बक्सर. पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार के निर्वाण तिथि के अवसर पर नई बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में चल रहा 56 वां सिय-पिय मिलन महोत्सव के दूसरे दिन बुधवार को विविध धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये गये. तड़के श्रीराम चरितमानस के सामूहिक नवाह्न परायण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ, जो देर रात श्रीराम लीला के मंचन से विराम दिया गया. इस दौरान श्रीकृष्ण लीला, श्रीराम कथा एवं भगवान श्रीराम व जानकी की झांकी के साथ श्री सीताराम विवाह का मिथिला पद गान गाया गया. वहीं दमोह की संकीर्तन मंडली द्वारा नौ दिवसीय अष्टयाम संकीर्तन जारी रहा. सुबह से लेकर देर रात चले इन भक्ति कार्यक्रमों में दर्शक गोता लगाते रहे. दिन में मंचित श्रीकृष्ण लीला में भक्तमति मीराबाई के चरित्र को जीवंत किया गया. जिसे देख दर्शक भाव विभोर हो गये. ऋषियों के कोपभाजन बने भगवान के पार्षद : अवतार प्रयोजन लीला में दिखाया जाता है कि जय-विजय बैकुंठ के मुख्य द्वार के रक्षक पार्षद और श्रीहरि को सर्वाधिक प्रिय हैं. जो उप-देवता की श्रेणी में आते हैं , गुण एवं रूप में श्रीहरि के ही समान हैं. श्रीहरि की भांति ही वे अपने तीन हाथों में शंख, चक्र एवं गदा धारण करते हैं, पर इनके चौथे हाथ में तलवार होती है, जबकि भगवान विष्णु अपने चौथे हाथ में कमल धारण करते हैं. सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार भगवान विष्णु के दर्शनों को बैकुंठ पहुंचते हैं. द्वारपाल के रूप में तैनात जय और विजय उन्हें प्रणाम करते हैं. ऋषिगण उनसे श्रीहरि के दर्शनों की इच्छा जताकर अंदर जाने का प्रयास करते हैं, लेकिन जय-विजय भगवान के विश्राम की बात कह उन्हें बाहर ही रोक देते हैं और बार-बार कहने के बावजूद उनकी एक नहीं सुनते हैं. सो ऋषिगण क्रोधित हो शाप देते हैं कि तुम दोनों का पतन हो जाये और तुम सदा के लिए मृत्युलोक में जा गिरो. भगवान विष्णु को सनत्कुमारों के उनके द्वार पर आने की भनक लगते ही वे स्वयं माता लक्ष्मी के साथ द्वार पर पहुंचते हैं और सनत्कुमारों का स्वागत करते हुए कहते हैं-हे मुनिश्रेष्ठ! मेरे पार्षदों के व्यवहार से जो आपको कष्ट हुआ है उसके लिए मुझे अत्यंत खेद है. सेवक द्वारा किया गया अपमान भी स्वामी का ही माना जाता है अतः इनकी ओर से मैं आपसे क्षमा मांगता हूं. श्रीहरि के ऐसे मधुर वचन सुनकर सनत्कुमारों का क्रोध तत्काल शांत हो जाता है. वे श्रीहरि से कहते हैं- “हे प्रभु! आप तो भक्तवत्सल हैं, किन्तु हम आपके भक्त होते हुए भी क्रोध के आवेश में आ गये. उसी क्रोध के वशीभूत हो हम इन दोनों को शाप दे दिया. हम अपने इस व्यवहार के लिए अत्यंत लज्जित हैं और आप इन दोनों को शापमुक्त कर सकते हैं. “श्रीहरि कहते हैं – “मुनिवर! मैं त्रिलोक का अधिपति होकर भी आपके वचन को मिथ्या नहीं कर सकता. भगवान विष्णु का यह वचन सुनकर जय-विजय व्याकुल हो उनके चरणों में गिर पड़ते हैं. इसपर ऋषि कहते हैं- “हे वत्स! हमारा शाप तो मिथ्या नहीं हो सकता, किन्तु हम तुम्हे वरदान देते हैं कि तुम दोनों पृथ्वीलोक पर महान विष्णुभक्त के रूप में जन्म लोगे और सात जन्मों के पश्चात पुनः श्रीहरि के चरणों में बैकुंठ लौट जाओगे. मानव जीवन का सर्वोत्कृष्ट फल है श्रीराम कथा : राजेंद्र देवाचार्य जी बक्सर. सिय-पिय मिलन महोत्सव के दूसरे दिन बुधवार को श्रीराम कथा में श्रीधाम वृंदावन के मलूक पीठाधीश्वर जगदगुरु श्री राजेन्द्र देवाचार्य जी महाराज ने कहा कि शिव-पार्वती संवाद का भाव पूर्ण व्याख्या किया. श्रीराम तत्व का वर्णन करते हुए कहा कि महाभारत में उस अद्वैत तत्व का उल्लेख है कि ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान इन तीन नामों से पुकारते हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि इनका ये नाम अलग-अलग है, क्योंकि ये तीनों एक ही तत्व का नाम है. उन्होंने कहा कि श्रीराम कथा मानव जीवन का सर्वोत्कृष्ट फल है. जिसका रसपान कर जीव का उद्धार हो जाता है. महाराज श्री ने कहा कि भगवान एक ही है, जिसका निकटता से दर्शन कराने का माध्यम भक्ति है. भगवान के सगुण रूप में अवतरित होने का प्रयोजन बताते हुए महाराज श्री ने कहा कि सभी नीचे से ऊपर जाना चाहता है, लेकिन भगवान ऊपर से नीचे क्यों उतरते हैं. भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती भगवान के जन्म लेने के एक नहीं, अनेक कारण हैं. ऐसे में उसका वर्णन करना कठिन है.
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