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Buxar News: मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर परमात्मा को जानना चाहता है, जो अत्यंत मुश्किल : भारती दीदी

Buxar News: ईश्वर की लीलाओं को अपनी बुद्धि के बल पर समझ पाना मुश्किल है. उनकी लीला सदैव ही मनुष्य के लिए एक रहस्य बनी हुई है

चौसा.

ईश्वर की लीलाओं को अपनी बुद्धि के बल पर समझ पाना मुश्किल है. उनकी लीला सदैव ही मनुष्य के लिए एक रहस्य बनी हुई है. क्योंकि मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर परमात्मा को जानना चाहता है.

जो अत्यंत मुश्किल है. प्रभु की प्रत्येक लीला में आध्यात्मिक रहस्य छुपा होता है, जिनका उद्देश्य मनुष्य को आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करना है. जब एक मनुष्य पूर्ण सतगुरु की कृपा से ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करता है. तब उसके अंदर में ही इन लीलाओं में छिपे आध्यात्मिक गूढ़ रहस्य प्रकट होते हैं. तथा पूर्ण सतगुरु की कृपा से ही वह इन रास्तों को समझ पाता है. भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के घरों में से माखन चोरी की. इस घटना के पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है, दूध का सार तत्व माखन है. उन्होंने गोपियों के घरों से केवल माखन चुराया अर्थात सार तत्व को ग्रहण किया और आसार को छोड़ दिया. प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है. इसलिए संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ्य को अपव्यय करने की अपेक्षा हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करना चाहिए, इसी से जीवन का कल्याण संभव है. सत्संग से मनुष्य का चरित्र निर्माण होता है. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में जो ज्ञान दिया है, उससे मानव जीवन साकार होता है. उक्त बातें राष्ट्रीय अध्यक्ष यमुना रक्षक दल, राधा मोहन जी गौशाला एवं यमुना सेवा धाम ट्रष्ट वृन्दावन के संचालक संत श्री जयकृष्ण दास जी महराज के सानिध्य में चौसा के कठतर गांव में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में वृंदावन से पधारी कथा व्यास साध्वी भारती दीदी ने पांचवें दिन श्रीकृष्ण लीलाओं का व्याख्यान करते हुए कही. भारती दीदी ने कथा के दौरान आगे कहा कि माखन चुराकर खाना तो एक बहाना था, भक्तों के घर जाकर उनके कष्टों को खाना था. और भक्तों का दर्शन करना था, उनका कल्याण करना था. मनुष्य ईश्वर का स्वरूप होते हुए भी ईश्वर को पहचानने का प्रयत्न नहीं करता है. इसी कारण उसे आंनद की प्राप्ति नहीं होती है. भागवत जीवन-दर्शन का ग्रंथ है. उक्त बातें राष्ट्रीय अध्यक्ष यमुना रक्षक दल, राधा मोहन जी गौशाला एवं यमुना सेवा धाम ट्रष्ट वृन्दावन के संचालक संत श्री जयकृष्ण दास जी महराज के सानिध्य में चौसा के कठतर गांव में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में वृंदावन से पधारी कथा व्यास साध्वी भारती दीदी ने पांचवें दिन श्रीकृष्ण लीलाओं का व्याख्यान करते हुए कही. भारती दीदी ने कथा के दौरान आगे कहा कि माखन चुराकर खाना तो एक बहाना था, भक्तों के घर जाकर उनके कष्टों को खाना था. और भक्तों का दर्शन करना था, उनका कल्याण करना था. मनुष्य ईश्वर का स्वरूप होते हुए भी ईश्वर को पहचानने का प्रयत्न नहीं करता है. यह जीवन जीने की कला का मार्ग दर्शन करता है. भागवत की भक्ति का आदर्श कृष्ण की गोपियां हैं. गोपियों ने घर नहीं छोड़ा. उन्होंने स्वधर्म त्याग नहीं किया वे वन में भी नहीं गई फिर भी उन्होंने भगवान को प्राप्त कर लिया. भागवत ज्ञान, वैराग्य को जागृत करने की कथा है. ज्ञान और वैराग्य मनुष्य के अंदर हैं, पर वह सोए हुए हैं. उन्होंने आगे कहा कि हर मनुष्य का बचपन खास होता है. बचपन को संवारने में सबसे बड़ी भूमिका मां की होती है. मां रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना होती है. जीवन के मरूस्थल में नदी, जिंदगी के कड़वाहट में अमृत का प्याला बनी रहती है. मां पृथ्वी है, संवेदना है, भावना जगत है, धूरी है, अहसास है. मां बिना सृष्टि की कल्पना अधूरी है. उन्होंने ने कहा कि पिता से से ठुकराये जाने पर अगर ध्रुव की मां ने उन्हें सही रास्ता नहीं बताया होता तो आज परमात्मा द्वारा भक्त ध्रुव को ध्रुवलोक का राजा बनने का वरदान नहीं मिलता.

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