बक्सर : कटहिया पुल के निर्माण और जीर्णोद्धार से जुड़े स्व. दीनानाथ राय के स्मृतियां बक्सरवासियों में पुल के टूटते ही ताजी हो गयी. स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से जुड़े रहने के कारण बक्सर के ढेर सारे विकास कार्यों में इनका योगदान था.
न सिर्फ कटहिया पुल बल्कि पुरानी कचहरी का बना स्टेट बैंक भवन का निर्माण, डुमरांव पावर सब स्टेशन का निर्माण, बक्सर पावर सब स्टेशन का निर्माण, चौसा पुल का निर्माण, बक्सर शहर के विद्युतीकरण में पोल, ट्रांसफॉर्मर, तार एवं पावर ग्रिड तक का निर्माण,पड़री सोनवर्षा रोड का निर्माण, भोजपुर से डुमरांव महाराज की कोठी तक के सड़क का निर्माण, गंगा किनारे बोल्डर पीचिंग का काम समेत नहर विभाग के सैकड़ों पुल-पुलिया का निर्माण कराने वाले दीनानाथ राय की स्मृतियां आज भी ताजी हैं. क्योंकि इन्होंने जितने भी निर्माण कराये थे वे आज भी अस्तित्व में हैं.
और उन निर्माण के पीछे सरकार का रखरखाव पर भी खर्च नगण्य ही रहा.अपने जीवनकाल में मैट्रिक प्रथम श्रेणी से, इंटर प्रथम श्रेणी से, स्नातक प्रथम श्रेणी से पास करने वाले और जीवन भर धोती-कुर्ता और जैकेट पहनने वाले दीनानाथ राय का जीवन ठास बाट से गुजरा था क्योंकि इनके पिता स्व. मधुसूदन राय स्टेशन मास्टर थे.दीनानाथ राय ने सदैव पटना से बक्सर की यात्रा प्रथम श्रेणी के मासिक सीजन टिकट से किया.
डीएवी स्कूल कानपुर में इनकी शिक्षा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुई थी. इनका लगाव और पारिवारिक रिश्ता समाजवादी नेता राज नारायण, पूर्व रेलमंत्री जनेश्वर मिश्र, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के साथ रहे हैं. बलिया जिले के कोपाचिप विधानसभा क्षेत्र से इन्होंने 1952 में चुनाव भी लड़ा था.
जिन दिनों चौसा पुल का निर्माण 1964 में दीनानाथ राय करवा रहे थे उन्हीं दिनों भारत-पाक युद्ध हो गया और उन्होंने जब देश को पैसे का संकट आया तो चौसा पुल निर्माण से मिले लाभ का 10 प्रतिशत राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दान दिया ताकि देश के सैनिकों को मदद दी जा सके. इनके पुत्र प्रो.शारंधर राय, जो एलबीटी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य हैं और जूडो और कुश्ती के राष्ट्रीय पदक विजेता भी रहे हैं,
ने बताया कि उनके पिता नहर, पीडब्लूडी और बिजली बोर्ड के कामों में ठेकेदारी करते थे और जुलाई 1977 में शिवरात्रि के दिन यह कहते हुए मरे थे कि आज मरने का अच्छा दिन है. इस पर जब परिवार वालों ने कहा कि मरना किसी के हाथ का नहीं है लेकिन उन्होंने हस्ते-बोलते महज 50 साल की उम्र में अचानक इच्छा मृत्यु पा ली.