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Buxar News: जैविक योजना ने बदली किसानों की किस्मत

जिले में जैविक खेती की दिशा में एक नया इतिहास रचा जा रहा है

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बक्सर

. जिले में जैविक खेती की दिशा में एक नया इतिहास रचा जा रहा है. वर्ष 2019 में शुरू हुई जैविक कोरिडोर योजना अब जिले के किसानों के लिए उम्मीद की किरण बन चुकी है. महज 976 एकड़ भूमि और 960 किसानों से शुरू हुई यह योजना अब 8654 एकड़ भूमि और 5479 किसानों तक पहुंच चुकी है.

यह न केवल कृषि पद्धतियों में बदलाव का संकेत है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायित्व देने वाला एक बड़ा कदम भी है. जिले में पहली बार जैविक खेती का शुरुआत 2019 में किया गया था. 2019 में जिले के पांच प्रखंड डुमरांव, ब्रह्मपुर, सिमरी और चक्की में किया गया था. शुरुआती दौर में डुमरांव प्रखंड के करुअज में 68 एकड़ भोजपुर में 57 एकड़, ब्रह्मपुर प्रखंड के महुआर पंचायत में 78 एकड़ बेरिया पंचायत में 42 एकड़, रधुनाथपुर पंचायत में 48 एकड़, ब्रह्मपुर पंचायत में 52 एकड़, सिमरी प्रखंड के गायघाट पंचायत में 68 एकड़, पडरी पंचायत में 66 एकड़, कठार पंचायत में 98 एकड़, डुमरी पंचायत के 66 एकड़, सिमरी पंचायत में 56 एकड़, दुल्लपुर पंचायत में 51 एकड़, चककी प्रखंड के अरक पंचायत में 66 एकड़, चंदा पंचायत में 58 एकड़ तो केसठ प्रखंड में केसठ पंचायत में 46 एकड़ तो कातिनार पंचायत में 56 एकड़ में जैविक खेती किया गया था. जब जैविक कोरिडोर योजना की शुरूआत किया गया तो उस समय चिन्हित पंचायत के किसानों को प्रत्येक वर्ष अनुदान के रूप में डीबीटी के माध्यम से सीधे उनके खाते में प्रत्येक वर्ष 11500 रुपये जैविक प्रोत्साहन के रूप में दिया जाता था. जैविक खेती करने वाले किसान इस राशि का उपयोग कच्चा या पक्का वर्मी पीट बनाने में पांच हजार रुपये और 6500 रुपये जैविक उर्वरक के लिए किसानों को प्रत्येक वर्ष दिया जाता था. इसके तहत जैविक कोरिडोर योजना 2019-22 के तहत जिले में जैविक खाद के लिए दो हजार पांच सौ वर्मी पीट और दो सौ पक्का वर्मी पीट बनाया गया था. जब जैविक खेती का शुभारंभ जिले में किया गया तो किसानों के मन में बहुत सारे सवाल था कि क्या जैविक खेती करने से उत्पादन में गिरावट हो सकती है. जैविक खेती से हम सब किसानों को लाभ क्या होगा .इसका उद्देश्य क्या है. लेकिन जैसे जैविक खेती किसान करते गए वैसे उनके मन में से जैविक खेती की भ्रांति दूर होती चली गई. वही जैविक खेती करने वाले किसानों को प्रत्येक वर्ष रवि खरीफ फसल के बुआई से पूर्व जैविक खेती जैविक उर्वरक का प्रयोग कीटनाशी जैव का निर्माण स्वयं कैसे करें. इसका प्रशिक्षण किसानों को एक वित्तीय वर्ष में तीन बार दिया जाता है. ताकि कोई समस्या न हो. 2019 में जिले में शुरु की गयी थी जैविक खेती : जिले में जैविक कोरिडोर योजना की शुरुआत 2019 में की गई थी.इस योजना का मूल उद्देश्य था रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को रोकते हुए किसानों को प्राकृतिक, पारंपरिक और सतत खेती की ओर प्रेरित करना. योजना के तहत किसानों को जैविक खेती के लिए आवश्यक प्रशिक्षण, संसाधन और बाजार से जोड़ने की सुविधा उपलब्ध कराई गई. शुरुआत में यह योजना जिले के कुछ चुनिंदा गांवों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई थी.पहले ही साल 976 एकड़ में 960 किसानों ने रासायन मुक्त खेती का बीड़ा उठाया था.प्रशासनिक सहयोग और तकनीकी मार्गदर्शन से प्रेरित होकर किसानों ने इस प्रयोग को सफल बनाया. प्रारंभिक वर्षों में किसानों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.रासायनिक खेती के वर्षों के अभ्यास के कारण जैविक खेती की विधियां समझना और उन पर भरोसा करना आसान नहीं था.जैविक खाद, जीवामृत, नीम खली और पंचगव्य जैसे शब्द उनके लिए नए थे.फसल उत्पादन की दर घटने का डर और बाजार में उचित मूल्य न मिलने की आशंका ने कई किसानों को शुरुआत में हिचकिचाया. लेकिन कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविरों, मॉडल खेती, और सफल जैविक किसानों से संवाद ने इन आशंकाओं को धीरे-धीरे दूर किया.समय के साथ किसानों को यह समझ में आया कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि आर्थिक रूप से भी एक स्थायी विकल्प है. फेज टू के तहत तीन साल मिलता है अनुदान : फेज टू के तहत तीन वर्षों तक चरणबद्ध अनुदान से प्रोत्साहित हो रही है. जैविक खेती. जिले में फेज टू शुरुआत 2022 में किया गया था. इसके तहत सात प्रखंड के 15 पंचायत के 79 गांव में 1500 एकड़ में 1478 के द्वारा जैविक खेती किया जा रहा है . 1478 किसानों को तीन वर्षों तक चरणबद्ध अनुदान से प्रोत्साहन की राशि दिया जा रहा है. जिसकी जानकारी देते हुए डीपीएमयू ऋषभ राज ने बताया कि जैविक कॉरिडोर योजना फेज टू के तहत चिन्हित गांव के किसानों को तीन फेज में अनुदान दिया जा रहा है. प्रथम किस्त में 11500 की राशि किसानों के खाते में डीवीटी के माध्यम से दिया जा रहा है वही दूसरे व तिसरे किस्त में 6500 रुपये की राशि किसानों को उर्वरक खरीदने हेतु सरकार के तरफ से प्रोत्साहन के रूप में दिया जाता है.इस वित्तीय सहायता से किसानों को जैविक खेती अपनाने में शुरुआती आर्थिक बोझ से राहत मिलती है.सरकार का उद्देश्य किसानों को रासायनिक खेती से दूर कर प्राकृतिक और टिकाऊ खेती की ओर मोड़ना है, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरे, उत्पादन की गुणवत्ता बढ़े और उपभोक्ताओं को सुरक्षित खाद्य उत्पाद मिल सकें.यह योजना देश के विभिन्न जिले के प्रखंड में प्रभावी रूप से लागू की जा रही है और इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं.बक्सर जिले के 1478 किसानों को सिए का प्रमाण पत्र वशोका के द्वारा दिया जा चुका है. वर्तमान सी टू प्रमाणिक प्रक्रिया जारी है.

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