की गयी. बाद में एजी राम अवतार शर्मा ने महालेखाकार के मुख्य कार्यालय सभागार में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी स्थिति स्पष्ट की.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार में भूमिहीन दिहाड़ी मजदूरों की संख्या देश में सर्वाधिक 88.61 लाख है. बिहार का मानव दिवस सृजन करने में 21वां स्थान है. मनरेगा से निबंधित लोगों की संख्या आठ से 10 प्रतिशत ही है. इसके तहत रोजगार मांगने के इच्छुक 90 हजार 161 लोगों में महज 3.34% का ही जॉब कार्ड बना है.

मनरेगा में एक प्रतिशत से कम लोगों को 100 दिनों का रोजगार दिया गया है. औसत 34 से 45 दिनों का रोजगार ही लोगों को दिया गया है. सरकार इसका कारण बताती है कि कृषि कार्य करने वाले मजदूरों से कम मजदूरी मनरेगा में मिलने के कारण लोग इसमें कम काम करना चाहते हैं. मनरेगा की ऑडिट जांच में यह बात सामने आयी है कि 42 लाख काम इसके अंतर्गत लिये गये थे, लेकिन 36 लाख (65%) कार्य अधूरे पड़े हैं.

पांच वर्षों यानी 2014 से 2019 तक इसके तहत रोजगार देने का प्रतिशत 14 से घटकर दो हो गया है. इसके अलावा मनरेगा में निबंधित वरिष्ठ नागरिकों की संख्या पांच से नौ प्रतिशत और दिव्यांगों की संख्या नौ से 14 प्रतिशत है.

कई स्थानों पर निजी घरों में भी मनरेगा के तहत काम करा लिये गये, जबकि कुछ भवनों का निर्माण बेवजह कराया गया. मनरेगा में सिर्फ 25% मजदूरों का भुगतान ही आधार से जुड़े बैंक खातों में होता है. आधार जुड़े खातों की संख्या 84% है.

Posted by Ashish Jha

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