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राजशाही में पले बढ़े महाराजा कमल सिंह हमेशा लोकसेवक के भाव में रहे

मुरली मनोहर श्रीवास्तव पौराणिक एवं ऐतिहासिक काल से ही बिहार की धरती को अनेक ऋषियों, महर्षियों, राजर्षियों एवं कर्म योगियों की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त रहा है. यह परंपरा आज भी गतिशील है. इसी गौरवशाली परंपरा को एक अलग पहचान देने वालों में महाराजा बहादुर कमल सिंह भी शामिल हैं. देश के आखिरी रियासती […]

मुरली मनोहर श्रीवास्तव
पौराणिक एवं ऐतिहासिक काल से ही बिहार की धरती को अनेक ऋषियों, महर्षियों, राजर्षियों एवं कर्म योगियों की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त रहा है. यह परंपरा आज भी गतिशील है. इसी गौरवशाली परंपरा को एक अलग पहचान देने वालों में महाराजा बहादुर कमल सिंह भी शामिल हैं.
देश के आखिरी रियासती राजा और देश के प्रथम लोकसभा के सांसद महाराजा बहादुर कमल सिंह पांच जनवरी, 2020 को इस दुनिया को अलविदा कर गये. वर्ष 1952 में भारत के प्रथम चुनाव में वर्तमान के बक्सर संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय कैंडिडेट के रूप में कमल सिंह उस समय सबसे कम उम्र के 32 साल में सांसद चुने गये और इनका निशान था कमल का फूल. वे 1962 तक सांसद रहे. बाद के दौर में इन्हें हार का भी सामना करना पड़ा. वे अंतिम समय तक ‘कमल’ के साथ रहे़
शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए किया काम : महाराजा कमल सिंह ने जनसरोकार से जुड़े कई सार्वजनिक कार्य किये. महाराजा कॉलेज आरा को 21 बीघे भूमि, तो जैन कॉलेज आरा को भी भूमि दान में दिया. कुंवर सिंह इंटर कॉलेज, बलिया (यूपी) को अपनी कचहरी की भूमि भवन सहित दान दी.
एमवी कॉलेज, बक्सर को चरित्रवन स्थित अपनी पूरी जमीन दान में दी. डुमरांव राज हाइस्कूल की स्थापना के साथ ही विज्ञान भवन व पृथ्वी सिंह पवेलियन का भी निर्माण कराया. डुमरांव राज संस्कृत हाइस्कूल को भूमि दान की. टीबी रोगियों के लिए मेथोडिस्ट अस्पताल, प्रतापसागर (बक्सर) के लिए भूमि दान की. डुमरांव और बिक्रमगंज में राज अस्पताल का निर्माण कराया. वेटनरी अस्पताल, पटना को अपने कीमती घोड़ों को दान में दिया. डॉ रघुवीर सिंह चिकित्सालय, डुमरांव के निर्माण के लिए भूमि दान दी.
महाराजा से चेतन भगत मांग चुके हैं माफी : डुमरांव राज परिवार को केंद्र में रखकर चेतन भगत ने हाफ गर्लफ्रेंड पुस्तक की रचना कर शोहरत बटोरी, लेकिन उस वक्त इन्हें फजीहत झेलनी पड़ी जब डुमरांव राज के युवराज चंद्र विजय सिंह ने एक करोड़ रुपये की मानहानि का दावा कर दिया था. बाद में चेतन भगत को डुमरांव राज परिवार से माफी मांगनी पड़ी थी.

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