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Buxar News: सांसारिक जीवन में जीव गज तो ग्राह है मृत्यु : पुंडरीक जी

प्रिया-प्रियतम मिलन के पांचवें दिन बुधवार को श्रीमद्भागवत कथा में अदिति व दिति की कथा सुनायी गयी. व्यासपीठ की पूजन-आरती कर आश्रम के महंत श्री राजराम शरण जी ने कथा का शुभारंभ करायी.

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बक्सर

. नयी बाजार स्थित सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में चल रहे प्रिया-प्रियतम मिलन के पांचवें दिन बुधवार को श्रीमद्भागवत कथा में अदिति व दिति की कथा सुनायी गयी. व्यासपीठ की पूजन-आरती कर आश्रम के महंत श्री राजराम शरण जी ने कथा का शुभारंभ करायी.

कथा में काशी से पधारे डॉ पुंडरीक शास्त्री जी ने कहा कि ऋषि कश्यप जी की दो पत्नियां थीं. उनकी पहली पत्नी का नाम अदिति और दूसरी का दिति था. अदिति के गर्भ से देवता और दिति से दानवों का जन्म हुआ. दिति देवी ने कश्यप जी से इंद्र का नाश करने वाले पुत्र की कामना की तो उन्होंने पुंसवन व्रत का उपदेश दिया और कहा कि व्रत में किसी प्रकार की असावधानी से देवताओं को मारने वाले तुम्हारे ही पुत्र देवों के मित्र हो जाएंगे. इंद्र ने चालाकी से दिति के गर्भ में पल रहे भ्रूण को 49 टुकड़ों में काट डाला. ये टुकड़े 49 मरुतगण हुए. तब श्री शुकदेव जी से महाराज परीक्षित में प्रश्न किया कि भगवान के ही देवता और दानव हैं तो वे देवताओं का पक्ष क्यों लेते हैं. जवाब के लिए महामुनि ने नारद जी और युधिष्ठिर के बीच हुए संवाद का उल्लेख करते राजसूय यज्ञ की कथा सुनाई. जिसमें भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को अपने चक्र से मारा और शिशुपाल के शरीर से निकला तेज भगवान में प्रवेश कर गया. इसपर युधिष्ठिर को संशय हुआ की इतना बड़ा पापी भगवान के अंदर कैसे प्रवेश कर गया. तब उन्होंने नारद जी से प्रश्न किया नारद जी ने जय-विजय के श्राप, हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिपु के जन्म और प्रहलाद चरित्र का वर्णन किया. उन्होंने कहा कि भगवान अपने भक्त की रक्षा के लिए पत्थर को फाड़ कर प्रकट हो गए और भगवान का नरसिंह अवतार हुआ. क्योंकि जो भक्त भगवान पर विश्वास करता है उसकी रक्षा प्रभु स्वयं करते हैं. ऐसे में भक्ति मार्ग में विश्वास आवश्यक है. मानव धर्म, वर्ण धर्म, तथा आश्रम धर्म का निरूपण करते हुए गज और ग्राह की कथा का उल्लेख करते हुए महाराज श्री ने कहा कि संसार में जो जीव है वही गज है और मृत्यु ही ग्राह है. हर समय जीव को खींचकर मृत्यु अपनी तरफ ले जा रही है. इस क्रम में उन्होंने देवासुर संग्राम और अमृत प्रकट तथा समुद्र मंथन की कथा श्रवण कराते हुए भगवान वामन और राजा बलि की कथा का जिक्र किया. जिसमें श्री शास्त्री जी ने कहा कि भगवान राजा बलि से तीन पग भूमि मांगे. इसका आशय है कि जितना मिले उतने में ही संतोष करना चाहिए. मांगने वाला व्यक्ति देने वाले के आगे छोटा हो जाता है.

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